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अप्रैल, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

भाषा के लोकतंत्र की रक्षा का दायित्व हर भाषा-भाषी के ऊपर है।

नया ज्ञानोदय में प्रकाशित जया जादवानी की कहानी ‘मितान’ पर मेरी असहमति साहित्य में क्षेत्रीय भाषा के शब्दों का प्रयोग बहुधा होते आया है और इसी के कारण क्षेत्रीय भाषा के शब्दों को गाहे बगाहे हिन्दी नें अपना लिया है। क्षेत्रीय भाषा के शब्दों के प्रयोग के माध्यम से लेखक हिन्दी भाषी पाठकों को देश के स्थानीय संस्कृति व परंपरा से जोडने का प्रयास करते हैं! इसी कारण प्रेमचंद से लेकर अभी तक के कई कहानीकार पात्रों के नाम व अन्य शब्दों को, हिन्दी में लिखने के बजाए अपने स्थानीय प्रचलित शब्दों में लिखते रहे हैं, जिससे हम स्थाननीय शब्दों का अर्थ भी को समझ कर आत्मसाध कर पाते है। ‘मैं उस जनपद का कवि हूं’ कहने वाले त्रिलोचन नें भी अपनी हिन्दी लेखनी में जनपदीय भाषा का प्रयोग किया है एवं समय समय पर अपने आख्यानों में उन्होंनें स्वीकार किया है कि वे स्थानीय बोली-भाषा के शब्दों को पढने व जानने की निरंतर अपेक्षा रखते थे। बाबा त्रिलोचन स्वयं एक साक्षात्कार में स्वीकारते हैं कि उन्होंनें छत्तीसगढ़ के साहित्यकारों की रचनाओं से छत्तीसगढ़ी भाषा के कुछ शब्दों को सीखा है। हिन्दीं लेखनी में स्थानीय छत्तीसगढ़ी भा

क्या वे औसत दर्जे के परिणामों से संतुष्ट रहेंगे या .... ? : वेंकटेश शुक्ल

इस आलेख की पहली कड़ी :  छत्‍तीसगढ़ सोने की चिडि़या   यहां  पढ़ें.  सबसे बड़ी महत्ता रोजगार की किसी भी अर्थ व्यवस्था का मापदंड है रोजगार की बहुलता। जब आम लोगों के पास रोजगार होता है तब वे घर लेते हैं, फर्नीचर खरीदते हैं, यातायात, मनोरंजन और कपड़ों - जूतों में पैसा खर्च करते हैं जिस से इन सब क्षेत्रों में रोजगार बढ़ता है। राज्य स्वयं एक बहुत बड़ा मालिक है किन्तु उसकी भी सीमा होती है अतिरिक्त रोजगार देने की। छत्तीसगढ़ में बहुत से लोग कृषि तथा वन पर निर्भर होकर किसी तरह जीवन-यापन करते हैं और उन्हें कहीं और अधिक आय मिले तो वे उसे सहर्ष स्वीकार करेंगे। छत्तीसगढ़ के सामने सबसे बड़ी चुनौती है रोजगार बढ़ाने की। यह स्थापित तथ्य है कि 80 फीसदी रोजगार लघु एवं मध्यम श्रेणी के उद्यमियों के माध्यम से बनते हैं। बस मालिक, होटल मालिक, खुदरा व्यापारी, ठेकेदार जैसे उद्यमी कम हुनर वाले लोगों को रोजगार देते हैं जबकि कारखाने तथा उद्योग धंधे जैसे मध्यम श्रेणी के उद्यमी थोड़े बहुत हुनर वालों को काम देते हैं। छत्तीसगढ़ कैसे बने सोने की चिडिय़ा? भाग - 2 वेंकटेश शुक्ल कैलिफोर्निया में एक कम्प्यूट

छत्तीसगढ़ एक सोने की चिडिय़ा? : वेंकटेश शुक्ल

छत्तीसगढ़ के पास देश के सम्पन्नतम राज्यों में से एक बनने का अवसर है, पर्याप्त संभावनाएं हैं। शासन की नीतियों में आमूलचूल क्रांतिकारी बदलाव के बिना यह सम्भव है। यह संभव है अगर ऐसी समझ आ जाए कि किसी भी देश या प्रांत को समृद्धता भाग्य से नहीं मिलती। भाग्य से मिली हुई खनिज संपत्ति, जलवायु, संस्कृति, भौगोलिक स्थिति अथवा प्राकृतिक संसाधन के बल पर ही कोई देश या राज्य समृद्ध नहीं होता है। समृद्धता का कारण हमेशा राज्य या देश द्वारा जाने या अनजाने में चुनी हुई नीतियाँ होती हैं। चूँकि यह तर्क परंपरागत शासन के विरुद्ध है, इस का गहराई से विश्लेषण करना होगा। इस लेख में पहले देश विदेशों के ऐतिहासिक अनुभवों का वर्णन किया जाएगा और इन अनुभवों से कुछ निष्कर्ष निकाले जाएंगे। फिर यह प्रयास रहेगा कि इन निष्कर्षों को ध्यान में रखते हुए, किस तरह की नीतियाँ और किस तरह का परिवर्तन छत्तीसगढ़ को करना चाहिए ताकि यह राज्य सोने की चिडिय़ा बन जाए।  छत्तीसगढ़ एक सोने की चिडिय़ा?  भाग - 1 वेंकटेश शुक्ल कैलिफोर्निया में एक कम्प्यूटर चिप डिजाईन सॉफ्टवेयर कंपनी के अध्यक्ष हैं। छत्तीसगढ़ के जांजगीर जिले के अकलतरा में

ऐसी कोई तकनीक है ही नहीं जो यह सिद्ध कर दे, कि बेनामी और फर्जी आईडी से की गई टिप्पणियों के टिप्पणीकर्ता को पहचाना जा सके

" शास्त्री जी आपने लिखा है कि “ओ छत्तीसगढ़ के महारथी! क्या तुम्हारा नाम ब्लॉग-जगत् को बता दूँ?” पर अभी जब मैं यह पोस्ट पढ रहा हूं तब तक उस रथी का नाम सामने नहीं आया। न आना था ना आयेगा और दो कदम आगे बढकर मैं यह कहता हूं कि कोई ऐसी तकनीक है ही नहीं जो यह सिद्ध कर दे, कि बेनामी और फर्जी आईडी से की गई टिप्पणियों के टिप्पणीकर्ता को पहचाना जा सके। जो तकनीक उपलब्ध है वह अनुमान लगाने एवं परिस्थिजन्य साक्ष्य निर्मित करनें में सहायक मात्र हैं। न्यायालयीन शब्दों में कहें तो उस तकनीक से प्राप्त सूचनाओं को विवेचना, अनुसंधान एवं न्यायालयीन कार्यवाही के स्तर से गुजरते हुए ही सिद्ध किया जा सकता है। आपके पोस्ट के शुरूआती शब्दों के निहितार्थ से यह स्पष्ट‍ है कि आपनें छत्तीसगढ़ के किसी तथाकथित महारथी पर आरोप लगाया है और धमकाया भी है। खैर हमें क्या ऐसे मसलों में सिद्ध करने का भार आरोप लगाने वाले का होता है। हालांकि आपनें अंतिम में लिखा है कि जब तक वह स्वयं अपने नाम को बतलाने के लिए नहीं कहेगा तब तक आप उसका नाम नहीं बतलायेंगें। क्या अपराधी स्वयं अपना अपराध कबूल करता है ? ऐसे में तो संपूर्ण छत्तीसग

सद्भावना के शिल्पी भाई गिरीश पंकज : डॉ. परदेशीराम वर्मा

जनवादी कवि नासिर अहमद सिकंदर पन्द्रह वर्ष पूर्व कवियों पर एक स्तंभ लिखते थे । नवभारत में वे प्रति सप्ताह एक कवि से साक्षात्कार लेते थे । यह लोकप्रिय स्तंभ था । नासिर का सीना वैसे भी चौड़ा है मगर उन दिनों इस स्तंभ के कारण उसके सीने की चौड़ाई में कुछ और इजाफा सा हुआ दिखता था । एक दिन उसने मुझे भी रायपुर चलकर नवभारत में कार्यरत अपने मित्र से मिलने का न्यौता दिया । हम तेलघानी नाका के पास तब के नवभारत में पहुंचे । नवभारत में कार्यरत आशा शुक्ला जी भर को मैं पहचानता था । वे रायपुर के समाचार पत्र जगत में धमाके से आई एक मात्र युवती थी । इसलिए भी उन्हें हम सब आदर देते थे । कुछ विस्मय भी होता था कि पुरूषों से भरे समाचार पत्र के दफ्तर में वे अकेली महिला होकर भी किस तरह सफलतापूर्वक और सम्मानजनक ढंग से काम कर लेती हैं । सोचा उनसे भी भेंट हो जायेगी । नासिर ने मुझे पान ठेले पर ही रोक दिया ।  कुछ देर बाद वह एक खूबसूरत गोरे चिट्टे नौजवान के साथ चहकता हुआ लौटा । अभी वह परिचय करा ही रहा था कि मेरे मुंह से निकल गया, अरे पंकज भाई आप । नासिर को यह जानकर कि मैं गिरीश पंकज से पूर्व परिचित हूं थोड़ा झटका लगा ।

ब्‍लॉगरों पर साढ़े साती शनी : और हम हिन्‍दी के भविष्‍य के लिए कुछ भी नहीं कर पाए.

आप सभी इस बात से वाकिफ हैं कि हिन्‍दी ब्‍लॉगजगत से परे अंग्रेजी व हिन्‍दी वेब जगत में ज्‍योतिष का चहुंओर बोलबाला है. गूगल सर्च पर धका-धक ज्‍योतिष से संबंधित वेबसाईट खोजे जा रहे हैं और आनलाईन कुण्‍डली बनवाकर फलित बांचा जा रहा है. मूंदरी-गंडा-ताबीज आनलाईन पेमेंट करके प्राप्‍त किए जा रहे हैं और अवसर का सहीं उपयोग करने वाले ज्‍योतिषियों के बल्‍ले बल्‍ले है. नेट में तो इन वैबमालिक लैपटापधारी सुविधासम्‍पन्‍न ज्‍योतिषियों से कभी-कभार सामना होते रहता है किन्‍तु चौंक चौराहों में फुटपात पर बैठे ज्‍योतिषियों से आपका सामना रोज होता होगा. ये अलग बात है कि हम इन्‍हें ध्‍यान दिए बगैर आगे बढ़ जाते होंगें पर हमारे मोबाईल कैमरे की नजर में गड़ गई यह तस्‍वीर आप भी देखें- हम दरअसल लगातार टंकी में चढते व छुट्टी में जाते ब्‍लॉगरों को देखते हुए उसके पास हिन्‍दी ब्‍लॉगजगत के भविष्‍य के संबंध में 'बिचरवाने' गए थे कि क्‍या ब्‍लॉगरों पर साढ़े साती शनी का प्रभाव है. किन्‍तु फुटपात पर बैठे हस्‍तरेखा विशेषज्ञ बेदम कर रही गर्मी के चलते ग्राहक की कमी के कारण अपने स्‍वयं के भविष्‍य से बेखबर लम्‍बी तान कर सो रहा

कौन झूठ बोल रहा है ... ??

मानवाधिकार कार्यकर्ता हिमांशु कुमार या पुलिस अधीक्षक अमरेश मिश्रा : जलता बस्‍तर  आई गूगल में पसंदीदा समाचारों को खंगालते हुए  जागरण   का एक समाचार नजर आया जो इस प्रकार है - माओवादियों से लोहा लेने का सिरदर्द पुलिसकर्मियों के लिए काफी नहीं है क्योंकि छत्तीसगढ़ में नक्सल विरोधी अभियान में जुटी पुलिस को एक और मोर्चे पर जूझना पड़ता है तथा काफी समय अदालतों के चक्कर काटते गुजरता है। शीर्ष पुलिस अधिकारियों ने आज कहा कि पुलिस को अक्सर विभिन्न अदालतों के चक्कर काटने पड़ते हैं। उनके खिलाफ दायर मानवाधिकार हनन के कथित मामलों से जूझना पड़ता है जिससे नक्सल प्रभावित राज्य में अभियान में लगी पुलिस को मानव संसाधनों को किसी दूसरी जगह लगाना पड़ता है। उहापोह की स्थिति किसी और की नहीं, बल्कि खुद राज्य के पुलिस महानिदेशक विश्व रंजन की है। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के माध्यम से फैलाए जा रहे दुष्प्रचार के कारण राज्य के पुलिसकर्मियों को वकीलों के साथ अधिक समय बिताना पड़ता है। पुलिस के पक्ष पर जोर देने के लिए माओवादियों के गढ़ दंतेवाड़ा कांड का उदाहरण दिया गया। जिले के पुलिस अधीक्षक अमरेश मिश्रा को दायर की गई ए

आदिवासियों ने उठाया हक का सवाल : कंगला मांझी स्मृति स्वर्ण जयंती समारोह

'लगातार शोषण और उपेक्षा के कारण आदिवासी असंतुष्ट हुआ है। आदिवासी कभी किसी का हक नहीं छीनता, मगर लगातार उसके हकों को छीना गया। ' यह उद्गार छत्‍तीसगढ़ के बघमार गांव में प्रसिद्ध आदिवासी क्रांतिवीर व संगठक  कंगला मांझी स्मृति स्वर्ण जयंती समारोह व दो दिवसीय सैनिक सम्मेलन के समापन दिवस के मुख्य अतिथि संत कवि पवन दीवान ने कहा! विशेष अतिथि अगासदिया के संपादक साहित्यकार डॉ.परदेशीराम वर्मा ने कहा कि केवल अपने विगत इतिहास को याद कर गर्वित होने से वर्तमान नहीं संवर सकता। कंगला मांझी ने सभी संघर्षशील अधिकारहीन लोगों को एकताबद्ध होने का नारा दिया। आज भी उनका उद्देश्य अधूरा है। कंगला मांझी के सभी सैनिक वर्दी पहनकर और विनम्र सेवक बन जाते हैं। निःशुल्क सेवा ही उनका धर्म है। उनकी ताकत का सदुपयोग होना चाहिए। वे अनुशासित, संगठन राष्ट्र एवं समाज भक्त हैं। कार्यक्रम में दुर्ग के कलेक्टर ठाकुर राम सिंह एवं राजमाता फुलवादेवी ने अगासदिया के सैनिक अंक का विमोचन किया। विशेष अतिथि श्रीमती अनिता भेड़िया, जिला पंचायत सदस्य डौंडीलोहारा ने कहा कि जो समस्या है उनके निदान के लिए प्रशासन तक पहुंचने और समाधा

दलित चेतना का सूर्य : शबरी - आचार्य सरोज द्विवेदी

छत्तीसगढ़ के इतिहास और संस्कृति कें मूल में जब हम झांकने का प्रयत्न करें तो हमें जाज्वल्यमान नक्षत्र के रूपमें एक मात्र नाम दिखाई देगा शबरी का । श्रीराम भक्त शबरी के पूर्व का कोई इतिहास उपलब्ध नहीं है । इतिहासवेत्ताओं के अनुसार रामायण नौ लाख चौरासी हजार वर्ष पूर्व की घटना है और तब से लेकर अब तक छत्तीसगढ़ क्षेत्र के किसी व्यक्ति का नाम चल रहा है तो वह शबरी ही है । आदि कवि महर्षि वाल्मीकि ने रामायण मे शबरी की भक्ति का मार्मिक चित्रण किया है । इतिहास बताता है कि गंगा से गोदावरी के मध्य भाग को कौशल क्षेत्र कहा जाता था । इन दोनों नदियों के बीच विन्ध्याचल पर्वत स्थित है । विन्ध्याचल के उपरी (उत्तरी) क्षेत्र को उत्तर कौशल और नीचे दक्षिणी क्षेत्र को दक्षिण कौशल कहा गया । हमारा छत्तीसगढ़ दक्षिण क्षेत्र में आता है । श्री राम की वन यात्रा में दक्षिण कौशल को दण्डकवन कहा गया है । अब यह भी प्रमाणित हो गया है कि इस दण्डकारण्य में शिवरीनारायण (बिलासपुर) में ही शबरी का आश्रम था । शिवरीनारायण में महानदी, शिवनाथ और जोंक नदियों का संगम है । इस संगम के तट पर ही शबरी के गुरू महर्षि मंतग का आश्रम था । ऋषि

मुफ्त में अपने ब्‍लॉग का ट्रैफिक बढावें - जुगाड तकनीक

पिछले दिनों मैंनें अपने इस ब्‍लॉग में एवं दो अन्‍य ब्‍लॉग में विभिन्‍न वेबसाईटों के सहारे लगाए जा रहे चटकों का लेखाजोखा लिया तो पाया कि ब्‍लागवाणी के बाद मेरे ब्‍लॉग में  दूसरे क्रम पर गूगल के ईमेज सर्च से ट्रैफिक का बहाव है. यह कहा नहीं जा सकता कि इसके सहारे जो चटका लगाने वाले आ रहे हैं वे पाठक हैं कि नहीं किन्‍तु आने के बाद वे पुराने पोस्‍टों (पेज व्‍यू) में कुछ तलाशते हैं इसीलिये कहा जा सकता है कि उनमें से कुछ पाठक जरूर होते हैं.  तो साथियों अपने ब्‍लॉग में अतिरिक्‍त पाठक लाने के लिए आप अपने अधिकतम पोस्‍ट में रायल्‍टी फ्री या स्‍वयं के द्वारा खींचा गया फोटो लगावें एवं फोटो का फाईल नेम ज्‍यादा सर्च हो रहे शव्‍दों से मिलता जुलता रखें. पोस्‍ट के कंटेंट अच्‍छे रहेंगें तो सोने में सुहागा. आप देखेंगें कि कुछ माह में आपके ब्‍लॉग का ट्रैफिक बढनें लगेगा.

माओ के पोतो, तुम कायर-बटमार हो... : दीपक शर्मा

पिछले दिनों बस्तर के चिंतलनार में हुई भयानक घटना की खबर इंटरनेट अखबार में पढ़ी तब से अब तक रह-रह यह विचार दिल को कुरेदते हैं कि जिन परिजनों को अपने प्रिय को खोने का दुख हुआ होगा उन पर क्या बीत रही होगी। उनके आंखों के आंसू सूखेंगे या नहीं। वस्तुत: यह घटना सबसे बड़ा सवाल यह खड़ा करती है कि नक्सलवाद नाम के इस उपद्रव को क्या आंदोलन या क्रांति मान लिया जाए? और इनके तथाकथित वैचारिक दलालों से भी ये जानने का समय है कि क्या आप इस वीभत्स कायराना हरकत पर कुछ कहेंगे या सिर्फ मौन हो कर इंतजार करेंगे कि किसी तरह फिर सत्ता की कोई गलती हाथ लग जाए जिस पर हाईकोर्ट तक डंका बजाया जाए।  यह प्रकृति का नियम है कि आप जिससे लड़ते है, धीरे-धीरे आप उसी तरह हो जाते है इसलिए अगर मुकाबला बटमारों और कायर-कपटी लोगों से हो तो बगैर छल-कपट आप उससे जीत नहीं सकते। इतनी भारी संख्या में जवान इसलिए शहीद हुए क्योकि वो लड़ाई संवैधानिक तरीके से लड़ रहे है, कोई बेकसूर न मारा जाए इस बात का ध्यान रखकर नीतियां बनाई गई हैं, इसी का फायदा खुद को क्रांतिकारी कहने वाले ये बटमार उठा रहे है, जिन्होने बंदूक को जैसे आखिरी शस्त्र मान लिया हो

फीडबर्नर सब्‍सक्राईबर मेल में अपने पोस्‍ट के फोंट साईज को बडा करना

पिछले चार दिनों से मेरे एक फीडबर्नर मेल सब्‍सक्राईबर श्री आनंद कुमार भट्ट जी का मेल आ रहा था कि मेरे पोस्‍ट जो उन्‍हें फीडबर्नर के द्वारा प्राप्‍त हो रहे हैं उन्‍हें वे पढ नहीं पा रहे हैं क्‍योंकि मेल से प्राप्‍त पोस्‍ट में फोंट का साईज काफी छोटा है यद्यपि वापस टिप्‍पणी सहित प्राप्‍त मेल में फोंट साईज ठीक नजर आ रहा है. इस प्रकार की समस्‍या कथा चक्र के फीड मेल में  है. मैं पिछले चार दिनों से इस समस्‍या का हल फीडबर्नर में खोजने का प्रयत्‍न कर रहा था किन्‍तु हल नहीं मिल पा रहा था. आज हमें इसका हल प्राप्‍त हुआ और हमने फोंट का साईज बढा दिया है. हो सकता है आपके साथ भी यह समस्‍या हो तो हम इसका समाधान यहां प्रस्‍तुत कर रहे हैं. फीडबर्नर में लागईन होंवें यदि आपका एक से अधिक ब्‍लाग के फीड का एकाउंट यहां है तो जिस ब्‍लॉग के फीड का फोंट साईज संपादित करना है उसे क्लिक करें - Publicize में जावें - Email Subscriptions में जावें - Email Branding को क्लिक करें. नीचे स्‍क्रोल करें वहां फोंट साईज को बढानें व घटाने का विकल्‍प मौजूद है, पाठकों की रूचि के अनुरूप उसे बढा या घटा लेवें, सेव करें. अब

भिलाई में मिले तीन ब्‍लॉगर : मिलने-मिलाने का दौर चलता रहे

कल रविवार का दिन था यानी घर-परिवार का दिन. घर के ही बहुत सारे निजी काम थे जो मुझे निबटाने थे, बेटे और श्रीमतीजी की गुजारिश थी कि हम दिन भर उनके साथ रहें. मैं सुबह - सुबह अपने तेरह वर्षीय पुत्र को खुश रखने हेतु उसे मोटर बाईक विदाउट गियर सिखाने स्‍टेडियम के पास वाले ग्राउंड ले गया जिसे मैं काफी दिनों से टालते आ रहा था. हांलाकि यह समय मैंनें छत्‍तीसगढ़ के ख्‍यात साहित्‍यकार डॉ.परदेशीराम वर्मा जी से मिलने हेतु तय किया हुआ था. उनकी पत्रिका 'अगासदिया' का नया अंक मुझे लेना था एवं बैसाखियों पर चलती क्षेत्रीय भाषा पर होने वाले एक सम्‍मेलन पर बात करना था. किन्‍तु पुत्र को बाईक चलाना सिखाना ज्‍यादा आवश्‍यक था, आगे चलकर वही मेरी बैसाखी बनने वाला है. रविवार के अन्‍य संभावित कार्यक्रमों में पाबला जी के साथ रायपुर फिर अभनपुर ललित शर्मा जी के पास जाने का था. पर घर को छोडकर जाने की परमिशन नहीं मिल पा रही थी. इसी बीच बिलासपुर में क्रातिदूत वाले  अरविंद झा जी का फोन आ गया था कि वे एक वैवाहिक कार्यक्रम में भिलाई आने वाले हैं और दुर्ग-भिलाई के साथी ब्‍लॉगरों से मिलना चाहते हैं. हमनें बडी मुश्

परेशान हूं मैं मेरे नाम को गलत लिखने वालों से

साथियों मेंरा नाम है संजीव तिवारी, छत्‍तीसगढ़ के स्‍थानीय पत्र-पत्रिकाओं में मेरी कलम घसीटी समय-समय पर प्रकाशित होती है. किन्‍तु प्रकाशनों में टंकण त्रुटि के कारण मेरे लेखों में कई-कई बार मेरा नाम संजीव तिवारी के स्‍थान पर 'संजय तिवारी' छपा रहता है (या छाप दिया जाता है), इससे अपने लेखों-कविताओं-कहानियों के प्रकाशन के बाद जो उत्‍साह लेखक के मन में होता है वह एक क्षण के लिए हवा हो जाता है. प्रकाशक को पत्र लिखने से आगामी अंकों में क्षमा सहित दो लाईन छपता है जिसे कोई नहीं पढता और मन मसोस कर रह जाना पडता है.  इसी तरह क्षेत्र के लेखक साथियों के द्वारा पत्र  प्रेषित करने पर भी कई बार मुझे 'संजय तिवारी' लिखा जाता है. यह सब तो चलते ही रहता है किन्‍तु जब सही नाम से रचना के प्रकाशन के एवज में प्रकाशक महोदय द्वारा मानदेय की राशि का चेक 'संजय तिवारी' के नाम से प्राप्‍त होता है तब भूल सुधार छापने से भी काम नहीं चलता. मन कहता है कि नेम-फेम के चक्‍कर में मत पड़ा करो पर बैंक वालों को तो मैं नहीं कह सकता ना कि नाम में क्‍या रख्‍खा है. संजीव तिवारी

गूगल की प्रतियोगिता 'है बातों में दम' का पुरूस्‍कार हमें प्राप्‍त हुआ

कल हमें एक मेल प्राप्‍त हुआ जिससे ज्ञात हुआ कि, विगत दिनों गूगल द्वारा आयोजित प्रतियोगिता 'है बातों में दम' में सहभागिता के लिए हमें रू. 3000/- का पुरूस्‍कार प्राप्‍त हुआ है. Dear Hai Baaton Mein Dum? Contest Winner, We apologize for the delay in the delivery of your prize. We have been working hard over the last month to procure the internet connections that we had planned to give away as prizes. However, due to irresolvable issues with the Internet Service Provider that we had identified, we have substituted the internet connection with a bigger and better prize: a gift voucher worth 3000 Rs from Flipkart (www.flipkart.com), one of India’s premier online bookstores! Once again, congratulations on the superb quality of your submission that earned you a prize! Best regards, Hai Baaton Mein Dum? Contest Team आशा है यह पुरस्‍कार हमारे अन्‍य प्रतिभागी मित्रों को भी प्राप्‍त हुआ होगा. यह पुरस्‍कार ई-गिफ्ट वाउचर के रूप में है जो एक वर्ष के लिए प्रभावशील है. इस ई-गिफ्ट वाउचर स

तथाकथित मानवाधिकार वादियों बस्‍तर के आदिवासियों को मुहरा बनाना बंद करो

पिछले दिनों छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के गलियारों से एवं समाचार पत्रों से प्राप्‍त जानकारी छत्‍तीसगढ़ के लिए तो चौंकाने वाला नहीं है किन्‍तु यह उन तथाकथित वनवासियों के शुभचिंतकों के लिए अवश्‍य चौंकाने वाला है. इस समाचार से यह स्‍पष्‍ट हो गया है कि तथाकथित मानवाधिकार वादी बस्‍तर के आदिवासियों को मुहरा बनाकर किस प्रकार से सरकार के विरूद्ध खेल खेल रहे हैं. इस समाचार नें उन सभी याचिकाओं की पोल खोल दी है जो तथाकथित मानवाधिकार वादियों के द्वारा हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक विभिन्‍न न्‍यायालयों में दायर की गई हैं. यह समाचार छत्‍तीसगढ़ के विभिन्‍न समाचार पत्रों में प्रकाशित हुआ है जिसे हमने अपने ब्‍लॉग जूनियर कौंसिल में भी प्रकाशित किया है. समाचार यह है - नक्‍सल क्षेत्र दंतेवाड़ा जिले के एर्राबोर थाने का मामला छत्तीसगढ हाईकोर्ट के १० वर्षों के न्यायालयीन इतिहास में यह पहला मामला है जब याचिकाकर्ता ने कोर्ट में उपस्थित होकर किसी तरह की याचिका दायर करने से ही इनकार कर दिया। जिस याचिका पर हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच में सुनवाई हो रही है उसमें एर्राबोर पुलिस पर आरोप लगाया है कि उसके पिता व बहन को गायब

बस्‍तर के चिंतलनार में शहीद जवानों के लिए .....

अफ़शोस कि तू मर गया गुजरे दिनों की समाचार की तरह दुख है कि तुझे जांबाजी से लड़ते हुए वे देख नहीं पाये वो देखना भी नहीं चाहते थे क्‍योंकि वे नहीं जानते जांबाजी किसे कहते हैं जंगल वार कालेज की हुनर कोई काम ना आई ज्ञान जो काम ना आये वो किस काम का मगर दुश्‍मन बुजदिल हो, कायर हो तो हर अभिमन्‍यु ऐसा ही मारा जाता है उसके लिए कोई अरूंधती रूदाली नहीं पढ़ती और कोई एलीट कलमा नहीं पढ़ता मेरे शहीद, मेरे भाई, मेरे मित्र क्‍या नाम था तेरा, क्‍या पहचान था तेरा मैं नहीं जानता, पर उन पिचहत्‍तर लाशों में हर लाश मेरा अपना था. मेरे अपने वीर सिपाही तुम्‍हें मेरा बारंबार नमन संजीव तिवारी

पं. माखनलाल चतुर्वेदी की यादें बिलासपुर जेल से

4 अप्रैल - जयंती विशेष बिलासपुर में द्वितीय जिला राजनीति परिषद का अधिवेशन सन् 1921 में हुआ जिसकी अध्यक्षता अब्दुल कादिर सिद्धीकी ने की। स्वागताध्यक्ष यदुनन्दन प्रसाद श्रीवास्तव तथा सचिव बैरिस्टर ई. राघवेंद्र राव थे। इसमें ठाकुर लक्ष्मणसिंह चौहान, श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान एवं पं. माखनलाल चतुर्वेदी ने भाग लिया था। अधिवेशन शनिचरी पड़ाव में आए सर्कस पंडाल में हुआ था। प्रकाश व्यवस्था तब आटोलक्स, पेट्रोमेक्स तथा कोलमेन क्विक लाइट से करते थे। बिजली तब यहां थी नहीं । तेजस्वी वक्ता पं. माखन लाल चतुर्वेदी अधिवेशन को सम्बोधित कर रहे थे कि पेट्रोमेक्स बुझ गया। व्यवस्थापक उसे जलाने में जुटे थे कि उन्‍होंने कहा ‘जैसे यही बत्ती बुझ गई ऐसे ही अंग्रेजों की बत्ती बुझ जाएगी’ कुछ ही क्षणो में पेट्रोमेक्स जल गया तब उन्‍होंने कहा 'और जैसे फिर से प्रकाश फैल गया वैसे ही स्वतंत्रता का प्रकाश चतुर्दिक फैल जाएगा।' सहज रूप में कही गई मनपसंद इस बात पर कई मिनट तालियां बजती रही। जय-जय कार होने लगा। अंग्रेज इससे इतने कुढ़ गए कि उन पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया। 16 जून व 20 जून की पेशी दी गई। उस दिन फैसल

मंच नहीं, भूमि होती है बस्तरिया नाट में : योगेंद्र ठाकुर

हर समाज, देश और प्रांत में अपना नाट्य रंग है। बस्तर के उड़ीसा सीमाई क्षेत्र में "नाट" का अपना अलग जलवा है। यही वजह है कि ऋतु परिवर्तन के साथ ग्रामीण नाट करने टोली के साथ निकल पड़ते हैं और दर्शक सारी रात खुले आसमान के नीचे बैठकर इसका आनंद लेते हैं। बस्तर के ग्रामीणों को नाट देखने या दिखाने के लिए किसी दिवस विशेष की जरूरत नहीं होती। नाट को ये जन्म से लेकर मृत्यु तक के हर संस्कार और समारोह का हिस्सा मानते और आमंत्रित करते हैं। जन्मोत्सव पर जहाँ श्रीकृष्ण और श्रीराम जन्म का पाठ करते हैं,वहीं मृत्यु भोज के दौरान राजा हरिश्चंद व मुंदरा माँझी को कलाकार जीते है। विवाह के दौरान शिव-पार्वती, राम-सीता विवाह का प्रसंग होता है। इसके अलावा अब शासकीय योजनाओं के संदेशों का भी नाट में कमर्शियल ब्रेक की तरह उपयोग होने लगा है। यहाँ कलाकार और दर्शक के बीच दूरी नहीं होती। क्योंकि नाट में नृत्य, गीत, संगीत, संवाद, साज-सज्जा, सहजता और सरल बोली होती है। जिसे दर्शक अपने आसपास के कलाकारों से पाता है और सारी रात खुले मैदान में गुजार देता है। रंगकर्मी और बस्तर नाट पर कार्य कर रहे रुद्रनारायण पाणिग्राही का

आयोजन - समाजरत्न पतिराम साव अलंकरण समारोह सम्पन्न

रामेश्‍वर वैष्णव और डा.सुखदेव साहू सम्मानित 'गांधीवादी विचारधारा, जीवन शैली और संस्कारों से युक्त पतिराम सावजी को देखकर सहसा मुझे लाल बहादुर शास्त्री का स्मरण हो आता था। सावजी अपनी कद काठी, गांधी टोपी और अपनी स्वाभाविक विनम्रता में शास्त्री जी के समान व्यक्तित्व लगा करते थे। उनकी दृष्टि में मिलने वालों के प्रति बड़ा महत्व होता था। इस तरह की विशेषताएं उनके व्यक्तित्व को और भी बड़ा बनाती थीं।' उक्त उद्गार प्रसिद्ध वक्ता एवं विचारक कनक तिवारी ने समाजरत्न पतिराम साव सम्मान समारोह में मुख्य अतिथि की आसंदी से व्यक्त किए। समारोह की अध्यक्षता कर रहे संसदीय सचिव विजय बघेल ने अपने छत्तीसगढ़ी उद्बोधन में कहा कि 'हमर दुर्ग जिला ह स्वतंत्रता सेनानी अउ समाजसेवी मन के छत्तीसगढ़ के सब ले बड़े गढ़ रहे हे.. जेन मन इहां के समाज ला आगू बढ़ाय बर बड़े काम करे हवयं। ऐमा पतिराम सावजी हा अइसन समाजसेवी रिहिन हवयं जेन जमीनी स्तर पर अपन काम करके देखाइन हवयं। आज भी साहू समाज में अउ साव परिवार में अइसना संस्कारी मन हवयं जउन मन समाज बर काम करे बर आगू आत हवयं।’ कार्यक्रम के विषेष अतिथि छत्तीसगढ़ सहकारी समिति, भिल