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छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

लघु भारत भिलाई का आभार

मैंनें छत्तीसगढ के असुरों के संबंध में एक लंबे आलेख में भारत और छ्त्तीसगढ  के लोहे के विश्वव्यापी उपयोग के इतिहास के सम्बन्ध मे लिखा है जो आज के संदर्भ में आवशयक है इसलिये इसे यहां सन्दर्भित कर रहा हूं. भिलाई स्टील प्लांट  के  पूर्व के इतिहास को खंघालने से हमे पता चलता है कि सन् 1930 में सर दाराबजी टाटा को नागपुर पुरातत्व संग्राहालय में एक पुराना भौगौलिक नक्शा मिला और उससे उन्हें ज्ञात हुआ कि नागपुर के उत्तर पूर्वी क्षेत्र छत्तीसगढ के तरफ भारी मात्रा में लौह अयस्क भंडार है. 
इसके चलते वे छत्तीसगढ के दुर्ग नगर तक आये और इसके डौंडी तहसील के लौह अयस्क भंडार को देखकर आश्चर्यचकित हो गए. उन्होंनें प्रारंभिक तौर पर ठाना कि यहां वृहद स्टील प्लांट का निर्माण किया जाए किन्तु मौजूदा लौह भंडार के अनुपात में जल व कोयले की पर्याप्त मात्रा नजदीक में नहीं होने की वजह से उन्होंनें यहां वृहद स्टील प्लांट के निर्माण का इरादा बदल दिया और वे बिहार के जमशेदपुर में तद्समय के वृहद स्टील प्लांट का निर्माण कर टाटानगर बसा दिया. 
यहां छत्तीसगढ में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की दूरदृष्टि से भिलाई में सोवियत रूस के सहयोग से भिलाई स्टील प्लांट का निर्माण हुआ जो विश्व के सर्वाधिक उत्पादन का कीर्तिमान पर कीर्तिमान स्थापित करता रहा. इस वर्ष भी यह शिखर पर रहा. इसे 8 वी और 9 वी बार प्रधानमंत्री ट्राफी प्रदान किया गया.  इस अवसर पर हम हमारे ब्लागर साथी बी एस पाबला जी, विनोद साव जी, अशोक सिंघई जी सहित भिलाई स्टील प्लांट के सभी अधिकारियो/कर्मचारियो का हृदय से अभिनन्दन करते है.
संजीव तिवारी

टिप्पणियाँ

  1. लगता है कि यह आलेख अपने विस्तृत रूप में आप पहले भी पढवा चुके हैं मुझे !
    कहीं यह मेरा भ्रम तो नहीं ?

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  2. संभवतः कीर्तिमान वाली बात को छोड़कर !

    जवाब देंहटाएं
  3. लगातार कीर्तिमानों की नईं ऊँचाईयाँ छू रहे भिलाई इस्पात संयंत्र का एक हिस्सा होने की वजह मात्र से मैं कुछ अधिक ही गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ

    आभार सभी समर्पित साथियों का

    बी एस पाबला

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  4. भिलाई प्लांट और उस के कर्मचारियों प्रबंधकों को बधाई। यह इस बात का भी द्योतक है कि सार्वजनिक क्षेत्र में बहुत दम है।

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  5. बाकी सब ठीक लेकिन ये बताओ भैया, ये 50X4 अर्थात 50 बाई4 कालम का अखबारी विज्ञापन आपने ब्लॉग पे कैसे ले लिया

    ;)

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  6. उत्तम समाचार.

    भिलाई स्टील प्लांट में कार्यरत सभी ब्लॉगरर्स का हादिक अभिनन्दन!

    छत्तीसगड्ग के लिए गौरव का विषय है.

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  7. भिलाई के विषय में बहुत ही अच्छी जानकारी दी आपने संजीव जी!

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  8. मै अभी दुर्ग गई थी एक सेमिनार में ,तो भिलाई जाना हुआ ! वहां के जनसम्पर्क अधिकारी मि० अज़ीज़ खान कर्तव्य निष्ठ ,और शायर हैं !
    छतीस गढ़ शांत और सुंदर है !आप की पोस्ट अच्छी लगी धन्यवाद !

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