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छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

रामेश्वर वैष्णव की अनुवादित हास्य कविता मूल आडियो सहित

रामेश्वर वैष्णव जी  छत्तीसगढ के जानेमाने गीत कवि है, इन्होने हिन्दी एव छत्तीसगढी मे कई लोकप्रिय गीत लिखे है. कवि सम्मेलनों मे मधुर स्वर मे वैष्णव जी के गीतो को सुनने में अपूर्व आनन्द आता है. वैष्णव जी का जन्म 1 फरवरी 1946 को खरसिया मे हुआ था. इन्होने अंग्रेजी मे एम.ए. किया है और डाक तार विभाग से सेवानिवृत है. इनकी प्रकाशित कृतियो मे पत्थर की बस्तिया, अस्पताल बीमार है, जंगल मे मंत्री, गिरगिट के रिश्तेदार, शहर का शेर, बाल्टी भर आंसू, खुशी की नदी, नोनी बेन्दरी, छत्तीसगढी महतारी महिमा, छत्तीसगढी गीत आदि है. 
मयारु भौजी, झन भूलो मा बाप ला, सच होवत सपना, गजब दिन भइ गे सहित कई छत्तीसगढी फिल्मो का इन्होने लेखन किया है. वैष्णव जी छत्तीसगढ के कई सांसकृतिक संस्थाओ से भी सम्बध है. इनकी छत्तीसगढी हास्य कविताओं के लगभग 20 कैसेट्स रिलीज हो चुके है . आज भी रामेश्वर वैष्णव जी निरंतर लेखन कर रहे है.  इन्हे मध्यप्रदेश लोकनाट्य पुरस्कार, मुस्तफ़ा हुसैन अवार्ड 2001, श्रेष्ठ गीतकार अवार्ड और अनेक सम्मान व पुरस्कार प्राप्त हो चुके है. 
वैष्णव जी की एक छत्तीसगढी हास्य कविता का आडियो अनुवाद सहित हम यहा प्रस्तुत कर रहे है, मूल गीत गुरतुर गोठ में उपलब्‍ध है. भविष्य मे हम इनकी हिन्दी कविताओ को भी प्रस्तुत करेंगे -
पैरोडी - तुम तो ठहरे परदेशी साथ क्‍या निभाओगे (अलताफ़ राजा)

बस मे मैं कब से खडा हूँ मुझे बैठने की जगह दे दो
ले दे के घुस पाया हूँ मुझे निकलने के लिये जगह दे दो
भीड मे मै दबा हूँ सास लेने के लिये तो जगह दो
मै तो सास लेने का प्रयाश कर रहा हूँ
तुम कितना धक्का दे रहो हो
मै भीड मे दबा हूँ सास लेने के लिये तो जगह दे दो
भेड बकरियो की तरह आदमियो को बस मे भर डाले हो
ये समधी जात भाई मेरी लडकी के लिये 
लडका भले तुम ना दो पर मुझे सीट तो दे दो 
बस मे खडा यह लडका मिर्च का भजिया खाया है, 
इसका पेट खराब है, इसका कोई भरोसा नही है, 
दौड कर जावो, जल्दी इसे दवा तो दे दो

रामेश्वर वैष्णव

टिप्पणियाँ

  1. हा हा!! आनन्द आ गया....खुद ही क्या क्यूजिक भी डाल देते है..वाह!!

    बहुत आभार इस विल्क्षण प्रतिभा को सुनवाने का.

    जवाब देंहटाएं
  2. mere param mitr- bade bhaaeee kahe,-vaishnav ji ke baare parh kar achcha lagaa anek manchon par unkae saath kavitaye parhta raha hoo. ve safal haasy kavi hai.

    जवाब देंहटाएं
  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  4. संजीव भाई टिप्पणी लिखी तो थी पर मिटा दी ! आज टिप्पणी नहीं कर सकूंगा !

    जवाब देंहटाएं
  5. रामेश्वर जी से सम्पर्क करो और उनकी कविता " बने करे राम मोला अन्धरा बनाय " की रचना की प्रष्ठ्भूमि सहित प्रस्तुत करो .. उनसे पूछना ज़ोरदार किस्सा सुनयेंगे ।

    जवाब देंहटाएं
  6. संजीव भाई तंहू ल पाय लगी
    अच्छा ओखर परिचय प्रकाशित करे हस
    अभी १ बजे रात के सुने के टेम नई लागत हे
    नई त सुन्तेंव जरूर
    बहुत बढ़िया

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