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छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

धीरज धरें हिन्दी ब्लागजगत मे लाखों रुपये बरसने वाले हैं

हिन्दी ब्लाग जगत में लगातार नये ब्लागरों के आगमन एवं वर्तमान ब्लागरों की चढ-बढ कर ली जा रही हिससेदारी यह शुभ संदेश देती है कि हिन्दी ब्लागरी का भविष्य उज्वल है. हिन्दी ब्लागरों के द्वारा ब्लाग से कमाई संबंधी पोस्टों पर अधिकाधिक चटका लगाना यह संकेत देता है कि अधिकांश ब्लागरों के मन में हिन्दी ब्लागरी से कमाई करने की आशा जीवंत है जो आज नहीं तो कल साकार अवश्य होगी. अभी भी गूगल एड सेंस व अन्य विज्ञापनों एवं नेट तकनीक में हिन्दी समर्थित कार्य करते हुए कई लोग बिना हो हल्ला किए भी अच्छा कमाई कर रहे हैं किन्तु बहुसंख्यक हिन्दी ब्लागरों के पहुच से अभी दिल्ली बहुत दूर है. हम गूगल एड सेंस या अन्य विज्ञापन के द्वारा हिन्दी ब्लागिंग में कमाई के प्रति उतने आशान्वित नहीं हैं किन्तु ब्लागिंग के द्वारा कमाई के अन्य पहलुओं पर हमें ज्यादा भरोसा है. इसके संबंध में हमने पहले भी पोस्ट लिखा था.

अभी पिछले दिनों हमारे इस सोंच को पुन: बल मिला. हिन्दी ब्लाग में प्रोत्साहन के लिए दिये जाने वाले पुरस्कारों का यदि आर्थिक आकलन किया जाए तो यह भी एक प्रकार से ब्लागिंग से लाभ माना जाएगा . हिन्दी ब्लागरों को लाभ के इस पहलू पर भी विचार करना चाहिए एवं पुरस्कार प्राप्त करने हेतु प्रयास करना चाहिए. हिन्दी ब्लागों में ऐसे पुरस्कारों का आगाज हिन्द युग्म नें किया था, हिन्द युग्म जनवरी 2007 से यूनिकोड-हिन्दी के प्रयोग के प्रचार और प्रसार के उद्देश्य से माह के चुनिंदा हिन्दी कविताओं के लिए लगभग  300 रू. की किताबें पुरस्कार स्वरूप देता रहा है जो आज बढते हुए लगभग 1000 रू. तक पहुच चुका है. उनका यह क्रम अनवरत जारी है. पिछले माह तक प्राप्त जानकारी के अनुसार रचनाकार में व्यंग्य लेखन पुरस्कार की राशि भी क्रमश: बढते हुए 10000 रू. से भी अधिक तक पहुच गई थी.

वर्तमान परिदृश्य में हिन्दी ब्लागिंग से कमाई का यह ग्राफ बहुत उपर तक पहुच गया है. हिन्दी ब्लागजगत के प्रोत्साहन के लिए अलबेला खत्री जी द्वारा जारी पोस्टों का हम अवलोकन करें तो यह स्पष्ट  हो जाता है. वर्ष 2009 के लिए हिन्दी ब्लॉग जगत के सर्वश्रेष्ठ  ब्लागर को रू. 25000 नगद,  टिप्पणीकर्ता को रू. 11000 नगद, विशेष पुरस्कार के रूप में रू. 51000 एवं अन्य सम्मान व पुरस्कार दिये  जाने वाले थे. इसके अतिरिक्त दमन में  100 चुनिंदा ब्लागरों को दिन भर की मौज मस्ती आदि पर खर्च होने वाले थे, कुल मिला कर ब्लागरों के इस सम्मेलन में खूब पैसा खर्च होने वाला था (मेरे अनुमान के अनुसार लगभग डेढ से दो लाख). दुर्भाग्य से यह आयोजन वर्तमान में नहीं हो सका किन्तु हमें विश्वास है भविष्य में यह आयोजन अवश्य ही होगा और निरंतर होगा. आगामी भविष्य में होने वाले ऐसे आयोजनो-पुरस्कारों-प्रोत्साहनों का आर्थिक आकलन बढते क्रम में ही होगा.

यद्धपि आप यह कह कर इस पोस्ट को दरकिनार कर सकते हैं कि यह लाभ तो उन्हें होगा जिन्हें पुरस्कार मिलेंगें, हमें क्या. किन्तु भविष्य में पुरस्कार आपको भी मिल सकता है. इसलिए उम्मीद का दामन मत छोडिये. क्योंकि .....


हिन्दी के नाम पर
लाभ कमाने का असल सूत्र
जिसके भी झोली में  आया है
उसने हर मौके पर
रुपये के साथ साथ
अपना नाम कमाया है.


संजीव तिवारी

टिप्पणियाँ

  1. आशावादी लेख के लिए धन्‍यवाद !!

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  2. सत्य वचन
    इस विषय पर गभीरता से सोचना होगा।
    आलेख के लिए शुक्रिया।

    जवाब देंहटाएं
  3. हिन्दी के नाम पर
    लाभ कमाने का असल सूत्र
    जिसके भी झोली में आया है
    उसने हर मौके पर
    रुपये के साथ साथ
    अपना नाम कमाया है.



    हमको तो भैये आपका यही सूत्र समझ आया !!!

    जय हो !!!

    जवाब देंहटाएं
  4. धरे हुए हैं धी्रज… तीन साल से…। देखते हैं आगे क्या होता है।

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  5. च्क़लो9 इस आलेख से एक आशा तो जगी कि कम से कम नेट का खरच ही निकल आये। धन्यवाद्

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  6. Chalo is bahane hi sahi log ab blogging to karenge

    aasha jagana aur aise hi housla badhate rahna
    bahut achcha hai

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  7. इस आशावादी लेख के लिये धन्यवाद संजीव जी!

    हिन्दी ब्लोगिंग से निकट भविष्य में कमाई अवश्य होगी और पुरस्कारों की अपेक्षा विज्ञापनों से अधिक कमाई होगी किन्तु इसके लिये एक बहुत बड़ा पाठक वर्ग तैयार करना नितान्त आवश्यक है।

    जवाब देंहटाएं
  8. बन्धु, आप हमें दस हजार महीने कमाने का जुगाड़ बता दो! नौकरी छोड़ी जाये।

    जवाब देंहटाएं
  9. उम्मीद पर दुनिया कायम है. धन लाभ हो अथवा न हो नाम तो होता ही है और ब्लोगरी तो सुख भी बहुत देता है.

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  10. आशाओं के दीप जल रहे हैं ओर आपके इस लेख से उनकी लौ थोडी ओर ऊँची हुई है......

    जवाब देंहटाएं
  11. और ब्लोगर छाता लेकर खडे है
    कही उन पर नोटो की बारिश ना हो जाये

    जवाब देंहटाएं
  12. और ब्लोगर छाता लेकर खडे है
    कही उन पर नोटो की बारिश ना हो जाये

    जवाब देंहटाएं
  13. और ब्लोगर छाता लेकर खडे है
    कही उन पर नोटो की बारिश ना हो जाये

    जवाब देंहटाएं
  14. i subscribe your blog by e-mail but i not got any update in my inbox.
    my email is bhagatbhopal@gmail.com

    जवाब देंहटाएं

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आपकी टिप्पणियों का स्वागत है. (टिप्पणियों के प्रकाशित होने में कुछ समय लग सकता है.) -संजीव तिवारी, दुर्ग (छ.ग.)

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