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छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

अंग्रेज सरकार ने दिनकर के पीछे लगवा दिए थे जासूस

आईये 23 सितंबर 1908 में बिहार के तत्कालीन मुंगेर जिले के बेगूसराय जिले में जन्मे दिनकर जी को आज याद कर लें-



जला अस्थियां बारी-बारी
चिटकाई जिनमें चिंगारी,
जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर
लिए बिना गर्दन का मोल।
कलम, आज उनकी जय बोल

जो अगणित लघु दीप हमारे
तूफानों में एक किनारे,
जल-जलाकर बुझ गए किसी दिन
मांगा नहीं स्नेह मुंह खोल।
कलम, आज उनकी जय बोल

पीकर जिनकी लाल शिखाएं
उगल रही सौ लपट दिशाएं,
जिनके सिंहनाद से सहमी
धरती रही अभी तक डोल।
कलम, आज उनकी जय बोल

अंधा चकाचौंध का मारा
क्या जाने इतिहास बेचारा,
साखी हैं उनकी महिमा के
सूर्य चन्द्र भूगोल खगोल।
कलम, आज उनकी जय बोल
रामधारी सिंह 'दिनकर' जी की कविता 'कविता कोश' से साभार

टिप्पणियाँ

  1. बने जनकारी देवत हस संगी,रामधारी सिंग दिनकर जी बारे में "सिंहासन खाली करो जनता आती हैं" लेकिन कौनो खाली नई करय तीन पहारो होगे अगोरत,ये दे मन खाली करही अऊ हमिच मन बईठबो
    दिल के बात दिले मा रही जाथे, साठ गावं ला छेरी खा दे थे, बधाई हो ........................................

    जवाब देंहटाएं
  2. दिनकर साहब को श्रधांजलि

    जवाब देंहटाएं
  3. दिनकर साहब को श्रधांजलि

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ही सुन्दर रचना। दिनकर साहब को श्रधांजलि

    जवाब देंहटाएं
  5. आज दिनकर जी को याद कर आपने सच्ची श्रधांजलि दी है . हमारी भी श्रधांजलि अर्पित है

    जवाब देंहटाएं
  6. दिनकर जी की स्मृति को प्रणाम हमने भी सन् 1972 में बाराँ में लोगों को इकट्ठा कर दिनकर साहित्य समिति बनाई थी। आज भी चल रही है।

    जवाब देंहटाएं
  7. दिनकर जी को अब लोग भूलने लग गये है ..यह याद दिलाना बहुत ज़रूरी है ।

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आपकी टिप्पणियों का स्वागत है. (टिप्पणियों के प्रकाशित होने में कुछ समय लग सकता है.) -संजीव तिवारी, दुर्ग (छ.ग.)

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