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छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

पितृ तर्पण और शिवनाथ

पितृ पक्ष के साथ ही हमें शिवनाथ की याद आ गई और हम पक्ष के पहले दिन सुबह हमारे घर से लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर शिवनाथ नदी पितृ तर्पण के लिए गए. बहुत दिनों बाद उस नदी को पाकर मन अति आनंदित हुआ. मेरा गांव इस नदी के किनारे खारून नदी के संगम के तुरंत बाद है और मैनें बचपन से आजतक इसे अपने दिल के बहुत ही करीब पाया है. लगभग सात किलोमीटर पैदल सिमगा पढ़ने जाने पर कई कई बार इसने मेरा रास्‍ता रोका है और कई कई बार मैनें इसकी उत्‍श्रंखलता को धता बतलाते स्‍कूल के रास्‍ते में आने वाले इसके सहायक नालों को पार करते हुए हुए इसके सिमगा पुल के उपर चढ़ जाने के बावजूद अपने बचकाने हाथ से साथी बच्‍चों के दल के साथ हाथ से हाथ थाम कर अपने बस्‍ता को बचाते हुए पुल पार किया है. पुल के इस पार आकर जोर से अट्टहास भी लगाया है कि 'तू..तू मुझे छकायेगी....' बहुत अच्‍छा लगाता है जब मैं अपने पुत्र को यह वाकया सुनाता हूं. ............... और भी बहुत सी यादें हैं इसके साथ.

आज दूसरे दिन जब मैं सुबह तर्पण के लिए नदी जाने के लिए निकलने लगा, मेरा पुत्र भी शिवनाथ जाने की जिद करने लगा. मैं उसे साथ लेकर दुर्ग के पुष्‍पवाटिका घाट आया. विगत वर्षों की भांति इस वर्ष कम वर्षा के कारण शिवनाथ में पानी बहुत कम है पर नदी में नहाने का आनंद कुछ अलग ही है. आज रवीवार होने के कारण भीड़ कुछ अधिक थी. मैंनें पुरखों को पानी दिया. इधर पुत्र नें कम पानी में बहुत मस्‍ती किया. किनारे में छिछले नदी के तेज घार का मजा लिया. कुल मिलाकर वह बहुत - बहुत 'हैप्‍पी' हुआ. उसके लिये यह नदी मात्र एक खेल है मेरे लिये इस नदी की क्‍या अहमियत है यह मैं उसे अभी तो नहीं समझा सकता हॉं, हो सकता है उम्र बढ़ने पर उसे कुछ समझ में आये.
संजीव तिवारी

टिप्पणियाँ

  1. बारिश हो जाने से नदियों तालाबों में पानी भर गया है .. मन को अनंदित करने के लिए इतना ही काफी है !!

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  2. संजीव जी आपकी पोस् और तस्वीरें देख कर अपना भी मन इस जगह को देखने का हो रहा है । बडिया पोस्ट है शुभकामनायें

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  3. संजीव जी आपकी पोस् और तस्वीरें देख कर अपना भी मन इस जगह को देखने का हो रहा है । बडिया पोस्ट है शुभकामनायें

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  4. शिवनाथ तो बहुत अच्छे आकार की नदी लग रही है। गंगा से तुलनीय!

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  5. ऐसे नदी में नहाए और तैरे बहुत दिन हो गए।

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  6. बढ़िया

    वैसे आपका जाना तब हुआ जब पानी कम था।
    कुछ दिन पहले वाली बाढ़ में तो पानी से दूर ही रहते :-)

    चित्र बहुत छोटे हैं, बस आभास ही होता है दृश्य का

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  7. प्रकृति से दूर होते बच्चों को उसका महत्व समय रहते ही समझाना होगा।

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  8. प्रकृति से दूर होते बच्चों को उसका महत्व समय रहते ही समझाना होगा।

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  9. नदी से जुडाव होना बहुत प्राकृतिक है .. लेकिन नदी जीवन से बहुत दूर हो गयी है .. नदी के लिए न लोगों के पास समय है न कोई एहसास और बिडम्बना ये की उसके बिना जीवन संभव ही नहीं है .. अपकी कलम नदी के छींटे कंप्यूटर तक ले आई ..

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  10. मैने भी बाबूजी की अस्थियाँ यहीं शिवनाथ मे विसर्जित की थी तुम्हारे लेख से उनकी याद आ गई । कभी कभार नदी जाते समय मुझे भी बुला लिया करो । शिवनाथ का सौन्दर्य तो अद्भुत है । शरद कोकास दुर्ग छ.ग.

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