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सितंबर, 2009 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

रावण तुम कभी मर नहीं सकते .......

मेरी पुरानी पोस्‍ट पढें - आर्य अनार्यों का सेतु : रावण

कौन कौन संजीव तिवारी हैं हिन्‍दी नेटजगत / ब्‍लागजगत में...

हिन्‍दी ब्‍लाग जगत में मैंनें अपने नाम का पेटेन्‍ट तो नहीं कराया है और ना ही अपने नाम का कोई ट्रेडमार्क लिया है फिर भी मुझे विस्‍वास है कि आज दिनांक तक तो मेरे नाम का कोई भी व्‍यक्ति हिन्‍दी ब्‍लाग जगत में नहीं है. और यदि कहीं अपवादस्‍वरूप है भी तो छत्‍तीसगढ के मामलों में इंटरनेट पर हिन्‍दी में लिखने वालों में तो बिल्‍कुल भी नहीं है. आप सोंच रहे होंगें कि यह सब लिखने का तात्‍पर्य क्‍या है तो आईये मैं आपको बतलाता हूं. 24.09.09 को रात में मैं जब अपना मेल बाक्‍स खोला तो उसमें जयप्रकाश मानस जी का एक मेल आया था. यह - मुकेश जी, आप नाहक ही जयप्रकाश के मानस के पीछे पड़े हुए हैं. जयप्रकाश से एक ही गलती हुई है कि उन्होंने अपने नाम के साथ अपना पूरा परिचय नहीं लिखा है. जयप्रकाश मानस ऊर्फ जयप्रकाश रथ शिक्षाकर्मी रहे है और भ्रष्टाटार के आरोप में लगातार निलंबित होने का रिकार्ड बनाया है. बाद में जब उनकी बहाली हुई तो अब वे राज्य के पुलिस मुख्यालय में पुलिस प्रवक्ता के पद पर तैनात कर दिए गए. अब डीजीपी विश्वरंजन के साथ रह कर उन्हें भ्रम होने लग गया है कि राज्य के सबसे बड़े साहित्यकार हैं सो पुलिस

अंग्रेज सरकार ने दिनकर के पीछे लगवा दिए थे जासूस

आईये 23 सितंबर 1908 में बिहार के तत्कालीन मुंगेर जिले के बेगूसराय जिले में जन्मे दिनकर जी को आज याद कर लें- जला अस्थियां बारी-बारी चिटकाई जिनमें चिंगारी, जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर लिए बिना गर्दन का मोल। कलम, आज उनकी जय बोल जो अगणित लघु दीप हमारे तूफानों में एक किनारे, जल-जलाकर बुझ गए किसी दिन मांगा नहीं स्नेह मुंह खोल। कलम, आज उनकी जय बोल पीकर जिनकी लाल शिखाएं उगल रही सौ लपट दिशाएं, जिनके सिंहनाद से सहमी धरती रही अभी तक डोल। कलम, आज उनकी जय बोल अंधा चकाचौंध का मारा क्या जाने इतिहास बेचारा, साखी हैं उनकी महिमा के सूर्य चन्द्र भूगोल खगोल। कलम, आज उनकी जय बोल रामधारी सिंह 'दिनकर' जी की कविता 'कविता कोश' से साभार नमन  'दिनकर' हिन्‍दुस्‍तान डाट काम का लेख पढें - अंग्रेज सरकार ने दिनकर के पीछे लगवा दिए थे जासूस (हिन्‍दुस्‍तान डाट काम से साभार) 

छत्‍तीसगढ से परजीवियों के लिए सुसमाचार

समाचार है कि योजना आयोग व छत्तीसगढ शासन के अधिकारियों के बीच पिछले दिनों हुई बैठक में दोनों पक्षों के बीच कुल 18310.32 करोड रुपए के योजना पर सहमति बन गई है। इसमें केंद्र द्वारा संचालित योजना, ऑफ बजट स्कीम व केंद्र-क्षेत्रीय व्यय भी शामिल हैं। इस बात की संभावना मजबूत है कि राज्य के पिछले प्रदर्शन को देखते हुए आवंटन और ज्यादा हो। आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहुलवालिया व मुख्यमंत्री डा रमन सिंह के बीच अगले कुछ दिनों में होनेवाली बैठक में इसको अंतिम स्वीकृति दी जाएगी व इसकी घोषणा की जाएगी। छत्तीसगढ योजना बोर्ड के उपाध्यक्ष डा डीएन तिवारी ने बताया कि पिछली बार राज्य की कुल योजना 14000 करोड रुपए की थी, जबकि इस बार योजना 18310 करोड रुपए की है। राज्य ने अपनी योजना में दो हजार एनीकेट बनाने की योजना के लिए आर्थिक सहयोग की मांग की है। आज की बैठक में जल प्रबंधन पर सर्वाधिक जोर देते हुए कहा गया कि राज्य के पानी के समुद्र में बहाव को रोकने व उसके कृषि व औद्योगिक उपयोग के लिए दो हजार एनीकट व ढाई हजार लघु सिंचाई योजनाओं पर जोर देना होगा। सूत्रों के अनुसार अकेले इस योजना का व्यय लगभग 15 हजार करोड क

हिन्दी टूल किट Hindi Toolkit IME : आई एम ई को इंस्टाल करें एवं अपने कम्प्यूटर को हिन्दी सक्षम बनावें

कम्‍यूटर में हिन्‍दी सक्षम करने के विभिन्‍न औजार हैं जिनमें से मैं हिन्दी टूल किट Hindi Toolkit IME उपयोग करता हूं इसमें Transliteration, Remington (GAIL, CBI), Typewriter, Inscript, Webduniya, Anglo-Nagari की बोर्ड का विकल्‍प मौजूद है। इसमें ज्‍यादा उपयोगी रेमिंगटन और फोनेटिक की बोर्ड का विकल्‍प है जो एक ही टूल में विद्यमान है।। मैं कम्‍प्‍यूटर में हिन्‍दी टाईपिंग के लिए पहले डब्‍लू एस में अक्षर, पेजमेकर में श्री लिपि फिर वर्ड में कृतिदेव एवं क्‍वार्क में चाणक्‍य फोंट पर काम करता था। मेरी उंगलियां रेमिंगटन एवं गोदरेज कीबोर्ड के अनुसार काम करती हैं। आईएमई से मैनें वही यूनीकोड हिन्‍दी फोंट कीबोर्ड पाया जो मैं कम्‍प्‍यूटर पर डॉस के समय से लगभग पंद्रह-बीस वर्ष से प्रयोग कर रहा हूं। देखें क्रमबद्ध संस्‍थापना निर्देश (एक्‍सपी के लिए) - नीचे दिये लिंक को क्लिक कर IME हिन्दी टूल किट डाउनलोड करें, यह लिंक श्रीश शर्मा जी द्वारा सहेजा गया है इसका आकार 1.23 एमबी है  - IME हिन्दी टूल किट डाउनलोड - रेमिंगटन, फॉनेटिक सहित 7 प्रकार के हिन्दी कुंजीपट सहित इसे क्लिक कर अपने कम्‍प्‍यूटर में इस टूल क

मुक्तिबोध की यादें : रायपुर से

विगत दिनों रायपुर में मुक्तिबोध के निर्वाण तिथि 11 सितम्‍बर को उन्‍हें याद करते हुए शव्‍दशिल्‍पी इकत्रित हुए.जिसमें मुक्तिबोध की स्‍मृतियां मुखरित हुई.प्रसिद्ध कवि अशोक बाजपेयी ने अपने उद्गार व्‍यक्‍त करते हुए कहा कि मुक्तिबोध ने अपनी 47 वर्ष की अल्पायु में जो कीर्ति हासिल की वह बहुत कम साहित्यकारों ने अर्जित की। वे हिंदी साहित्य के एकमात्र गोत्रहीन कवि-आलोचक थे जिनकी परंपरा में कोई पूर्वज परिलक्षित नहीं होता। मुक्तिबोध को आत्मवियोग का कवि बताते हुए उन्होंने कहा कि वे अंर्तकथा के कवि थे। अज्ञेय के अलावा वे नागाजरुन तथा त्रिलोचन के भी विलोम थे। वे जनप्रिय तो नहीं लेकिन जनधर्मी कवि अवश्य थे। समारोह में उपस्थित साहित्यकार दूधनाथ सिंह ने उन्हें विश्व मानस का कवि बताते हुए कहा कि इतिहास किस तरह लिखा जाए यह मुक्तिबोध ने ‘इतिहास का अनुनमामित’ में बखूबी दर्शाया है। मुक्तिबोध की राजनैतिक दृष्टि पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि आजादी के बाद की भारतीय तथा वैश्विक राजनीतिक परिवेश पर की गई टिप्पणियां की प्रासंगिकता का उल्लेख किया। आयोजन के पहले सत्र में मुक्तिबोध की कविताओं तथा कहानियों का पाठ

परितोष चक्रवर्ती व डॉ. परदेशीराम वर्मा की कृति माटीपुत्र और फक्‍कडनामा का विमोचन

भारतीय साहित्‍य प्रकाशन मेरठ से डॉ. परदेशीराम वर्मा जी की कहानी संग्रह 'माटीपुत्र' तथा शिल्‍पायन दिल्‍ली से प्रकाशित परितोष चक्रवर्ती की कृति 'फक्‍कडनामा' का विमोचन संत कवि पवन दीवान एवं पूर्व मंत्री भूपेश बघेल नें दिनांक 14 सितम्‍बर को भिलाई में किया. विमोचन उद्बोधन में संत कवि पवन दीवान नें कहा कि पाठक स्‍वतंत्र होता है, वह लेखक-कवि की तरह बंधनों में नहीं होता. जिसकी किताब पठनीय होती है उसे ही पाठक स्‍वीकारता है. माटीपुत्र और फक्‍कडनामा में पठनीयता का गुण भरपूर है. छत्‍तीसगढ़ के ये दोनों लेखक लगातार लिख रहे हैं. इन्‍होंनें लेखन में यश और महत्‍व दोनों प्राप्‍त किया है. प्रख्‍यात कथाकार डॉ.रमाकांत श्रीवास्‍तव नें कहा कि परितोष चक्रवर्ती के लेखन में संघर्षशीलता हम देखते हैं. साहस के साथ वे सच को उद्घाटित करते हैं. परदेशीराम वर्मा महत्‍वपूर्ण कथाकर हैं. आंचलिक कथाकरों के संबंध में एक साक्षातकार में मैंनें बिहार के मिथलेश्‍वर और बुंदेलखण्‍ड के महेश कटारे तथा छत्‍तीसगढ के परदेशीराम वर्मा का विशेष उल्‍लेख किया हैं. ये तीनों कथाकार भारत के गांवों की अंतरूणी सच्‍चाई के जानका

जुडूम जुडूम सलवा जुडूम : बिना टिप्‍पणी

जुडूम मामले पर प्रशासन सख्त हरिभूमि न्यूज न क्सलियों के खिलाफ शुरू हुऐ शां ति अभियान मे चल रहे अनियमितता का दौर अब समाप्ति की ओर नजर आ रहा है। जिला प्रशासन के सख्त रवैय्यें के बाद सलवा जुडूम अभियान मे गड़बड़ झाला करने वालों पर कार्रवाई की गाज गिरनी शुरू हो गई है। वही दोरनापाल मामले मे जिला प्रशासन की निष्पक्ष कार्रवाई के बाद कोन्टा के पटवारी पर मामला दर्ज होने से ऐसे तत्वों मे हड़कंप व्याप्त हो गई है। प्राप्त जानकारी अनुसार वर्ष 2006 मे नक्सलियों के विरूद्ध शुरू हुऐ सलवा जुडूम आंदोलन ने कई तरह के उतार चढ़ाव देखे। इस दौरान राहत सामाग्री से लेकर राहत कार्यो तक मे विपक्षियों ने सरकार को घेरने मे कोई कसर नही छोड़ी। जिसके चलते यह आंदोलन मजबूत होने की बजाय इसके अस्तित्व को लेकर कई तरह के सवाल खड़े हो गऐ । वही वर्तमान जिला कलेक्टर श्रीमति रीना कंगाले के द्वारा पीडीएस व जुडूम मे हो रही अनियमितताओं पर कड़ी नजर रखते हुऐ कार्रवाई पर कार्रवाई शुरू कर दी। सलवा जुडूम अभियान को कमाई का एक मात्र जरिया समझने वालों के लिऐ यह दौर अब कठिनाईयों भरा साबित होने लगा है।  कलेक्टर श्रीमति रीना कंगाले द्वार

हबीब तनवीर की कविता 'रामनाथ'

रामनाथ नें जीवन पाया साठ साल या इकसठ साल रामनाथ नें जीवन में कपड़े पहने कुल छह सौ गज़ पगड़ी पॉंच, जूते पंद्रह रामनाथ नें अपने जीवन में कुल सौ मन चावल खाया सब्‍जी दस मन, फाके किए अनगिनत, शराब पी दो सौ बोतल अजी पूजा की दो हज़ार बार रामनाथ नें जीवन में धरती नापी कुल जुमला पैंसठ हज़ार मील सोया पंद्रह साल. उसके जीवन में आसीं, बीबी के सिवा, कुल पाँच औरतें एक के साथ पचास की उम्र में प्‍यार किया और प्‍यार किया नौ साल सत्‍तर फुट कटवाये बाल और सत्रह फुट नाख़ून रूपया कमाया दा हज़ार या ग्‍यारह हज़ार कुछ रूपया मित्रों को दिया, कुछ मंदिर को और छोड़ा कुल आठ रूपये उन्‍नीस पैसे का क़र्ज ... ... बस, यह गिनती रामनाथ का जीवन है इसमें शामिल नहीं चिता की लकड़ी, तेल, कफ़न, तेरहीं का भोजन रामनाथ बहुत हँसमुख था उसने पाया एक संतुष्‍ट-सुखी जीवन चोरी कभी नहीं की-कभी कभार कह दिया अलबत्‍ता बीबी से झूठ एक च्‍यूँटी भी नहीं मारी- गाली दी दो-तीन महीने में एक आध बच्‍चे छोड़े सात भूल चुके हैं गॉंव के सब लोग अब उसकी हर बात. हबीब तनवीर (वर्तमान साहित्‍य के सितम्‍बर 09 के अंक में प्रकाशित सत

हर मर्ज की दवा है यहॉं ..छुट्टी भूल जावो ....

पिछले दो माह में दो बार एक दो दिन के लिये बीमार पड़ा तो सोंचता रहा 'सीजनल बुखार' है सो एन्‍टीबायोटिक व दर्द-बुखार की दवा लिये और दौड पड़ी हमारी बाईक सड़कों पर. यद्धपि काम में मन पिछले पन्‍द्रह दिन से नहीं लग रहा था पर ये कोई तुक नहीं कि काम में मन नहीं लग रहा है तो कार्यालय नहीं जाए या काम न करें. किन्‍तु पिछले रविवार से पुन: रोज शाम और रात को शरीर का तापमान सामान्‍य से अधिक रहने लगा. तो खूंन जांच करवा लेना हमने उचित समझा, जांच करवाया तो पता चला 'टायफाईड' है. डाक्‍टर नें टायफाईड की दस दिन की दवाई दी और कहा घर में आराम करो. हमने अपनी बत्‍तीसी निपोरी और हो हो हो करते हुए कहा अवश्‍य डॉक्‍टर साहब. आज सुबह सुबह श्रीमतिजी को ज्ञानदत्‍त पाण्‍डेय जी के गंगा टैगित सभी पोस्‍टों एवं चित्रों का दर्शन कराकर गंगा स्‍नान का पुण्‍यलाभ प्राप्‍त किया और इस पोस्‍ट को 'बीमार' होते हुए भी पब्लिश करने का अवसर भी किन्‍तु जैसे ही पब्लिश बटन दबाने वाला था बिजली नें करंट, शिकायत केन्‍द्र व अधिकारियों के मोबाईलों सहित आंखें मूंद ली. समाचार पत्र देखा तो ज्ञात हुआ शाम तीन बजे सो के उठेगी

पितृ तर्पण और शिवनाथ

पितृ पक्ष के साथ ही हमें शिवनाथ की याद आ गई और हम पक्ष के पहले दिन सुबह हमारे घर से लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर शिवनाथ नदी पितृ तर्पण के लिए गए. बहुत दिनों बाद उस नदी को पाकर मन अति आनंदित हुआ. मेरा गांव इस नदी के किनारे खारून नदी के संगम के तुरंत बाद है और मैनें बचपन से आजतक इसे अपने दिल के बहुत ही करीब पाया है. लगभग सात किलोमीटर पैदल सिमगा पढ़ने जाने पर कई कई बार इसने मेरा रास्‍ता रोका है और कई कई बार मैनें इसकी उत्‍श्रंखलता को धता बतलाते स्‍कूल के रास्‍ते में आने वाले इसके सहायक नालों को पार करते हुए हुए इसके सिमगा पुल के उपर चढ़ जाने के बावजूद अपने बचकाने हाथ से साथी बच्‍चों के दल के साथ हाथ से हाथ थाम कर अपने बस्‍ता को बचाते हुए पुल पार किया है. पुल के इस पार आकर जोर से अट्टहास भी लगाया है कि 'तू..तू मुझे छकायेगी....' बहुत अच्‍छा लगाता है जब मैं अपने पुत्र को यह वाकया सुनाता हूं. ............... और भी बहुत सी यादें हैं इसके साथ. आज दूसरे दिन जब मैं सुबह तर्पण के लिए नदी जाने के लिए निकलने लगा, मेरा पुत्र भी शिवनाथ जाने की जिद करने लगा. मैं उसे साथ लेकर दुर्ग के पुष्‍पवाटिका घा

स्‍वयं के द्वारा बस्‍तर बालाओं के मजेदार दैहिक भोग वृतांत हंस में : रामशरण जोशी

कुछ वर्ष पहले पत्रकार रामशरण जोशी नें हंस में दो किश्‍तों में लेख लिखा था. उसमें उन्‍होंनें लिखा था कि आपतकाल में दो माह के लिए वे बस्‍तर आये थे. वहां रहकर अपने आई.पी.एस.मित्र की कृपा से बस्‍तर की बालाओं के साथ उन्‍होंनें खुलकर दैहिक शोषण का खेल ख्‍ोला. जुगुप्‍ता उपजाने वाला अमर्यादित लंबा वृतांत दो किश्‍तों में छपा. उन्‍होंनें लिखा कि छत्‍तीसगढ में पदस्‍थ दीगर प्रांत के अफसर अपनी बीबी लेकर छत्‍तीसगढ में नहीं आते क्‍योंकि यहॉं औरतें आसानी से उपलब्‍ध रहती हैं. उन्‍होंनें यह भी लिखा कि जो अफसर बीबी लेकर छत्‍तीसगढ आता है उसे बेवकूफ समझा जाता है. हंस में छपे उस आलेख पर मैनें तुरंत प्रतिवाद किया. हंस संपादक राजेन्‍द्र यादव नें अगले अंक में लेखमाला के प्रकाशन के लिए माफी मांग ली. और किस्‍सा खत्‍म हो गया. मगर इस प्रकरण से यह तो जाहिर ही हो गया कि छत्‍तीसगढ़ और विशेषकर छत्‍तीसगढ़ी को कितनी हिकारत से तथाकथित सभ्‍य दुनिंया देखती है.  डॉ.परदेशीराम वर्मा जी के एक लेख का अंश. (छत्‍तीसगढ़ आसपास से साभार) रामशरण जोशी से संबंधित एक और पोस्‍ट पढ़ें - अपने करीबी देह संबंधों की कथा क्‍या सार्वजनिक की