विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों
मैं बहुत किशोरावस्था में ही कविता के प्रति आकर्षिक हो गया था और सौंदर्य के प्रति कविता में मैंनें कविता की उपमा दी है स्त्री से. क्योंकि वह सौंदर्य की प्रतिनिधि है.
सौंदर्य तो हिमालय के अंचल में पैदा होने के कारण मेरे घर का मेहमान रहा है, सदैव से. तो मैं यह कहना चाहता था कि भाई प्रेम की जो अवस्था आज है, जो स्थिति आज है, वह तो द्रोह से, मोह से, लांछन से, कर्दम से घिरी हुई है. हूं, वह कभी सार्थक होगी, मैने हमेशा स्त्री के लिये लिखा है् कि उसका हृदय तो तिजोरी में बंद है. उसको तो ऐसा होना चाहिये जैसे फूल अपने नाल से बंधा रहता है, वैसे स्त्री को अपने प्रियजन से, बंधा तो रहना चाहिये घर से, लेकिन अपने हृदय का सौरभ जैसे फूल सबों को देता है, वैसे भी स्त्री को अपनी भावना समस्त लोगों को देनी चाहिए जिससे कि भावना का आदान प्रदान हो सके. क्योंकि स्त्री का सबसे सुन्दर हिस्सा देह नहीं, उसकी भावना है.
अपनी कविता 'आत्मिका' की पंक्तियां 'कल्मष लांछन के कांटों में खिला प्रेम/ का फूल धरा पर/उसको छूना मौन भू-कर्दम में/ गिरना दुस्तर.' के संबंध में पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में महाकवि सुमित्रा नंदन पंत.
बहुत सुंदर उद्धरण! एकदम सच्ची बात। भावना देह की कुरूपता को असीम सुंदरता में परिवर्तित कर देती है।
जवाब देंहटाएंस्त्री का सबसे सुन्दर हिस्सा देह नहीं, उसकी भावना है. बहुत ही आदर्श बात कही है संजीव जी आप ने .
जवाब देंहटाएं- विजय
भावना का महत्त्व स्त्री पुरूष दोनों के लिए समान है।बहुत सुन्दर लिखा है।बधाई।
जवाब देंहटाएंसही कहा जी। भावना देह पर वरीयता रखती ही है।
जवाब देंहटाएंस्त्री के मन के भाव सुंदर होते हैं उसकी देह नहीं ... देह यदि सुंदर होती भी है तो सुंदर मन के कारन .. आपने बहुत सही लिखा की उसे अपने मन की खुशबू फूल के सौरभ की तरह फैलानी चाहिए बहुत कोमल बात कही
जवाब देंहटाएंस्री का मन और देह दोनों ही सुन्दर होना चाहिय जैसे की 'आम्रपालि' दुनिया की सबसे सुन्दर स्री ने सभी पुरुषो को अपने देह और मन दोनों से आकर्षित कर दिया.
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