तो ..... भिलाई की जगह टाटानगर बसा होता. सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

तो ..... भिलाई की जगह टाटानगर बसा होता.

दुर्ग जिले में लौह अयस्‍क भंडार होने के संबंध में सर्वप्रथम 1887 में भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण जिल्‍द बीस के अभिलेखों में पी.एन.बोस के द्वारा एक शोध पत्र के द्वारा बतलाया गया. इसके बाद से ही तत्‍कालीन मे.टाटा संस एण्‍ड कम्‍पनी की ओर से दुर्ग जिले में दिलचस्‍पी बढ गई थी. टाटा के द्वारा दुर्ग (तब रायपुर जिले का एक तहसील) के तत्‍कालीन डौंडी लोहारा जमीदारी के विशाल क्षेत्र में सर्वेक्षण अनुज्ञप्ति प्राप्‍त किया गया था एवं टाटा के द्वारा विपुल लौह भंडारों की जांच की गई थी.


टाटा के द्वारा लायसेंस प्राप्‍त करने के बाद सर्वप्रथम सन 1905 में राजहरा पहाडी में सर्वेक्षण प्रारंभ किया था. टाटा के द्वारा लगभग दो वर्ष इन क्षेत्रों में सर्वेक्षण किया गया एवं अचानक काम समेट लिया गया, और तत्‍कालीन बिहार में टाटानगर अस्तित्‍व में आया. टाटा के द्वारा काम समेटने को लेकर भारतीय उद्योग जगत में तब काफी चर्चा हुई थी पर टाटा नें अपनी चुप्‍पी नहीं तोडी थी.

सोवियत रूस के साथ हुए समझौते के तहत् सेल नें यहां भिलाई स्‍पात संयंत्र की स्‍थापना की और भिलाई अस्तित्‍व में आ गया. 1906 में टाटा नें यहां से कैम्‍प नहीं हटाया होता तो ....... यह टाटानगर कहलाता.

टिप्पणियाँ

  1. भू वैज्ञानिक श्री बोस के द्वारा बैलाडीला की पहाडियों के सर्वेक्षण की जानकारी थी परन्तु आप ने नयी जानकारी दी. आभार
    बैलाडीला पर हम से एक विस्तृत लेख सोमवार को प्रकाशित कर रहे हैं.

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  2. तब शायद भिलाई का नक्शा ही कुछ और होता।

    जवाब देंहटाएं
  3. फेर हमर नाम "टाटानगरी छत्तीसगढिया" होतीस

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  4. NICE INFORMATION.PEOPLE WOULD HAVE KNOWN RAJHARA AS "DALLI NAGAR" AND IT WOULD BE WELL CONNECTED BY RAIL THROUGH OUT THE COUNTRY.

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आपकी टिप्पणियों का स्वागत है. (टिप्पणियों के प्रकाशित होने में कुछ समय लग सकता है.) -संजीव तिवारी, दुर्ग (छ.ग.)

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