हाड़ माँस को देह मम, तापर जितनी प्रीति. सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

हाड़ माँस को देह मम, तापर जितनी प्रीति.

26 जुलाई को दुर्ग जिला हिन्‍दी साहित्‍य समिति द्वारा तुलसी जयंती पर कार्यक्रम आयोजित किया गया. छत्‍तीसगढ में हिन्‍दी के प्राध्‍यापक के रूप में अपनी दीर्धकालीन सेवायें दे चुके एवं प्रदेश के अधिकांश साहित्‍यकारों, शव्‍दशिल्पियों एवं विचारकों के प्रिय गुरू रहे वर्तमान में छतरपुर में निवासरत साहित्‍यकार डॉ.गंगाप्रसाद 'बरसैया' जी इस कार्यक्रम के मुख्‍य वक्‍ता के रूप में आमंत्रित थे. कार्यक्रम के अध्‍यक्ष प्रसिद्व भाषाविद एवं पं.रविवि के भाषाविज्ञान विभाग के प्रमुख डॉ. चित्‍तरंजन कर जी थे.




डॉ.गंगापंसाद 'बरसैया' जी नें रामचरित मानस एवं तुलसी पर सारगर्भित वक्‍तव्‍य दिया. इस अवसर पर उनके कई वयोवृद्व छात्र भी उपस्थित थे जिन्‍होंनें कहा कि उन्‍हें आज ऐसा महसूस हुआ कि बरसों बाद महाविघालय के क्‍लास में सर नें लेक्‍चर दिया. डॉ.गंगाप्रसाद 'बरसैया' जी नें तुलसी की रचना, देश-काल और परिस्थिति, पात्रों के चरित्रचित्रण, एवं शव्‍दशिल्‍प के संबंध भे गंभीर वक्‍तव्‍य दिया. डॉ. चित्‍तरंजन कर जी नें अपने अध्‍यक्षीय वक्‍तव्‍य में रामचरित मानस के 'महाकाव्‍य' होने एवं साहित्‍य के रूप में स्‍थापित होनें, व्‍याकरण और भाषा शिल्‍प के अनेक पहलुओं पर प्रकाश डाला.

दुर्ग में सांस्‍कृतिक आयोजनों के लिये शासन द्वारा भव्‍य मनोरंजन कक्ष का निर्माण किया गया था जिसे गोस्‍वामी तुलसीदास जी के सम्‍मान स्‍वरूप 'मानस भवन' नाम रखा गया है. प्रत्‍येक वर्ष दुर्ग साहित्‍य समिति द्वारा इस भवन के मुख्‍य सभागार में तुलसी जयंती का कार्यक्रम सम्‍पन्‍न होता रहा है. किन्‍तु इस वर्ष इस भावन को जादू शो के लिये किराये से दे दिया गया है इस कारण मुख्‍य सभागृह में यह कार्यक्रम नहीं हो सका, किन्‍तु उसी भवन में स्थित एक हाल में यह कार्यक्रम सम्‍पन्‍न हुआ.

कार्यक्रम के कुछ चित्र

दुर्ग स्थित मानस भवन सभागार प्रवेश द्वार

पट्टिका
मुख्‍य सभागार के बाजू में कार्यक्रम संपन्‍न हुआ
'मानस भवन' प्रांगण में लगी गोस्‍वामी जी की प्रतिमा 
माल्‍यार्पण - श्री कसार जी, श्री मुकुन्‍द कौशल जी, श्री कमलाकांत शर्मा जी
डॉ.गंगाप्रसाद 'बरसैया' जी के साथ ब्‍लागर
श्री मुकुन्‍द कौशल श्री डॉ.चित्‍तरंजन कर जी, श्री रवि श्रीवास्‍तव जी
डॉ.गंगाप्रसाद 'बरसैया' जी साहित्‍यकारों के साथ
कार्यक्रम में डॉ.गंगाप्रसाद 'बरसैया' जी
डॉ.गंगाप्रसाद 'बरसैया' जी

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