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छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

रावघाट प्रोजेक्ट को मिली मंजूरी : योद्धा का साकार हुआ स्‍वप्‍न


दिसम्‍बर 2007 में मैंनें एक पोस्‍ट पब्लिश की थी 'रावघाट के योद्धा : अधिवक्‍ता विनोद चावडा' । विनोद चावडा जी की लडाई रंग लाई है और भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने बीएसपी को रावघाट में आयरन ओर (लौह अयस्क) के उत्खनन के लिए 2028.979 हेक्टेयर की पर्यावरण स्वीकृति दे दी है। सुप्रीम कोर्ट की सेंट्रल इंपावर कमेटी की अनुशंसा पर वानिकी स्वीकृति पहले ही मिल गई थी। भारत सरकार ने नवंबर 2008 में ही 883.22 हेक्टेयर वन भूमि को डायवर्सन करने के लिए स्टेज-वन का फारेस्ट्री क्लीयरेंस दे दिया था। उसके बाद से अंतिम पर्यावरण स्वीकृति के लिए फाइल वन एवं पर्यावरण मंत्रालय में लंबित थी। भरोसेमंद सूत्रों के अनुसार अब रावघाट परियोजना में कोई रोड़ा नहीं है। बीएसपी जब चाहे अपने माइनिंग प्रोजेक्ट पर काम शुरू कर सकता है।
भिलाई स्‍टील प्‍लांट फारेस्ट्री क्लीयरेंस वाले एरिया में माइनिंग कर सकेगा, जिसमें लगभग 511 मिलियन टन लौह अयस्क है। यह 35-40 साल तक के लिए पर्याप्त है। यहां के अयस्क में आयरन की मात्रा लगभग 63 प्रतिशत है, जो लगभग राजहरा के बराबर ही है। रावघाट के लिए लालायित बीएसपी प्रबंधन जैसे-जैसे विभिन्न क्लियरेंस मिलते गए, निर्धारित शुल्क या क्षतिपूर्ति राशि भी सरकारी कोष में जमा करता गया है। सरकार के केंपा फंड में अभी तक बीएसपी प्रबंधन 417 करोड़ रुपए जमा कर चुका है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार बीएसपी को हरेक क्षतिपूर्ति पांच गुनी (प्रति हेक्टेयर) ज्यादा देनी पड़ी है।
रावघाट परियोजना 25 साल से लंबित थी। भविष्य में बीएसपी की उत्पादन क्षमता बढ़ाने विस्तार परियोजनाओं को देखते हुए आयरन ओर की जरूरत को ध्यान में रखकर संयंत्र प्रबंधन ने 1983 में पहली बार भारत सरकार के पास अर्जी लगाई थी। तब से यह योजना अटकी हुई थी। पहली बार प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ सकी । तब बीएसपी ने 1990 में अपने प्रपोजल में संशोधन कर दुबारा फिर आवेदन दिया। 1998 में सरकार ने आवेदन को खारिज कर दिया।
उसके बाद 2006 में फिर से आवेदन दिया। तब से प्रबंधन लगातार प्रयासरत रहा। रावघाट की मंजूरी में देरी और दल्लीराजहरा में घटते अयस्क से न केवल संयंत्र प्रबंधन, बल्कि पूरी भिलाई बिरादरी की सांस अटकी हुई थी। बीसपी के अस्तित्व पर ही खतरा मंडराने लगा था। वर्तमान में संयंत्र की उत्पादन क्षमता 4.2 मिलियन टन है, जिसके लिए सालाना लगभग 9 मिलियन टन अयस्क की जरूरत होती है। विस्तार परियोजनाओं के पूरा हो जाने के बाद 2012 तक संयंत्र की स्टील मेकिंग क्षमता बढ़कर 7.5 मिलियन टन हो जाएगी, तब लगभग 14 मिलियन टन अयस्क की आवश्यकता पड़ेगी।
फिलहाल दल्लीराजहरा में लगभग 80 मिलियन टन आयरन ओर शेष है, जो करीब साढ़े चार साल तक ही संयंत्र को जीवन दे सकता है। हालांकि एनएमडीसी खदानें नजदीक में हैं परंतु वह अपना अधिकांश ओर दूसरे देश को निर्यात कर देता है या फिर दूसरे संयंत्रों के लिए आरक्षित है। सेल के अन्य खदानों से यहां अयस्क मंगाना लगभग छह गुना महंगा पड़ेगा। ऐसे में रावघाट ही बीएसपी के पास एकमात्र विकल्प है।
अब रावघाट में माइनिंग के लिए बीएसपी को कोई बाधा नहीं है। केवल रेलवे लाइन बिछने का इंतजार है। इसके लिए दल्लीराजहरा- रावघाट-जगदलपुर रेल लिंक प्रोजेक्ट पर भारतीय रेलवे, छत्तीसगढ़ शासन और सेल (बीएसपी) के बीच पहले ही एमओयू हो गया है। 11 दिसंबर 2007 को हुए इस एग्रीमेंट के अनुसार भिलाई से रावघाट तक की कुल दूरी लगभग 180 किलोमीटर है। इसमें राजहरा से रावघाट तक की रेलवे लाइन बिछाने का पूरा खर्च सेल वहन करेगा। इसके लिए सेल ने रेलवे को 53 करोड़ रुपए दे भी दिए हैं। बाकी रावघाट से जगदलपुर तक की रेलपांत का खर्च एनएमडीसी और रेलवे 25-25 फीसदी और बाकी आधा खर्च राज्य शासन उठाएगा। भारतीय रेलवे की निर्माण एजेंसी रेल विकास निगम लिमिटेड ने इसके लिए टेंडर भी जारी कर दिया है। सितंबर तक टेंडर प्रक्रिया पूरी हो जाने के बाद निर्माण कार्य शुरू हो जाने की भी उम्मीद जताई जा रही है।
(समाचार दैनिक भास्‍कर से साभार)

टिप्पणियाँ

  1. बेनामी06 जून, 2009 17:34

    सच ही है, पूरी भिलाई बिरादरी की सांस अटकी हुई थी।

    विनोद चावड़ा जी को कोटि-कोटि धन्यवाद उनके सहयोग के लिए

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