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छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

उदंती.com मासिक पत्रिका वर्ष 1, अंक 6, जनवरी 2009


अनकही : जनता की आशाओं का कमल फिर खिला

यात्रा कथा / वादियां :ऊष्मा से भर देने वाला सतपुड़ा - गोविंद मिश्र

राजनीति / छत्तीसगढ़ : विकास की धमक और चावल की महक - परितोष चक्रवर्ती

बातचीत / महेश भट्ट : पैसा कमाना फिल्म की बुनियादी शर्त है - मधु अरोड़ा

 गजलें : नया साल हमसे दगा न करे - देवमणि पांडेय

कला / चित्रकार : रंग मुझे अपनी ओर बुलाते हैं : सुनीता वर्मा - उदंती फीचर्स

पर्यावरण / ग्लोबल वार्मिंग : संकट के भूरे बादल - प्रो. राधाकांत चतुर्वेदी

यादें / पुण्य तिथि : जब गुलाब के फूल देख कर कमलेश्वर गदगद हुए - महावीर अग्रवाल

लघुकथाएं 1. थप्पड़ 2. सार्थक चर्चा - आलोक सातपुते

नोबेल पुरस्कार / साहित्य : भारतीय संस्कृति के उपासक क्लेजिओ - पी. एस. राठौर

अंतरिक्ष / बढ़ते कदम : आओ तुम्हें चांद पे ले जाएं - प्रवीण कुमार

क्या खूब कही : एक फोन से पूरी ..., बूढ़े बिल्ले ने पहने...

अभियान / मुझे भी आता है गुस्सा :  इन्हें क्यों नहीं आती शर्म ? - वी. एन. किशोर

 इस अंक के रचनाकार

आपके पत्र / मेल बॉक्स

रंग बिरंगी दुनिया - 1. सोलर कार में... 2. अनोखा क्लब 3. खोई अंगूठी का मिलना
 

टिप्पणियाँ

  1. अरे भई कहां रहते हो आज कल।दर्शन दुर्लभ हो गये हैं।कहीं नेता-फ़ेता तो नही बन गये हो ना।

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आपकी टिप्पणियों का स्वागत है. (टिप्पणियों के प्रकाशित होने में कुछ समय लग सकता है.) -संजीव तिवारी, दुर्ग (छ.ग.)

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