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छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

नये वर्ष का धूम धडाका और फोन की घंटी

अंग्रेजी नये वर्ष के उत्‍साह और उमंग में संपूर्ण विश्‍व के साथ साथ भारत भी मुम्‍बई धमाकों के टीस को दिल में बसाये 31 दिसम्‍बर की रात को झूमता गाता रहा । हमारी परम्‍परा एवं परिपाटी चैत्र प्रतिपदा से नये वर्ष की रही है किन्‍तु "चलन" नें इसे बिसरा दिया है । दुनियॉं के साथ कदम पे कदम मिलाते हुए आगे बढने के लिए एवं कुछ व्‍यवसायगत आवश्‍यकताओं के कारण बडे व प्रतिष्ठित होटलों  को भी 'नये वर्ष' के आगमन में ऐसे ही आयोजनों का प्रबंध करना पडता है और मन रहे न रहे प्रतिस्‍पर्धा में ताल ठोंकना पडता है ।

15 दिसम्‍बर से समाचार पत्रों के विज्ञापन प्रतिनिधियों के फोन एवं उनके मिलने आने का सिलसिला बढ जाता है, आजकल समाचार पत्रों में भी व्‍यावसायिकता इस कदर हावी है कि विज्ञापन विभाग के कर्मचारी बाकायदा पीछे लग जाते हैं बीमा कंपनी या नेटवर्क मार्केटिंग कम्‍पनी के एजेंटों की तरह । चलन एवं इनको उपकृत करने (यह भी एक प्रकार की व्‍यावसायिक आवश्‍यकता है)  के कारण इनकी इच्‍छाओं के चलते विज्ञापन भी छापे जाते हैं ।

जैसे तैसे पेलते ढकेलते सजावट, डीजे, आर्केस्‍ट्रा, इनामों व कूपनों के इंतजाम के साथ 31 दिसम्‍बर भी आ जाता है और सुबह के समाचार पत्रों में विज्ञापनों व समाचारों को पढते ही, मालिकों व प्रबंधन देख रहे बंदों की मोबाईल की घंटिंयॉं घनघनाने लगती है । एक बानगी देखिये -

- लाखन सिंह, सीएसपी चौपट नगर बोल रहा हूं
- जी, सर, नमस्‍कार, कैसे हैं
- बस ठीक हैं जी, क्‍या इंतजाम है तुम्‍हारे यहां आज
- बस सर, झूमरी तलैया का डीजे है, दरभंगा का आर्केस्‍ट्रा साथ में डिनर, हमारे यहां तो आपको मालूम ही है, वेज है, दारू सारू तो चलता नहीं है
- अरे वही तो, यही चीज तो आपके होटल को औरों से अलग करती है बॉस, फेमलियर तो तुम्‍हारे यहां ही आना चाहते हैं, जहां दारू सारू है वहां हुल्‍लड के सिवा कुछ नहीं होता
- हा हा हा, बस सर सब आपलोगों का आर्शिवाद है ...........
- हा हा हा, अरे आर्शिवाद तो उपर वाले का है पगले, हॉं यार दस कूपन भिजवा देना मेरे आफिस, आई जी साहब की फेमिली आना चाहती है
- ओके सर, बिल्‍कुल भिजवाता हूं .........
- ओके, बाय
- बाय

सुबह की चाय से चालू इस तरह के कई  फोन आते हैं पोस्‍ट भर बदल जाते हैं, शाम को जब एंट्री कूपन का हिसाब मिलातें हैं तो पता चलता है सत्‍तर प्रतिशत कूपन तो ऐसे ही फोन के चलते निकल गये है । अब निकालो विज्ञापन , सजावट, डीजे, आर्केस्‍ट्रा, इनामों व कूपनों का खर्च और मना लो नया साल नाचते गाते हुए ।

नये साल की सुबह सब खुमारी में देर तक सोते हैं पर फोन रिसीव करने वाले को तो अपना दिमाग व फोन चालू ही रखना है, फोन रिसीव करने वाले को एक और फोन आता है उसकी भी बानगी देखें -

- कैसे रहा
- गुड मार्निंग सर, हैप्‍पी न्‍यू ईयर सर, ठीक रहा सर
- हूँ ........., क्‍या रहा हिसाब
- सर इस साल फलाने ढेकाने व सेकाने साहब नें मुफ्त कूपन मंगा लिया था, और होटल भी तो ढेरों नये खुल गये हैं ना सो ग्रा‍हक भी नहीं आये, बीस हजार का घाटा रहा सर, पर सर हमारा विज्ञापन तो हुआ ही है, इसे विज्ञापन खर्च मान लें, हा हा हा
- क्‍या खाक मान ले, हद हो गई, सफेद हाथी पाल लिया हूं मैं, हर साल तुम लोगों से यही सुनता हूं, क्‍या कोई अवैध काम करते हो तुम लोग होटल में, जो इन लोगों पर फोकटिया लुटाते हो ।
उधर से फोन काट दिया जाता है, फोन सुनने वाला घिघियाते रहता है ।

पिछले चार पांच सालों के इस कडुए अनुभव नें फोन रिसीव करने वाले को सिखा दिया है कि 31 दिसम्‍बर को फोन बंद रखा जाए । इस साल फोन रिसीव करने वाले नें अपना फोन बंद रखा, विज्ञापन भी पूरी तरह से अपनी प्रबंधन कुशलता को बापरते हुए हिसाब से दिया, मुफ्तिया कूपन भी बीस परसेंट ही बांटे पर मंदी और दारू की 'चलन' के चलते इस साल भी उसे नये वर्ष की सुबह वही फोन आया और देर तक घिघियाना पडा । 

समाचार पत्र वाले भविष्‍य के विज्ञापनों की चापलूसी में 15 दिसम्‍बर से लगातार 2 जनवरी  तक  शहीदों के नामों का उल्‍लेख कर रहे हैं पर मुस्किल यह है कि इस पब्लिसिटी से मुफ्तिया फोन किसे किया जाय यह पता चल रहा है । फोन रिसीव करने वाले की स्थिति भय गति सांप छुछंदर केरी की तरह उगलत बनत न खात घनेरी  की होती है जो पूरे साल बनी ही रहती है । और तब 'गधा जब धांस से दोस्‍ती कर लेगा तो खायेगा क्‍या' मुहावरे का अर्थ भी समझ में आ जाता है । सुनने में आया है कि फोन रिसीव करने वाला अब नये साल के आयोजनों का घोर विरोधी हो गया है ।

बहरहाल, बाकी सब ठीक है, 

आप सभी को अंग्रेजी नये वर्ष की हार्दिक शुभकामनाओं सहित .....

संजीव तिवारी

टिप्पणियाँ

  1. संजीव भाई
    नमस्कार
    " नए वर्ष का धूम धडाका और फोन की घंटी "
    एक दम सामयिक आलेख के लिए एवं
    नूतन वर्ष के शुभागमन पर हमारी
    बधाई स्वीकारें .
    आपका
    -विजय

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत बढ़िया लिखे हो जी, इस तारीफ़ के बदले एक कूपन हमें भी भिजवा दीजियेगा…

    जवाब देंहटाएं
  3. सत्य वचन महाराज जी . व्यवसायिक मानसिकता से ग्रसित "कलमकार से लेकर बनिए" तक सभी घुड़ दौड़ लगा रहे है . टी. आर. पी और धंधा एक दूसरे के पूरक है.
    महेंद्र मिश्रा जबलपुर.

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  4. नया साल बहोत मुबारक हो आपके तथा आपके पुरे परिवार के लिए...



    arsh

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  5. संजीव जी ,
    बहुत सही मुद्दा उठाया है आपने ,हम अपनी परम्पराओं को भूले जा रहे हैं .
    विज्ञापन का गणित बड़ा तगड़ा है ,लोंग इसके चक्कर में क्या कुछ न कर बैठें .

    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  6. हा हा हा !! बने कहेस भैय्या इही हाल त सही हे गा बाकी औ का हे दारु हुल्ल्ड औ एक्सीडेंट इही त असली नवासाल हरे औ का हे हम त संसो करत हन के एक साल औ जुन्ना गेन अब का के नवासाल !!

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  7. I left Hospitality Industry 21 yrs ago. After reading yr article i realised that things have not changed but they have become an moneysore for Hotellier.
    Corruption??? Who and how can stopped in this country is the big question. Corrupt peple are seen on all key posts.
    recently one of my friend who is in government job was telling me the story of an honest officer that how he became corrupt in last few years of his service by saying that rEtirement is near and old days can not be spent happily without money.
    Thanks for bringing this to public knowledge again.

    Satyendra (ई मेल द्वारा)

    जवाब देंहटाएं
  8. संजीव जी आप को भी सपरिवार नव वर्ष की ढेर सारी शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  9. sanjeev bhai aapko bahut bahut dhanyawad aur mai apka abhari bhi hoon.
    logon ki pratikriyayen maine padha
    hriday gadgad ho utha par yah manata hoon
    ki mujhme kabhi bhi "GURU" banne ki bhavna na aaye seekhta hi raun aap jaise logon ka sanidhya pakar aur sabhi shubhechchhuon ko mera namaskar ewam badhai ke liye dhanyawad.

    are ye to mera hua
    nave varsh ke liye apka article padhkar to aur maja aa gaya aaj ki vidambana ka badhiya jikra kiya hai apne ab jiski lekhni me dam ho wahi kar sakta hai na ye sab. bahut khoob.

    जवाब देंहटाएं

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