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सितंबर, 2008 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

छायावाद के मुकुट : पं.मुकुटधर पाण्‍डेय

हिन्‍दी साहित्य को जानने समझने वालों के लिए ‘छायावाद’ एक ऐसा विषय रहा है जिसकी परिभाषा एवं अर्थ पर आरंभ से आज तक अनेक साहित्य मनीषियों एवं साहित्यानुरागियों नें अपनी लेखनी चलाई है एवं लगातार लिखते हुए इसे पुष्ट करने के साथ ही इसे द्विवेदी युग के बाद से पुष्पित व पल्लवित किया है । छायावादी विद्वानों का मानना है कि, सन. 1918 में प्रकाशित जयशंकर जी की कविता संग्रह ‘झरना’ प्रथम छायावादी संग्रह था । इसके प्रकाशन के साथ ही हिन्दी साहित्य जगत में द्विवेदीयुगीन भूमि पर हिन्दी पद्य की शैली में बदलाव दष्टिगोचर होने लगे थे । देखते ही देखते इस नई शैली की अविरल धारा साहित्य प्रेमियों के हृदय में स्थान पा गई । इस नई शैली के आधार स्तंभ जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, सुमित्रानंदन पन्‍त और महादेवी वर्मा थे । कहा जाता है कि इस नई शैली को साहित्य जगत में परिभाषित करने एवं नामकरण करने का श्रेय पं.मुकुटधर पाण्डेय को जाता है । सन् 1918 से लोकप्रिय हो चुकी इस शैली के संबंध में सन् 1920 में जबलपुर से प्रकाशित पत्रिका ‘श्री शारदा’ में जब पं. मुकुटधर पाण्डेय जी की लेख माला का प्रकाशन आरंभ हुआ तब इस

कैलीफोर्निया विश्‍वविद्यालय में छत्‍तीसगढ के नक्‍सल हिंसा पर एक विशेष सत्र

अमेरिका के कैलीफोर्निया विश्‍वविद्यालय में भारत के लोकतंत्र पर केन्द्रित दो दिन का सेमीनार आयोजित किया गया है जिसमें छत्‍तीसगढ की नक्‍सल हिंसा और उससे जुडे हुए सभी पहलुओं पर चर्चा के लिये एक विशेष सत्र रखा गया है । इस सेमीनार में पूरे देश से विभिन्‍न व्‍यक्तियों को वक्‍ता के रूप में आमंत्रित किया गया है जिसमें छत्‍तीसगढ के दो लोग शामिल हैं, इनमें एक प्रदेश के पुलिस महानिदेशक विश्‍वरंजन जी और लोकप्रिय समाचार पत्र छत्‍तीसगढ के संपादक सुनील कुमार जी हैं । इनका व्‍याख्‍यान भी वहां उक्‍त सत्र में होगा । इन दो वक्‍ताओं के अलावा दिल्‍ली की एक समाज शास्‍त्री और जन मुद्दों को लेकर अदालती लडाई लडने वाली प्राध्‍यापिका नंदिनी सुन्‍दर सर्वोच्‍च न्‍यायालय के एक सेवानिवृत न्‍यायाधीश बी.एन.श्रीकृष्‍णा भी वक्‍ता हैं । यह महत्‍वपूर्ण सेमीनार पिछले वर्ष से शुरू हुआ है और इसमें भारत के करीब एक दर्जन प्रमुख लोग वक्‍ता रहे हैं । जिनमें केन्‍द्रीय मंत्री, प्रमुख उद्योगपति, प्रमुख पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता और सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख वकील शामिल थे । पिछले वर्ष की तरह इस समय भी भारत के अलग अलग क्षेत्रों स

आभासी दुनिया के दीवाने : ब्लागर्स

सन् 1995 से भारत में इंटरनेट के पदापर्ण के बाद से नेट में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए भारत के लोग निरंतर प्रयास में लगे रहे हैं जो आज तक जारी है। अंग्रेजी वेबसाईटों के बाद इंटरनेट में हिन्दी वेबसाईटें भी धीरे धीरे छाने लगी है इसी के साथ भारत में इंटरनेट के कनेक्शनों में भी भारी वृद्धि हुई है। विकासशील देशों के इन नेट प्रयोक्ताओं को टारगेट करते हुए इंटरनेट में विज्ञापन के द्वारा अरबों आय कमाने वाली कम्पनियों के द्वारा अपने वेबसाईटों में ट्रैफिक बढ़ाने के उद्देश्य से विभिन्न प्रयोग भी किये हैं। जिसमें ई मेल, कम्यूनिटी वेब साईट व ब्लाग आदि शामिल हैं, इससे इंटरनेट में सर्फिंग करने वालों को देर तक नेट में बांधे रखने का कार्य भी हुआ है। इसके नेपथ्य में साईटों में लगे विज्ञापन को अधिकाधिक लोगों तक पहुंचाना रहा है । कम्पनियों का उद्देश्य कुछ भी हो पर इसके चलते अपनी भावनाओं का आदान प्रदान करने की इच्छा संजोये लोगों को ब्लाग सौगात के रूप में एक बेहतर व विश्वव्यापी प्लेटफार्म मिला है, जो इस सदी के अंतरजाल विकास का उल्लेखनीय सोपान है । ब्लाग लेखन को हिन्दी जगत नें विभिन्न परिभाषाओं से नवा

उफनते कोसी को देख शिवनाथ की यादें : संस्‍मरण

कोसी की तबाही का मंजर टीवी व समाचार पत्रों पर देखकर स्वाभाविक मानवीय संवेदना जाग उठी है देश भर से लोग मदद के लिए अपनी सामर्थ्य के अनुसार सहयोग कर रहे हैं । उफनती कोसी को टीवी में देख कर उसकी भयावहता को मैं छत्‍तीसगढ से ही महसूस कर रहा हूं । ऐसी ही एक बाढ (कोसी की बाढ से काफी छोटी) की स्थिति से एक बार मेरा भी सामना हुआ था उसकी यादों को मैं आप लोगों के साथ बांटना चाहता हूं । मेरा गांव छत्तीसगढ में शिवनाथ नदी के एकदम किनारे बसा है, घरों से नदी की दूरी बमुश्किल 100 मीटर होगी । शिवनाथ छत्तीसगढ की दूसरे नम्बर की बडी नदी है, इसमें खारून, हांफ, आगर, मनियारी, अरपा, लीलागर, तान्दुरला, खरखरा, अमनेरा, खोरसी व जमुनियां आदि नदियां मिलती हैं एवं शिवनाथ शिवरीनारायण में जाकर महानदी से मिल जाती है । मेरे गांव से दो किलोमीटर पूर्व ही शिवनाथ व खारून का संगम है (इस संगम का चित्र मेरे ब्लाग के हेडर में लगा है) इन दोनों नदियों के मिलने के कारण यहां से शिवनाथ अपने वृहद रूप में बहती है । वर्ष 1994 में छत्तीसगढ की नदियों में अतिवृष्टि के कारण भीषण बाढ आई थी, महानदी, शिवनाथ व खारून नें समूचे छत्तीसगढ के पठार

उदंती डाट काम डॉ. रत्‍ना वर्मा की पत्रिका www.udanti.com पर उपलब्‍ध

'पत्रकारिता की दुनिया में 25 वर्ष से अधिक समय गुजार लेने के बाद मेरे सामने भी एक सवाल उठा कि जिंदगी के इस मोड़ पर आ कर ऐसा क्या रचनात्मक किया जाय जो जिंदा रहने के लिए आवश्यक तो हो ही, साथ ही कुछ मन माफिक काम भी हो जाए। कई वर्षों से एक सपना मन के किसी कोने में दफन था, उसे पूरा करने की हिम्मत अब जाकर आ पाई है। यह हिम्मत दी है मेरे उन शुभचिंतकों ने जो मेरे इस सपने में भागीदार रहे हैं और यह कहते हुए बढ़ावा देते रहे हैं कि दृढ़ निश्चय और सच्ची लगन हो तो सफलता अवश्य मिलती है।'  यह उदंती डाट काम के संपादक, प्रकाशक व मुद्रक डॉ. रत्‍ना वर्मा के अंतरमन से निकले शव्‍द हैं जिन्‍हें रूपांतरित करने के लिए उन्‍होंनें उदंती डाट काम के आनलाईन और प्रिंट प्रकाशन का निर्णय लिया और  अपने स्‍वप्‍नों को साकार करते हुए विगत दिनों प्रदेश के मुख्‍य मंत्री डॉ. रमन सिंह के करकमलों इस पत्रिका के प्रिंट वर्जन  का  विमोचन करवाया । डॉ. रत्‍ना वर्मा जी के इस कार्य को आनलाईन ब्‍लाग प्‍लेटफार्म देनें हेतु हमने सहयोग किया और आरंभिक तौर पर इसे www.udanti.com पर होस्‍ट कर पब्लिश कर दिया । प्रदेश की राजधानी में इस