विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों
गांधी जी की लाठी लेकर आगे आगे चलते हुए एक बच्चे की तस्वीर को हम कई अवसरों में देखे होंगें, हमारी स्मृति पटल में वह चित्र गहरे से अंकित है, आप सभी को यह चित्र याद होगा । इस चित्र में गांधी जी की लाठी लेकर आगे आगे चलता बच्चा तब का रामेश्वर उर्फ तुलेन्द्र वर्मा और आज के स्वामी आत्मानंद जी हैं । मैं इस चित्र को देखकर रोमांचित हो उठता हूं कि यही स्वामी आत्मानंद हैं जिन्होंनें छत्तीसगढ में मानव सेवा एवं शिक्षा संस्कार का अलख जगाया और शहरी व धुर आदिवासी क्षेत्र में बच्चों को तेजस्विता का संस्कार, युवकों को सेवा भाव तथा बुजुर्गों को आत्मिक संतोष का जीवन संचार किया । बालक तुलेन्द्र का जन्म 6 अक्टूबर 1929 को रायपुर जिले के बदबंदा गांव में हुआ, पिता धनीराम वर्मा पास के स्कूल में शिक्षक थे एवं माता भाग्यवती देवी गृहणी थी । पिता धनीराम वर्मा नें शिक्षा क्षेत्र में उच्च प्रशिक्षण के लिये बुनियादी प्रशिक्षण केन्द्र वर्धा में प्रवेश ले लिया और परिवार सहित वर्धा आ गये । वर्धा आकर धनीराम जी गांधी जी के सेवाग्राम आश्रम में अक्सर आने लगे एवं बालक तुलेन्द्र भी पिता के साथ सेवाग्रा