लैपटाप : एक ब्लागर की आत्मकथा (कहानी) सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

लैपटाप : एक ब्लागर की आत्मकथा (कहानी)

किचन से पत्‍नी की बर्तनों पर उतरते खीज की आवाज तेज हो गई थी । मैं अपने लेपटाप में हिन्‍दी ब्‍लागों को पढने में मस्‍त था । ‘डिंग ! जी टाक से आये संदेश नें ध्‍यान आकर्षित किया । ’10.45 को मिलो, आवश्‍यक है ।‘ यह प्रिया का संदेश था । मैंनें ब्‍लाग को मिनिमाईज कर जी टाक के उस मैसेज बाक्‍स को खोला, जवाबी संदेश लिखने वाला ही था कि प्रिया जी टाक से आफलाईन हो गई ।

मैंनें टेबल में पडा हुआ अपना मोबाईल उठाया जो मेरे पेशे के कारण सामान्‍यतया वाईब्रेट मोड में ही रहता है । प्रिया के चार मिस्‍ड काल थे । पत्‍नी का मूड मुझे देर रात एवं सुबह से लेपटाप में घुसे देखकर खराब था । मैनें उसे किचन में झांका और उससे बिना कुछ कहे फ्रैश होने टाईलेट में घुस गया । आनन फानन में मुझे तैयार होते देखकर पत्‍नी के घंटों से बंद मुह से शव्‍द फूटे ‘ कहॉं जा रहे हो ? आज तो सन्‍डे है ना ?

‘हॉं यार एक जरूरी मीटिंग है, एकाध घंटे में वापस आ जाउंगा फिर आज फिल्‍म देखने जायेंगें । और हां खाना भी आज बाहर ही खायेंगें ।‘ बोलते हुए मैं गैरेज में रखी बाईक को निकालने लगा । ’मीटिंग है तो इसे क्‍यों छोड जा रहे हो, मेरी सौत को ।‘ पत्‍नी नें वाणी में भरपूर संयम रखते हुए मजाकिया लहजे में लैपटाप बैग को मुझे देते हुए कहा । यद्धपि उसके मन की ज्‍वाला को मैं महसूस कर रहा था । मैनें लेपटाप का बैग कंधे पर लटकाया और प्रेम उडेलता मुस्‍कान बिखराकर बाईक में गेयर लगा, आगे बढ गया ।

प्रिया अपने घर के पास वाली सडक के मोड पर खडी थी, उसकी आंखें बार बार सडक और घडी की ओर आ जा रही थी । ‘सारी पांच मिनट लेट हो गया !’ मैनें मुस्‍कुराते हुए कहा । ‘बडे दिनों बाद मिले हो, आज तो नहीं छोडूंगी ।‘ कहते हुए वह मेरे कंधे पर हांथ रखकर बाईक के पीछे बैठ गई । मैनें बाईक बढाते हुए पूछा ‘कहां चलना है ?’ ‘जहां तुम ले चलो !’ उसने कुछ इस अंदाज से कहा कि मेरे माथे पर पसीने की बूंदे उभर आई । अपनी झेंप को छिपाते हुए मैनें कहा ‘मधुलिका चलते हैं ?’ ‘ नहीं, मैं देर तक तुम्‍हारे साथ रहना चाहती हूं, बेबीलोन चलते हैं ।‘

मैनें गाडी हाईवे की ओर मोड दी । अब वह पूरे इत्‍मिनान से मेरे बाईक में बैठ गई ठीक उसी तरह जिस तरह से मेरी पत्‍नी मेरे साथ बैठती है । ‘तुम्‍हारी कविता मैंने कल नई दुनिया में पढी !’ उसने अपनी ठोढी को मेरे कंधे में टिकाते हुए कहा । ‘दिल को छू गई !’ उसने अपना शरीर मेरे पीठ से चिपका लिया । मेरी नजर सडकों पर थी ।

‘आजकल हाईवे में एक्‍सीडेंट कुछ ज्‍यादा होने लगा है ।‘ मैंने विषय को बदलते हुए कहा । ’सच बताओ विनय, तुमने वो कविता मेरे लिये ही लिखी थी ना ?’ उसने मेरी बातों को ध्‍यान दिये बिना मुझे दोनों हाथों में जकडते हुए कहा । इससे बाईक का संतुलन कुछ बिगडा, मैं बाईक को सम्‍हालते हुए कंधे से नीचे गिर आये लेपटाप के पट्टे को पुन: कंधे पर टिकाया ।

‘ये तुम्‍हारा लेपटाप ! सच में दुश्‍मन है दुश्‍मन ! घर में मैडम का और यहां मेरा, दिल को मिलने ही नहीं देता !’ उसने खीझते हुए कहा । मैनें ठहाका लगाया, एक हाथ से बाईक चलाते हुए दूसरे हाथ से लेपटाप बैग को पीछे से लेकर सामने पैट्रोल टंकी में रख अपने सीने के पास टिका लिया । वह मेरे पीठ पर चिपक गई, उसकी सांसों की धडकनों को भी मैं महसूस करने लगा । बाईक तेज गति से मन के विचारों की तरह दौड रही थी । लैपटाप का बैग मेरे छाती में बार बार टकराकर अपने अस्तित्‍व की गवाही दे रहा था ।

मेरा मन दुविधा की भंवर में फंसता जा रहा था, जेब में रखे मोबाईल में हरकत हुई वाईब्रेटर धडक उठा । मैं बाईक रोक कर मोबाईल उठाया ‘पापा दादाजी आये हैं, आप जल्‍दी आ जाओ !’ उधर से मेरे दस वर्षीय बेटे नें कहा । मैं जानता था कि, जब मेरी पत्‍नी मुझसे नाराज होती है और कोई आवश्‍यकता होती है तो घर से फोन मेरा बेटा ही करता है । ‘ठीक है बेटा, मैं मीटिंग निबटा कर जल्‍दी आ रहा हूं !’ मैंने कहा और मोबाईल काट कर जेब में रखा । ‘अब झूठ भी बोलना सीख रहे हो !’ प्रिया ने हसते हुए कहा । ‘मुझे जल्‍दी जाना होगा प्रिया ! घर में बॉस आये हैं !’ मैंने बॉस का नाम लेकर सहानुभूति बटोरने का प्रयास किया । तब तक हम रेस्‍टारेंट पहुच चुके थे ।

रेस्‍टारेंट में उसने आईसक्रीम और कोल्‍डड्रिंक्‍स का आर्डर दिया और सधे प्रेमिकाओं की भांति बहुत कुछ बोलते रही, मैं हॉं, हूं के अतिरिक्‍त और कुछ बोल नहीं पाया ।

वापस उसे उसके घर के सडक के मोड पर छोडा और हाथ मिला फिर मिलने का अंग्रेजी में वादा कर बाईक आगे बढाया तो मेरे परम्‍परागत सांचे में ढले मन को कुछ यूं लगा कि मेरे बाईक से टनों भार को अभी उतार आया हूं ।

प्रिया मुझे कुछ माह पूर्व ही चैट रूम में मिली थी । वह 30 वर्ष की है, बेहद आर्कषक व्‍यक्तित्‍व । उसने शादी नहीं की है, कारण पूछने पर दार्शनिक अंदाज में उसने जो बतलाया है उसका सार यह है कि वह अपने पिता की असमय मृत्‍यु के बाद, मॉं और दो छोटे भाईयों का सम्‍मानपूर्वक पोषण करते हुए, अपने अविवाहित रहने की भीष्‍म प्रतिज्ञा के अंतरद्वंद से लडते हुए, मर्यादाओं के छोटे किन्‍तु सुरक्षित आकाश में उन्‍मुक्‍त पंछी सा उडना चाहती है । उसे कविताओं से लगाव है और मैं कवितायें लिखता हूं । कुछ दिनों चैट रूम में ही हा के बाद आरकुट में स्‍क्रैपों के आदान प्रदान चला फिर मिलना जुलना भी आरंभ हो गया । कितनी तेजी से यह सब हुआ मुझे याद नहीं, हॉं, उसे सब याद है यहां तक कि मैं विवाहित हूं और मेरे दो पुत्र भी है इसके साथ ही मैं मार्डन नहीं हूं, सब कुछ ।

घर में पंहुचते ही मैंनें पत्‍नी से पूछा ‘कहां हैं बाबूजी ?’ ‘ बाथरूम में हैं, नहा रहे हैं ! कैसी रही आपकी मीटिंग ?’ पत्‍नी नें रूक रूक कर जवाब दिया । ‘बहुत बढिया !, मैंने तो अपना प्रेजेंटेशन दे दिया है, रात भर भिडकर जो बनाया था, आगे भगवान जाने !’ मैं आत्‍मविश्‍वास को आंखों में साधते हुए कहा । यद्धपि मैं पिछले रात के दो बजे तक सिर्फ फिरंगियों से चैट करते रहा हूं।

‘पर ये ......... !’ पत्‍नी नें आंखों के इशारे से सोफे की ओर दिखाया, शव्‍द उसके आंखों नें कहे । वहां मेरा लैपटाप पडा था, कुछ फाईलों के साथ लैपटाप का बैग मेरे कंधे पर लटका था ।

चेतनाशून्‍य मैं लैपटाप की ओर देखने लगा, पता नहीं कितने पल बीत गये । विश्‍वास अविश्‍वास और भावनाओं के बवंडर नें सहज मानस को अपने आगोश में ले लिया । विद्युत तरंगों में बनते बिगडते शव्‍द और चित्र किसी नेट कनेक्‍शन की भांति मेरे मन में उमडते रहे । कंधे में लटके लैपटाप के बैग के भार से मैं जमीन में धंसा जा रहा था ।

नोट : यह कहानी पूर्णत: काल्‍पनिक है, इसके नाम, पात्र एवं घटनायें भी काल्‍पनिक है । यदि किसी नाम, पात्र एवं घटनाओं से यह मेल खाता है तो महज एक संयोग है ।

संजीव तिवारी

टिप्पणियाँ

  1. A very nicely written story which is very contemprory in todays context . keep writing

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  2. अच्छी कहानी है. अंत तक उत्सुकता बनी रही. झांसा देने में चतुर मन का चित्रण भी अच्छा हुआ है. बस यह समझ नहीं आया कि हीरो को बैग के वजन से पता क्यों नहीं चला कि थैले में से कुछ मिसिंग है.

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  3. bahut sahasi hero tha....
    khair, jhooth ke paanv nahi hote... akhir sabit ho gaya... modern hona aur anaitik hona do alag alag baaten hai..
    apna apna nazariya hai...
    achhi kahani hai...

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  4. Bahut badhiya likhe aap. Khud to motor cycle par ghum aaye lekin hum jaise logo ko jo abhi soch hi rahe the aapne dara diya. Ab aapki lekhani padh kar lagta hai ki risk lena thik nahin hai. :)
    Majak kar raha hun.

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  5. bahut sahi chitran hai,aajkal is drishya ki bhi badh aa gai hai......bahut maza aaya,laga sajeev aankhon se dekh rahi hun

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  6. आपकी उंगलियां कुंजीपटल पर नहीं, पढ़नेवालों के दिलों पर चलती हैं। बहुत खूब लिखते हैं जनाब! वैसे कुछ ऐसी ही घटना मेरे साथ एक बार घटित हुयी थी - लेकिन मैंने किसी तरह संभाला - "यार मैंने फाईल तो पहले ही ई-मेल कर दी थी, अब तो बस मीटिंग के लिये जा रहा था"। फिर वोही बात एक बार दोबारा भी घटी - इस बार पहले वाला बहाना नहीं चला सकता था - तो फटाफट दूसरा बनाया "यार मैं प्रिंट ले कर गया था, इसलिये जान बच गयी, वरना ---"

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  7. प्रिया को इधर ट्रांसफर कर दिया जाए ;)

    भइया कहानी तो वाकई खूब लिखे हो।
    ( आशा है सच में कहानी ही है ये ;) )

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  8. bahut accha likah hai. hoot aakhir main pakda hi jata hai. ek naav main savaari karna hi theek hai. ajkal log char char naavo main savaari kar rahe hai. ye galat hai...

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  9. bahut accha likha hai
    padne me bahut interest aa rha hai
    lakin chori to aakir pakdi hi gyi

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  10. समसामायिक और यथार्थवादी कहानी प्रभावित करती ह , हिन्‍दी का शिक्षक हूं अगर बुरा न माने तो लिंग दोष संबंधी छोटी बातों की ओर ध्‍यान दिलाना चाहूंगा, जैसेत्र(1) मेरे पीठ की बजाय मेरी पीठ (2)मेरे बाइक के स्‍थान पर मेरी बाइक लिखा जाना बेहतर होगा,

    आशा है आप अन्‍यथा नहीं लेंगे

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  11. भाई मेने जब भी झुट बोला पकडा गया,स्कुल मे,घर मे,ओफ़िस मे ,अब बच्चे भी पकड लेते हे,पता नही लोग इतना अच्छा अच्छा ओर सच्चा सच्च झुट केसे बोल लेते हे, मुझे भी कोई घुट्टी पिलाओ, फ़िर हमारी बगल मे भी ....
    आप का लेख सच मे बहुत सुन्दर लगा.

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  12. आप सभी का बहुत बहुत आभार । इससे कहानियां लिखने के प्रति मेरे मानस में दबी हुई रूचि को बल मिला है ।

    आभार अजय भाई, मुझे खुशी हुई कि आपने एक मित्र और हिन्दी शिक्षक के दायित्व को बखूबी निभाया । भविष्य में मैं इस पर अवश्य ध्यान रखूंगा ।

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  13. अरे बाप रे, यह सब खतरनाक काम कर लेते हो मित्र!

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  14. काश, यह कहानी ही हो तब तो बहुत बढ़िया लिखी है. सत्य कथा है तो जरा बच के रहना भाई. :)

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  15. बहुते अच्छी कहानी जिससे ऐसे लोग पहले ही सतर्क हो जायें।

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  16. कहानी बहुत अच्छी लगी !!आगे भी इंतजार रहेगा

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  17. कहानी बहुत अच्छी लगी !!आगे भी इंतजार रहेगा

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  18. बने रोचक अऊ साहसिक अंदाज म कहानी लिखे हस। एखर बर बधाई। आरंभ से अंत तक मजा अईस, लेकिन क्लइमेक्स में कुछ मीसिंग जैसे लगिस। एक बात अऊ महू कभी कभार लैपटाप के खाली बैग ला लटका के रेंग देथव, लेकिन दुर्भाग्य कि बैग ला सामने टंकी में रखे के नौबत नहीं आए। एकाध दिन हमू ला प्रेजेंटेशन दे देते, मजा आ जातिस भईया।

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  19. रोचक दास्तान है, बधाई।

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  20. ऐसा लगा जैसे सामने कहानी देख रहा हूँ...एक प्रवाह है जो लगातार बना हुआ है....इंसानी कमजोरी को कही भी छुपाने की कोशिश नही.......लिखते रहे............

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  21. Thanks for commenting on my blog and providing advice. I have done as suggested by you and also allowed comments by anonymous persons. -

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  22. भाई मज़ा आगया .निदा फाज़ली याद आये :हर आदमी में होते हैं दस-बीस आदमी.
    बधाई अच्छे लेखन के लिए.

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  23. जी बहुत अच्छी रचना दिल को छु गयी...
    लड़की का नाम तों बदल देते सर............
    वैसे ये लड़की झूठ खूब बोलती है....

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  24. Hmm.....
    tumko koi aur name aur data nahi mila?
    ye to auccha hua ki muje aaj furast mili aur tumari ye story read kar li...thik likha hain , lekin meri ek request hain ..aage se kisi ka bhi name use karne se jayda auccha hoga A, B ,or C use karo to jyada behtar hoga.

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  25. तिवारी जी आपने बहुत सुन्दर कहानी लिखी है । आप के इस हुनर से तो मै अपरिचित ही था । धन्यवाद

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  26. तिवारी जी आपने बहुत सुन्दर कहानी लिखी है । आपके इस हुनर से अब तक मै अपरिचित ही था।

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