छत्तीसगढ़ी संस्कृति, साहित्य एवं लोककला की आरूग पत्रिका अगासदिया - 30 : ब्‍लाग संस्‍करण सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

छत्तीसगढ़ी संस्कृति, साहित्य एवं लोककला की आरूग पत्रिका अगासदिया - 30 : ब्‍लाग संस्‍करण

छत्तीसगढ़ी संस्कृति, साहित्य एवं लोककला की आरूग पत्रिका

वर्ष - 1, अंक -2, अप्रैल - जून - 2008

अगासदिया- अव्यवसायिक, त्रैमासिक

अंधकार से लड़कर में जो भी जहां जिया,

उसके लिए सदैव प्रकाशित रहा अगासदिया

छत्तीसगढ़ राजनीति के चाणक्य श्रद्धेय दाऊ वासुदेव चन्द्राकर के व्यक्तित्व पर केन्द्रित

मुद्रक : यूनिक, पंचमुखी हनुमान मंदिर के पीछे, मठपारा, दुर्ग (छ.ग.) ०७८८-२३२८६०५


वेब प्रकाशन : संजीव तिवारी


अनुक्रमणिका


1. सात संस्मरण

2. भूपेश की जीत का रहस्य : डॉ. परदेशीराम वर्मा
3. जीवन वृत्त - वासुदेव चंद्राकर
4. नेलशन कलागृह और सियान संरक्षक दाऊ वासुदेव चंद्राकर
5. मूर्तिकार जे.एम. नेल्सन के गांधी और मेरी मुसीबत
6. प्रथम डॉ. खूबचन्द बघेल अगासदिया सम्मान से विभूषित
7. दाऊ वासुदेव चन्द्राकर, अमृत सम्मान परिशिष्ट

8. कल के लिये : रवि श्रीवास्तव
9. काँग्रेस के नैष्ठिक सिपाही श्री वासुदेव चन्द्राकर : राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल
10. दाऊजी जैसे छत्तीसगढ़ महतारी के सपूत सदा अभिनंदित होंगे : पवन दीवान
11. वासुदेव चंद्राकर - भूपेश बघेल : साक्षात्कारकर्त्ता- महेश वर्मा
12. सतत् सक्रियता ने दाऊ जी को महत्वपूर्ण बनाया - ताराचंद साहू
13. भाषा की जीत सुनिश्चित है छत्तीसगढ़ी से बना छत्तीसगढ़ राज्य : पवन दीवान
14. दुर्लभ छत्तीसगढ़िया किसान नेता हमारे दौर के चाणक्य : वासुदेव चन्द्राकर
15. सागर रुप वासुदेव चन्द्राकर : जमुना प्रसाद कसार
16. धरती पुत्रों के पक्षधर - वासुदेव चन्द्राकर : हेमचन्द यादव
17. छत्तीसगढ़ राजनीति के चाणक्य श्रद्धेय दाऊ वासुदेव चन्द्राकर के व्यक्तित्व पर
18. अंचल के चर्चित हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. एम.पी. चन्द्राकर से बातचीत

19. साक्षी समय के : वासुदेव चन्द्राकर - भास्कर में प्रकाशित पूर्व साक्षात्कार
20. वासुदेव जी की प्रशासनिक क्षमता : हरिशंकर उजाला
21. होई हैं सोई जो राम रचि राखा दाऊ वासुदेव चन्द्राकर जी की जीवनी : रामप्यारा पारकर
22. अगासदिया के हरि ठाकुर अंक हेतु दाऊ वासुदेव चंद्राकर का साक्षात्कार
23. दाऊ वासुदेव चंद्राकर के यशस्वी शिष्य श्री भूपेश बघेल
24. छत्तीसगढ़ का बदलता तेवर और नारायण चंद्राकर की यह कृति
25. सूरता - करमयोगी संत चन्दूलाल चंद्राकर जी : नारायण चंद्राकर
26. परदेशीराम वर्मा द्वारा लिखा गया चंदूलाल चंद्राकर का अंतिम साक्षात्कार
27. भुइंया की महिमा के मुग्ध गायक - नारायण प्रसाद चंद्राकर

०००

टिप्पणियाँ

  1. भैया बहुत मेहनती मनई हो! इत्ती ऊर्जा कहां से लाते हो?
    इसका १०-२० परसेण्ट भी हममें आ जाये तो निहाल हो जायें!

    जवाब देंहटाएं
  2. अभी पढना शुरु किया है ,आपके अगासदिया का मुझे बेसब्री से इंतजार रहता है इस श्रमसाध्य प्रयास के लिये सादर आभार तथा छ्त्तीसगढ के यशस्वी लेखक डां.परदेशी राम वर्मा को कोटीशः बधाई

    जवाब देंहटाएं
  3. "congratulations for great efforts and commendable work"
    Regards

    जवाब देंहटाएं
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    जवाब देंहटाएं

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आपकी टिप्पणियों का स्वागत है. (टिप्पणियों के प्रकाशित होने में कुछ समय लग सकता है.) -संजीव तिवारी, दुर्ग (छ.ग.)

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दे दे बुलउवा राधे को : छत्‍तीसगढ में फाग संजीव तिवारी छत्तीसगढ में लोकगीतों की समृद्ध परंपरा लोक मानस के कंठ कठ में तरंगित है । यहां के लोकगीतों में फाग का विशेष महत्व है । भोजली, गौरा व जस गीत जैसे त्यौहारों पर गाये जाने लोक गीतों का अपना अपना महत्व है । समयानुसार यहां की वार्षिक दिनचर्या की झलक इन लोकगीतों में मुखरित होती है जिससे यहां की सामाजिक जीवन को परखा व समझा जा सकता है । वाचिक परंपरा के रूप में सदियों से यहां के किसान-मजदूर फागुन में फाग गीतों को गाते आ रहे हैं जिसमें प्यार है, चुहलबाजी है, शिक्षा है और समसामयिक जीवन का प्रतिबिम्ब भी । उत्साह और उमंग का प्रतीक नगाडा फाग का मुख्य वाद्य है इसके साथ मांदर, टिमकी व मंजीरे का ताल फाग को मादक बनाता है । ऋतुराज बसंत के आते ही छत्‍तीसगढ के गली गली में नगाडे की थाप के साथ राधा कृष्ण के प्रेम प्रसंग भरे गीत जन-जन के मुह से बरबस फूटने लगते हैं । बसंत पंचमी को गांव के बईगा द्वारा होलवार में कुकरी के अंडें को पूज कर कुंआरी बंबूल की लकडी में झंडा बांधकर गडाने से शुरू फाग गीत प्रथम पूज्य गणेश के आवाहन से साथ स्फुटित होता है - गनपति को म