लंदन में कार्टून वॉच की प्रदर्शनी सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

लंदन में कार्टून वॉच की प्रदर्शनी

छत्तीसगढ से प्रकाशित देश की एकमात्र नियमित कार्टून पत्रिका 'कार्टून वॉच' का न केवल देश में बल्कि अब विदेशों में भी तिरंगा लहराने लगा है । विगत दिनों ब्रिटेन में 'कार्टून वॉच' द्वारा आयोजित कार्टून प्रदर्शनी का उद्घाटन, एक गरिमापूर्ण आयोजन के साथ लंदन के नेहरू सेंटर में बीबीसी हिन्दी सर्विस के प्रमुख कैलास बुधवार नें किया । इस अवसर पर उस्ताद अल्ला रख्खा खॉं की की बेटी और उस्ताद जाकिर हुसैन की बहन खुर्शीदा औलिया विशेष रूप से उपस्थित थीं ।

प्रदर्शनी के उद् घाटन अवसर पर कैलाश बुधवार नें कहा कि उन्हें इस बात पर गर्व हो रहा है कि शंकर्स वीकली के बाद कार्टून पर केन्द्रित पत्रिका का प्रकाशन दिल्ली, मुम्बई तथा तथाकथित बडी जगह से न होकर एक छोटी सी जगह रायपुर से होना गर्व की बात है ।

इस अवसर पर ब्रिटेन के वरिष्ठ कार्ट्रनिस्ट रॉन मैकगेरी, युवा कार्टूनिस्ट शार्ली चैन प्रेस इंफारमेशन व्यूरो की श्रीमति एम सुभासिनी, तेजेन्द्र शर्मा, मनीष तिवारी, आकाश शर्मा, पवन आर्या, एलिशन रिबेलो सहित आप्रवासी भारतीय व ब्रिटेन के गणमान्य नागरिक भारी संख्या में अपस्थित थे । यह प्रदर्शनी 9 मई तक चलेगी । इस संबंध में विस्तृत विवरण कार्ट्रन वॉच के वेब साईट से प्राप्त किया जा सकता है ।

कल मेरे मेल बाक्स में भाई त्र्यंबक के उक्त अवसर के फोटो को पाकर मन अति प्रफुल्लित हुआ साथ में रायपुर से प्रकाशित समाचार पत्रों में इस खबर को पढकर आत्मिक संतुष्टि भी हुई ।

कार्टून वॉच के संपाद‍क व कर्मठ व प्रतिभावान पत्रकार, कार्टूनिस्ट त्र्यंबक शर्मा एवं उनके कार्टूनी सफर के संबंध में भाई संजीत त्रिपाठी और समरेन्द्र शर्मा जी बेहतर जानते हैं, भिलाई में मेरी उनसे दुआ सलाम (हा, हा, हा) थी । भविष्य में इस संबंध में छत्तीसगढ से एक पोस्ट 'हम' लगाने का प्रयास करेंगें ।

खाडी से छत्तीसगढ के प्रेमी भाई दीपक शर्मा की प्रतिबद्धता एवं अपने ब्लाग विप्लव में इसे जीवंत रखने के लिये मैं उनका हृदय से आभारी हूं । दीपक भाई के छत्तीसगढ प्रेम को मेरा नमन ।

संजीव तिवारी

टिप्पणियाँ

  1. बधाई और तरक्की हो।

    जवाब देंहटाएं
  2. कार्टून वाच वाकई अपने आप में एक अलग अनोखी पहल कही जा सकती है।
    इसके लिए त्र्यंबक शर्मा जी बधाई के पात्र हैं।
    कार्टून्स के प्रति उनकी निष्ठा व लगाव इसी बात से झलकते हैं कि देश भर में ऐसी पत्रिका आज अगर कहीं से निकल रही है तो रायपुर से ही निकल रही है।

    त्र्यंबक जी से सिर्फ़ एक दो मुलाकातें ही हुई हैं पर उनके कार्टून्स से आज भी "इस्पात टाईम्स" में मुलाकात होते ही रहती है।

    शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  3. जानकारी के लिये धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  4. अगर कही भी छ्त्तीसगढ का नाम गर्व से आता है मुझे ना जाने क्यो ऐसा लगता है जैसे कि वह मेरे लिये एक उपलब्धी है !! आज पुनः मन वही आनंद अनुभव कर रहा है ।
    कहते है प्रेम सबको अच्छा बना देता है ,जब से ब्लाग गिरि मे आया हूँ ,तब से आप का और सन्जीत भाई का स्नेह हमेशा मिलता रहा है ,आप ने स्नेह्वश ही कुछ ज्यादा कह दिया वरना यह खाकसार इतना वजन नही रखता !!्निश्चय यही छ्त्तीस्गढीयो कि रीत है प्रेम दो और दो देते रहो अनँत तक !!

    जवाब देंहटाएं
  5. बड़ा अच्छा लगा जानकर, बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  6. शर्मा जी काफी समय से लगे हैं , उनके अथक परिश्रम का ही फल है जो आज उनकी पत्रिका भारत के बाद सफलता के नए आयाम चूमने सरहद पार पहुंच रही है

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

आपकी टिप्पणियों का स्वागत है. (टिप्पणियों के प्रकाशित होने में कुछ समय लग सकता है.) -संजीव तिवारी, दुर्ग (छ.ग.)

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

भट्ट ब्राह्मण कैसे

यह आलेख प्रमोद ब्रम्‍हभट्ट जी नें इस ब्‍लॉग में प्रकाशित आलेख ' चारण भाटों की परम्परा और छत्तीसगढ़ के बसदेवा ' की टिप्‍पणी के रूप में लिखा है। इस आलेख में वे विभिन्‍न भ्रांतियों को सप्रमाण एवं तथ्‍यात्‍मक रूप से दूर किया है। सुधी पाठकों के लिए प्रस्‍तुत है टिप्‍पणी के रूप में प्रमोद जी का यह आलेख - लोगों ने फिल्म बाजीराव मस्तानी और जी टीवी का प्रसिद्ध धारावाहिक झांसी की रानी जरूर देखा होगा जो भट्ट ब्राह्मण राजवंश की कहानियों पर आधारित है। फिल्म में बाजीराव पेशवा गर्व से डायलाग मारता है कि मैं जन्म से ब्राह्मण और कर्म से क्षत्रिय हूं। उसी तरह झांसी की रानी में मणिकर्णिका ( रानी के बचपन का नाम) को काशी में गंगा घाट पर पंड़ितों से शास्त्रार्थ करते दिखाया गया है। देखने पर ऐसा नहीं लगता कि यह कैसा राजवंश है जो क्षत्रियों की तरह राज करता है तलवार चलता है और खुद को ब्राह्मण भी कहता है। अचानक यह बात भी मन में उठती होगी कि क्या राजा होना ही गौरव के लिए काफी नहीं था, जो यह राजवंश याचक ब्राह्मणों से सम्मान भी छीनना चाहता है। पर ऊपर की आशंकाएं निराधार हैं वास्तव में यह राजव

क्या सफेद फूलो वाले कंटकारी (भटकटैया) के नीचे गडा खजाना होता है?

8 . हमारे विश्वास, आस्थाए और परम्पराए: कितने वैज्ञानिक, कितने अन्ध-विश्वास? - पंकज अवधिया प्रस्तावना यहाँ पढे इस सप्ताह का विषय क्या सफेद फूलो वाले कंटकारी (भटकटैया) के नीचे गडा खजाना होता है? बैगनी फूलो वाले कंटकारी या भटकटैया को हम सभी अपने घरो के आस-पास या बेकार जमीन मे उगते देखते है पर सफेद फूलो वाले भटकटैया को हम सबने कभी ही देखा हो। मै अपने छात्र जीवन से इस दुर्लभ वनस्पति के विषय मे तरह-तरह की बात सुनता आ रहा हूँ। बाद मे वनस्पतियो पर शोध आरम्भ करने पर मैने पहले इसके अस्तित्व की पुष्टि के लिये पारम्परिक चिकित्सको से चर्चा की। यह पता चला कि ऐसी वनस्पति है पर बहुत मुश्किल से मिलती है। तंत्र क्रियाओ से सम्बन्धित साहित्यो मे भी इसके विषय मे पढा। सभी जगह इसे बहुत महत्व का बताया गया है। सबसे रोचक बात यह लगी कि बहुत से लोग इसके नीचे खजाना गडे होने की बात पर यकीन करते है। आमतौर पर भटकटैया को खरपतवार का दर्जा दिया जाता है पर प्राचीन ग्रंथो मे इसके सभी भागो मे औषधीय गुणो का विस्तार से वर्णन मिलता है। आधुनिक विज्ञ

दे दे बुलउवा राधे को : छत्तीसगढ में फाग 1

दे दे बुलउवा राधे को : छत्‍तीसगढ में फाग संजीव तिवारी छत्तीसगढ में लोकगीतों की समृद्ध परंपरा लोक मानस के कंठ कठ में तरंगित है । यहां के लोकगीतों में फाग का विशेष महत्व है । भोजली, गौरा व जस गीत जैसे त्यौहारों पर गाये जाने लोक गीतों का अपना अपना महत्व है । समयानुसार यहां की वार्षिक दिनचर्या की झलक इन लोकगीतों में मुखरित होती है जिससे यहां की सामाजिक जीवन को परखा व समझा जा सकता है । वाचिक परंपरा के रूप में सदियों से यहां के किसान-मजदूर फागुन में फाग गीतों को गाते आ रहे हैं जिसमें प्यार है, चुहलबाजी है, शिक्षा है और समसामयिक जीवन का प्रतिबिम्ब भी । उत्साह और उमंग का प्रतीक नगाडा फाग का मुख्य वाद्य है इसके साथ मांदर, टिमकी व मंजीरे का ताल फाग को मादक बनाता है । ऋतुराज बसंत के आते ही छत्‍तीसगढ के गली गली में नगाडे की थाप के साथ राधा कृष्ण के प्रेम प्रसंग भरे गीत जन-जन के मुह से बरबस फूटने लगते हैं । बसंत पंचमी को गांव के बईगा द्वारा होलवार में कुकरी के अंडें को पूज कर कुंआरी बंबूल की लकडी में झंडा बांधकर गडाने से शुरू फाग गीत प्रथम पूज्य गणेश के आवाहन से साथ स्फुटित होता है - गनपति को म