विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों
छत्तीसगढ में किसी छत्तीसगढिया का पहला नाम सम्मान से मेरे जहन में कौंधता है तो वह पहला नाम है, अजीत प्रमोद कुमार जोगी । हॉं, अजीत जोगी एक व्यक्ति नहीं एक संस्था, एक विचार । हमारी अस्मिता को नई उंचाईयॉं प्रदान करने वाले पेंड्रा के सुविधविहीन छोटे से गांव में जन्म लेकर एस पी, कलेक्टर फिर सांसद व छत्तीसगढ के प्रथम मुख्य मंत्री बनने के गौरव के बावजूद छत्तीसगढिया सहज सरल व्यक्तित्व के धनी, अजीत प्रमोद कुमार जोगी । छत्तीसगढ के जनजातीय इतिहास को यदि हम खंगालें तो हमें परिगणित समुदाय की सत्ता का विस्तृत रूप नजर आता है, सत्ता व प्रतिभा का यह आग बरसों से राख में दबा गौरेला के गांव में पडा था जो छत्तीसगढ की सत्ता का असल हकदार था । खडखडिया सायकल से मोहन, शंकर व राजू के साथ आठ किलोमीटर सायकल ओंटते हुए स्कूल जाकर पढाई करने, मलेनियां नदी के बहाव को घंटों निहारने के साथ ही ठाकुर गुलाब सिंह के सिखाये संस्कृत श्लोंकों को आज तक हृदय में बसाये अजीत जोगी जी नें खाक से ताज तक की यात्रा अपनी मेहनत व अपनी असामान्य प्रतिभा के सहारे तय की है । मौलाना अबुल कलाम आजाद अभियांत्रिकी महाविद्यालय, भोपाल स