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लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

एक गरीब के आत्महत्या की कहानी : जांजगीर-चांपा जिले के गोविंदा गांव का मामला

एक गरीब के आत्महत्या की कहानी
जांजगीर-चांपा जिले के गोविंदा गांव का मामला
रतन जैसवानी

जांजगीर से 30 किमी। दूर बम्हनीडीह विकासखंड के गोविंदा ग्राम पंचायत में रामशनि पटेल ने 5 मार्च को कीटनाशक पीकर आत्महत्या कर ली। चांपा विधायक मोतीलाल देवांगन ने इस खबर की विज्ञप्ति व एक सीडी ६ मार्च की शाम को लगभग सभी अखबारों के कार्यालयों में भिजवाई थी। साथ में वहां की महिला सरपंच द्वारा विधायक को इस मौत के बारे में दी गई शिकायत की प्रतिलिपि भी भेजी गई थी। दूसरे दिन कुछ अखबारों में विधायक के हवाले से यह खबर छपी थी कि रामशनि ने रोजगार गारंटी का भुगतान न मिलने के कारण आत्महत्या कर ली, इस बात का उल्लेख भी था कि उसकी पत्नी गर्भवती थी और रामशनि आर्थिक अभाव के कारण उसका इलाज कराने में असमर्थ था जिसके कारण गर्भ में पल रहे दो बच्चों की मौत हो गई। पर पूरी तरह से रोजगार गारंटी का तीन हफतों तक भुगतान न मिलने वाली बात को इसका कारण ठहराया गया था।


मार्च को इस खबर की विस्तृत जानकारी लेने के लिए मैं और सहारा समय के संवाददाता राजेश सिंह क्षत्री मोटर सायकिल पर गोविंदा गांव पहुंचे। उस वक्त दिन के लगभग साढ़े ग्यारह बज रहे थे। मुख्य सड़क से लगा हुआ ग्राम पंचायत भवन है। जब हम वहाँ पहुंचे तो ग्राम पंचायत भवन के साथ बने हुए मंच पर चांपा के एसडीएम सुशील चंद्र श्रीवास्तव,ग्रामीण यात्रिंकी विभाग के कार्यपालन यंत्री पी। के। गुप्ता,बम्हनीडीह जनपद की सीईओ वंदना गबेल और कुछ अन्य अफसर गांव के ही कुछ ग्रामीणों से बात कर रहे थे। हमने वहां मौजूद अफसरों से रामशनि की आत्महत्या के बारे में चर्चा की। एसडीएम श्रीवास्तव ने कहा कि रामशनि ने निश्चित ही आर्थिक अभाव के कारण आत्महत्या की है। पर रोजगार गारंटी का भुगतान न होना इसका कारण नहीं है। उन्होंने गांववालों से बात की है जिसमें यह तथ्य सामने आया है कि पत्नी का इलाज न करा पाने से वह बहुत दुखी था। फिर हमने गांव के सरपंच के बारे में पूछा तो ग्रामीणों ने बताया कि यहाँ महिला सरपंच है, ग्राम पंचायत का अधिकतर कामकाज उसका पति रामसहाय सोनवानी ही देखता है। वह कहाँ मिलेगा, पूछने पर गांववालों ने बताया कि वह सामने पान दुकान पर बैठा हुआ है।


हम दोनों मंच से उठे और पान दुकान पर पहुंचे। उसे अपना परिचय देने के बाद हमने रामशनि के संबंध में बात की। उसने भी यह कहा कि तीन हफतों की मजदूरी का पैसा नहीं मिलने से वह परेशान था,आत्महत्या के एक दिन पहले ही वह उससे मिला था और पैसे मांगे,रामसहाय ने पैसे नहीं होने की बात कही तब उसने आक्रोश में कहा था कि वह सरपंच को मार डालेगा या खुदकुशी कर लेगा। दूसरे दिन सुबह उसने कीटनाशक पीकर जान दे दी। हमने रामशनि के परिजनों से मिलने की बात कही तो रामसहाय ने कहा कि अभी कुछ देर पहले ही उसके परिवार के लोग अस्थि फूल चुनने के बाद तालाब से लौटे हैं,एकाध घंटे बाद ही मिलना ठीक रहेगा। इसी बीच एसडीएम व अन्य अफसर मंच से उतर कर अपने चार पहिया वाहनों में वापस हो गए।


हम वहीं एक घंटा इतजार करते रहे। एक घंटे के बाद हम तीनों एक ही मोटर सायकल पर बैठकर रामशनि के घर पहुंचे। रामशनि का घर ग्राम पंचायत से लगभग आधा किमी। दूर था। जब हम लोग वहाँ पहुंचे तब उसके परिवार के लोग व कुछ रिश्तेदार घर के अंदर भोजन करते दिखे,हम तीनों पड़ोस के एक मकान के बरामदे में बैठकर इंतजार करने लगे। लगभग पंद्रह मिनट बाद रामशनि के पिता श्यामलाल पटेल ने हमसे बात की। उन्होंने बताया कि रामशनि के पास कमाई का कोई जरिया नहीं था। पिछले साल ही उसकी शादी हुई थी तब उसके पिता ने ही सारा खर्च उठाया था। उसकी पत्नी अनिता और वह मजदूरी करके गुजर-बसर करते थे। कुछ माह पहले ही उन्होंने बँटवारा कर लिया था। इस बार खेती से उसे चार बोरा धान मिला था जिसे वह आर्थिक अभाव के कारण बेचने की बात करता तो पत्नी व उसकी मां ने मना कर दिया। पैसों के अभाव में वह परेशान रहा करता था। कई लोगों से कर्ज ले लिया था,इसलिए पत्नी के इलाज के लिए उसे कहीं से पैसा नहीं मिला। गांव में ही रोजगार गारंटी योजना के तहत नए तालाब निर्माण में उसने कुछ दिन काम किया था,जिसका भुगतान अब तक किसी को नहीं मिला है। दो हफतों का भुगतान पहले मिला था,उसके बाद पैसा नहीं मिला। बताते वक्त श्यामलाल की आंखों में आंसू आ गए। उसके बाद हम वहाँ से लौटे। रामसहाय को ग्राम पंचायत भवन के पास छोड़कर वापस लौट गए। लौटते वक्त रामसहाय ने कहा कि अफसर उसे जेल भेजने की धमकी दे रहे थे। पर वे ग्रामीणों की गालियां खाने से अच्छा है कि पद से हटा दिया जाए या भले ही जेल भेज दिया जाए। इसके बाद लौटते वक्त बम्हनीडीह जनपद में एसडीएम की गाड़ी खड़ी देखकर हम उनसे मिलने रूक गए।


जनपद कार्यालय में एसडीएम श्रीवास्तव,सीईओ वंदना गबेल बैठे हुए थे तथा रोजगार गारंटी के मस्टररोल की जांच कर रहे थे। मैंने और राजेश ने भी वहाँ रखे मस्टर रोल को लगभग 40 मिनट तक देखा, कि आखिर रामशनि को कितने दिन की मजदूरी का भुगतान मिलना बाकी था। पांच हफतों के मस्टररोल देखने के बाद पाया कि पहले व दूसरे हफते के काम का भुगतान उसे मिल चुका था। तीसरे हप्ते में उसने 4 दिन व उसकी पत्नी अनिता ने 6 दिन मजदूरी की थी जिसका कुल भुगतान 690 रूपए उन्हें नहीं मिला था। चौथे व पांचवें हप्ते के मस्टररोल में उनका कहीं नाम नहीं था। गोविंदा का सचिव दिलहरण केंवट भी वहीं मौजूद था। उससे इस संबंध में बात की गई तो उसने बताया कि 5 मार्च को तीन हप्तों के मस्टररोल जमा किए थे। और उसी दिन रामशनि ने आत्महत्या कर ली थी। रोजगार गारंटी का मूल्यांकन करने वाले उप-अभियंता भी हड़ताल पर रहे जिसके कारण कार्य का मूल्यांकन नहीं हो पाया। ग्रामीणों और अफसरों से एक और बात पता चला कि रोजगार गारंटी में नए तालाब की प्रशासकीय स्वीकृति से ज्यादा का काम कराया गया है और इसके भुगतान को लेकर विवाद बना हुआ है।


रामशनि की मौत आर्थिक अभाव के कारण ही हुई है, पत्नी का इलाज न करा पाने से वह काफी दुखी था और उसके दो बच्चे जन्म से पहले ही काल कवलित हो गए थे। पर इससे सिर्फ रोजगार गारंटी के भुगतान न होने को कारण ठहराना उचित नहीं है। गोविन्दा गांव के रामशनि की आत्महत्या के जिम्मेदारों पर पूरी जांच पड़ताल के विश्लेषण के बाद कार्रवाई होना भी जरुरी है।

रतन जैसवानी

रतन जैसवानी जी जांजगीर - चांपा में दैनिक छत्तीसगढ के व्यूरो चीफ हैं एवं अभी अभी इन्होंनें खबर एक्सप्रेस नाम से एक हिन्दी ब्लाग भी बनाया है देखें : खबर एक्सप्रेस

टिप्पणियाँ

  1. वास्तव मे ऐसे कृत्य ही मानवता को शर्मसार कर है . रोजगार गारंटी योजना के तहत गरीब को भुगतान न किया जाना व्यवस्था को अंगूठा दिखा रहे है ऐसे भ्रष्ट अधिकारियो के ख़िलाफ़ कठोर कार्यवाही की जाना चाहिए . एम्. पी मे भी ऐसे मामले सुनने मे आ रहे है

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  3. किसानों के आत्‍महत्‍या की खबर पढ़कर उसका Generalized कारण देने की हमारी प्रवृत्ति उचित नहीं है। एक संवेदनशीलता के साथ उनके कारणों की पड़ताल होनी चाहिए। इस दिशा में आपका यह लेख अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण है। आर्थिक अभाव तो होते ही हैं, पर कभी-कभी अन्‍याय पूर्ण बर्ताव की भूमिका भी पर्याप्‍त होती है। संभव है कि कारण मात्र 690 रूपए न हो पर उसे प्राप्‍त करने की प्रक्रिया में जो अपमान, अवमानना झेलनी पड़ी होगी, उसका हिसाब किताब कौन करेगा। बहुत सारी बातें मस्‍टर रोल में दर्ज नहीं होती हैं, उसकी पड़ताल कौन करेगा? यह भी संभव है कि रोजगार गारंटी योजना में कोई खोट न हो, कोई दूसरा ही कारण हो पर उसे भी समझना ज़रूरी है। दूर बैठकर अटकलें लगाने के बजाए कारणों की तलाश में आपका प्रयास सराहनीय है - आनंद

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  4. संजीव जी आपने जिस दिन यह खबर प्रकाशित की मैंने उसी दिन यह खबर पढी ,पर उसी दिन कुछ कहना मुझे जल्दबाजी लगा |दो दिन सोचने के बाद लगता है की इस पर प्रतिक्रिया देना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है ,हम आमिर धरती के निवासी है फिर भी लोग गरीब है ,इस गरीबी ने किसी बेचारे की जान ले ली ,भगवन उसकी आत्मा को शांति दे और उनके परिवार जनों को यह दुःख सहने की शक्ति |मास्टर रोल ,या सरकार की भूमिका ये सब गौण कारण है क्योकि सरकार ने भी यह योजना गरीबो के लाभ के उद्देश्य से ही चलाई है ,इसका मुख्य कारण है हमारी अशिक्षा ,इसके कारण ही हम अपनी जिंदगी की लड़ाई के औजार नहीं खोज पाते |
    इस घटना के माध्यम से आपने एक गंभीर समस्या पर सभी का ध्यान आकृष्ट किया है ,आशा करते है की हमारे राज्य के कर्णधार भी इस घटना को इतनी ही सवेन्दन शीलता से लेंगे ....

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