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छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

छत्तीसगढ गौरव : रवि रतलामी

छत्तीसगढ, दिल्ली व हरियाणा से एक साथ प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र 'हरिभूमि' में 13 फरवरी 2008 को सम्पादकीय पन्ने पर यह आलेख प्रकाशित हुआ है जिसकी फोटो प्रति व मूल आलेख हम यहां प्रस्तुत कर रहे हैं :-

“जन्म से छत्तीसगढ़िया, कर्म से रतलामी. बीस साल तक विद्युत मंडल में सरकारी टेक्नोक्रेट के रुप में विशाल ट्रांसफ़ॉर्मरों में असफल लोड बैलेंसिंग और क्षेत्र में सफल वृहत् लोड शेडिंग करते रहने के दौरान किसी पल छुद्र अनुभूति हुई कि कुछ असरकारी काम किया जाए तो अपने आप को एक दिन कम्प्यूटर टर्मिनल के सामने फ्रीलांस तकनीकी-सलाहकार-लेखक और अनुवादक के ट्रांसफ़ॉर्म्ड रूप में पाया. इस बीच कंप्यूटर मॉनीटर के सामने ऊंघते रहने के अलावा यूँ कोई खास काम मैंने किया हो यह भान तो नहीं लेकिन जब डिजिट पत्रिका में पढ़ा कि केडीई, गनोम, एक्सएफ़सीई इत्यादि समेत लिनक्स तंत्र के सैकड़ों कम्प्यूटर अनुप्रयोगों के हिन्दी अनुवाद मैंने किए हैं तो घोर आश्चर्य से सोचता हूँ कि जब मैंने ऊँधते हुए इतना कुछ कर डाला तो मैं जागता होता तो पता नहीं क्या-क्या कर सकता था?” यह शब्द हैं छत्तीसगढ के राजनांदगांव में 5 अगस्‍त 1958 को जन्में भारत के जानेमाने इंटरनेट विशेषज्ञ व तकनीशियन रविशंकर श्रीवास्तव के । हिन्दी इंटरनेट व ब्लाग को भारतीय पृष्टभूमि में लोकप्रिय बनाने वाले अतिसक्रिय नेट टेक्नोक्रैट रवि शंकर श्रीवास्तव बीस सालों तक एमपीईबी में इलेक्ट्रिकल इक्यूपमेंट मैन्टेनेंस इंजीनियर के रूप में कार्य कर चुके हैं वे वहां से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर पिछले सालों से इंफरमेशन टेक्नालाजी के क्षेत्र में सक्रिय रूप से कार्य कर रहे हैं ।

रवि रतलामी हिन्दी को इंटरनेट में स्थापित करने के लिए अपने सामान्य व विशिष्ठ प्रयासों में निरंतर जुटे रहे जिसे वे उंघते और जागते हुए प्रयास कहते हैं । इसी क्रम में इन्होंनें अपने तकनीकी अनुभवों को तकनीकी पत्र-पत्रिकाओं के द्वारा बांटना शुरू किया जिससे भारत के इंटरनेट व सूचना तकनीकी के क्षेत्र के काम में एक अभूतपूर्व क्रांति आने लगी । इनके सैकडों तकनीकी लेख भारत की प्रतिष्ठित अंग्रेजी पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगे । इन्होंने इस क्षेत्र में अपने ज्ञान व शोध कार्यों को निरंतर नया आयाम दिया है । इनके कम्प्यूटर साफ्टवेयरों व इंटरनेट प्रयोगों में हिन्दी भाषा को पूर्णत: स्थापित करने के अपने दृढ निश्चय व प्रतिबद्धता के उद्देश्य के कारण ही लिनिक्स आपरेटिंग सिस्टम के पूर्ण हिन्दीकरण स्वरूप मिलन 0.7 (हिन्दी संस्करण) को जारी किया जा सका एवं गनोम डेस्कटाप के ढेरों प्रोफाईलों का अंग्रेजी से हिन्दी में अनुवाद किया गया । लिनिक्स सिस्टम के रवि जी अवैतनिक – कार्यशील सदस्य हैं । कम्प्यूटर में हिन्दी प्रयोग का यह प्रयास भारत के अधिसंख्यक हिन्दी भाषा-भाषी जन के लिए एक नया सौगात है इससे देश में कम्प्यूटर अनुप्रयोगों में काफी वृद्धि हुई है एवं देश में सूचना क्रांति का विकास हिन्दी के कारण संभव होता दिख रहा है क्योंकि ऐसे साफ्टवेयरों के प्रयोग से अंग्रेजी से डरने वाले कर्मचारी एवं सामान्य जन भी कम्प्यूटर के प्रयोग में रूचि दिखलाने को उत्द्धत हुए हैं ।

हिन्दी या स्थानीय भाषा में कम्प्यूटर आपरेटिंग सिस्टम व साफ्टवेयर के विकास से व्यक्ति के मूल में अंग्रेजी के प्रति सर्वमान्य झिझक दूर हो जायेगी क्योंकि हिन्दी या स्थानीय भाषा में संचालित होने व हेल्प मीनू भी उसी भाषा में होने के कारण सामान्य पढा लिखा व्यक्ति भी कम्प्यूटर प्रयोग कर पायेगा । यहां यह बात अपने जगह पर सदैव अनुत्तरित रहेगा कि भारत जैसे गरीब देश में कम्प्यूटर व इंटरनेट में हिन्दी या स्थानीय भाषा के प्रयोग को यदि प्रोत्साहन दिया जाए तो क्या मजदूरों को काम मिलेगा ? भूखों को रोटी मिलेगी ? पर इतना तो अवश्य है कि जैसे टीवी, एटीएम व मोबाईल और मोबाईल नेट पर मीडिया का प्रयोग इस गरीबी के बाद भी जिस तरह से बढा है और लोगों के द्वारा अब इसे विलासिता के स्थान पर आवश्यकता की श्रेणी में रखा जा रहा है । इसे देखते हुए इन सबके आधार में कम्प्यूटर आपरेटिंग सिस्टम व साफ्टवेयरों का हिन्दीकरण व स्थानीय भाषाकरण की आवश्यकता को नकारा नहीं जा सकता ।

कम्प्यूटर पर हिन्दी का प्रयोग विगत कई वर्षों से हो रहा है, कहीं कृति देव, चाणक्य तो कहीं श्री लिपि या अन्य फोन्ट-साफ्टवेयर हिन्दी को प्रस्तुत करने के साधन हैं । इन सभी साधनों के प्रयोग करने के बाद ही आपके कम्प्यूटर में हिन्दी के दर्शन हो पाते हैं । इन साफ्टवेयरों को आपके कम्प्यूटर में डाउनलोड करने, संस्थापित करने एवं कहीं कहीं कुजी उपयोग करने या अन्य उबाउ तकनिकी के प्रयोग के झंझट सामने आते हैं और प्रयोक्ता हिन्दी से दूर होता चला जाता है किन्तु यूनिकोड आधारित हिन्दी नें इस मिथक को तोडा है । आज विन्डोज एक्सपी संस्थापित कम्प्यूटर यूनिकोड यानी संपूर्ण विश्व में कम्प्यूटर व इंटरनेट में मानक फोंट ‘मंगल’ हिन्दी को प्रदर्शित करने के सहज व सरल रूप में उभरा है जिसे अन्‍य आपरेटिंग सिस्टमों नें भी स्वीकारा है । जिसके बाद ही यूनिकोडित रूप से लिखे गये हिन्दी को वेब साईटों या कम्प्यूटर में देखने के लिए किसी भी साफ्टवेयर को संस्थापित या डाउनलोड करने की आवश्यकता अब शेष नहीं रही, मानक हिन्दी फोंट विश्व में कहीं भी अपने वास्तविक रूप में प्रदर्शित होने लगा है ।

वेब दुनिया व बीबीसी जैसे हिन्दी पोर्टलों के द्वारा पूर्व में कृति व अन्य फोंटों का प्रयोग किया जाता था जिसे देखने के लिए संबंधित फोंट को डाउनलोड करना पडता था इसी समस्या को ध्यान में रखते हुए वेबदुनिया नें अपना फोंट यूनिकोडित कर लिया । यूनिकोडित हिन्दी के प्रयोग को अब भारत के पत्रकारों नें भी स्वीकार करना प्रारंभ किया है क्योंकि यह तकनिक समाचारों को सीधे वेब पोर्टल में प्रस्तुति एवं प्रकाशन के लिए सक्षम बनाता है और यह सुविधा स्वतंत्र रूप से पत्रकारिता कर रहे व्यक्तियों व लेखकों के लिए तो अब अतिआवश्यक हो गया है ।

90 के दसक में जब इंटरनेट नें भारत में पाव पसारना प्रारंभ किया था तब भिलाई स्पात संयंत्र व अन्य स्थानीय संयंत्रों में तकनीकी सहयोग के लिए भिलाई आने वाले विदेशियों के लेपटाप में इंटरनेट कनेक्शन कानफिगर करते हुए हमने देखा है कि जर्मनी एवं जापान जैसे छोटे देश के निवासियों के लेपटाप में कम्प्यूटर आपरेटिंग सिस्टम उनके देश की भाषा में ही होता है । वे बोलते व कार्य करते हैं, अंग्रेजी भाषा में किन्तु कम्प्यूटर का प्रयोग वे अपने देश की भाषा में करते हैं । उस समय हम सोंचा करते थे कि वह दिन कब आयेगा जब भारत में भी हिन्दी आपरेटिंग सिस्टम का प्रचलन हो पायेगा । माईक्रोसाफ्ट व लिनिक्स नें हमारे इस स्वप्न को पूरा करने में सराहनीय कदम उठाया है और इस पर हो रहे प्रयोगों से मन को सुकून मिला है ।

इन सबके नेपथ्य में रवि रतलामी जैसे व्यक्तियों का योगदान है, हिन्दी के प्रयोग को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से बढावा देने की प्रक्रिया सामान्य अनुभव से दृष्टिगत भले ही न हो किन्तु हिन्दी नें शनै: शनै: विकास किया है और इसके लिए रवि रतलामी जैसे धुरंधरों नें काम किया है ।

विश्व में हिन्दी भाषा के ताकत को माईक्रोसाफ्ट नें बखूबी पहचाना है इस कारण उसने भी अपने साफ्टवेयरों व आपरेटिंग सिस्टमों को हिन्‍दी में परिर्वतित करना प्रारंभ कर दिया है । माईक्रोसाफ्ट नें हिन्दी पर हो रहे नित नव प्रयोगों में टेक्नोक्रैट रवि शंकर श्रीवास्तव के महत्व को स्वीकारते हुए इंटरनेट के हिन्दीकरण व प्रोग्राम डेवलपमेन्ट के साथ समुदाय की समस्याओं के समाधान के लिए दिये जानेवाले माइक्रोसाफ्ट के मोस्ट वैल्युएबल प्रोफेशनल एवार्ड के लिए उन्हें चुना । एमवीपी संसार भर के 90 से भी ज्यादा देशों से चुने गये ऐसे विशिष्ट तकनीकी लोगों को दी जाने वाली उपाधि है जिन्होंने निःस्वार्थ भाव से अपने तकनीकी ज्ञान, अनुभव को समुदाय में बाँट कर उन्हें समृद्ध किया है। आम जन के लिए पत्र-पत्रिकाओं के द्वारा लगातार लेख लिखने, कार्यशालाओं में शिरकत करने के साथ ही रवि नें जून 2004 में ‘रवि रतलामी का हिन्दी ब्लाग’ प्रारंभ किया जिसमें उनके द्वारा नियमित रूप से आम घटनाओं के साथ-साथ हिन्दी कम्यूटिंग व तकनीक से जुड़ी जानकारियों पर लेख लिखे जा रहे हैं । इनके इस ब्लाग से अनगिनत लोगो नें इंटरनेट पर हिन्‍दी का प्रयोग सीखा तकनीकी जानकारियां आम हुई । हिन्दी के इस अतिलोकप्रिय ब्लाग के महत्व का आंकलन इस बात से लगाया जा सकता है कि 2006 में इसे माइक्रोसॉफ्ट भाषा इंडिया ने सर्वश्रेष्ठ हिन्दी ब्लॉग से नवाजा ।

‘रवि रतलामी का हिन्दी ब्लाग’ के अतिरिक्त रवि रतलामी ‘रचनाकार’ और ‘देसीटून्‍ज’ नाम के साईट में भी हिन्दी के अपने कौशल को प्रस्‍तुत कर रहे हैं । इन दोनों साईटों के संबंध में कहा जाता है कि ‘रचनाकार’ जहाँ पूरी तरह से गंभीर साहित्यिक ब्लॉग है, वहीं ‘देसीटून्‍ज’ में व्यंग्यात्मक शैली के कार्टून्स और केरीकेचर्स से आप प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाएँगे ।‘ हिन्दी साहित्य में रूचि रखने के कारण इन्होंने हिन्दी कविताऍं, गजल व व्यंग लेखन को भी आजमाया है जो अनगिनत पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित भी हुए हैं । रवि जी कई हिन्दी व अंग्रेजी के तकनीकि पत्रिकाओं में अब भी नियमित स्तभ लेखन करते हैं ।

रवि रतलामी अपने जन्म भूमि छत्तीसगढ की सेवा में भी पिछले कई वर्षों से लगे हुए थे । कम्प्यूटर में हिन्दी अनुप्रयोगों में गहन शोध करते हुए रवि नें छत्तीसगढी भाषा के आपरेटिंग सिस्टम पर भी कार्य किया एवं अंतत: इसे सफलतापूर्वक पूर्ण कर लिया । सरकार एवं जनता के द्वारा छत्तीसगढ में सूचना प्रौद्यौगिकी के बेहतर व सफलतम प्रयोग को देखते हुए यह आपरेटिंग सिस्टम हम छत्तीसगढियों के लिए और भी महत्वपूर्ण हो गया है इससे कम्प्यूटर का प्रयोग सरल हो जायेगा । धान खरीदी, ग्रामपंचायतों में भविष्य में लगने वाले कियोक्स टचस्क्रीन-कम्प्यूटर, च्‍वाईस सेंटरों आदि में अपनी भाषा में संचालित कम्प्यूटर को चलना व समझना आसान हो पायेगा ।

रवि रतलामी के इस योगदान पर छत्तीसगढ की प्रतिष्ठित साहित्य हेतु सर्मपित संस्था सृजन सम्मान द्वारा वर्ष 2007-08 के लिए ‘छत्तीसगढ गौरव सम्मान’ देने की घोषणा की गई है । सृजन सम्मान नें श्री रतलामी के कार्य को सूचना और संचार क्रांति के क्षेत्र में राज्य के 2 करोड़ लोगों की भाषा-छत्तीसगढ़ी के उन्नयन और विकास के लिए परिणाममूलक और दूरगामी प्रभाव वाला निरूपित किया है, जिसकी आज महती आवश्यकता है । हमें रवि रतलामी के प्रयासों पर नाज है क्योंकि विश्व में हिन्दी को कम्प्यूटर पर स्थापित करने में जो योगदान रवि नें किया है उसे चंद शब्दों में बांधा नहीं जा सकता । आज यही योगदान उनके द्वारा छत्तीसगढी के लिए किया जा रहा है जिसका तात्कालिक लाभ एवं आवश्यकता यद्धपि समझ में नही आ रहा हो किन्तु यह एक आगाज है आगे इस तकनीकी व भाषा को अपने प्रगति के कई और सोपान रचने हैं । सृजन के इस शिल्पी की उंगली पकड कर हमें संचार तकनीकी के क्षेत्र में भी समृद्ध बनना है ।
(ब्लाग जगत में उपलब्ध जानकारियों के आधार पर )

संजीव तिवारी

श्री रवि रतलामी जी को सृजन-सम्मान के द्वारा एक प्रतिष्ठापूर्ण समारोह में 'छत्तीसगढ गौरव' सम्मान
दिनांक 17.02.2008 को प्रदान किया जायेगा रवि भाई को अग्रिम शुभकामनायें ।
श्री रवि रतलामी जी 17.02.2008 को सुबह
9 से संध्या 7 तक रायपुर में रहेंगें , निर्धारित कार्यक्रमों के बीच संभावना है कि हम दोपहर 11 से 2 तक उनके साथ रह कर हिन्दी चिट्ठाकारी पर पारिवारिक चर्चा करें एवं इस सम्मान समारोह के सहभागी बनें । रईपुर वाले हमर बिलागर भाई मन घलो संग म रहितेव त अडबड मजा आतीस, त आवत हव ना भाई मन .....

टिप्पणियाँ

  1. रवि जी का जलवा तो चारों और फैला हुआ, रवि जी पर लिखने के लिए शुक्रिया

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  2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  3. पंकज भईया आप अनुभवी हैं एवं छत्तीसगढ के चप्पे चप्पे से वाकिफ हैं आपका कहना शतप्रतिशत सहीं है राज्य के दूरस्थ अंचलो मे बिना किसी प्रोत्साहन और पुरुस्कार के सैकडो साहित्यकार तन, मन और धन से साहित्य सेवा कर रहे है, हमारा प्रयास ऐसे गौरव को सामने लाना एवं उन्हे सम्मानित करने होना ही चाहिए । विगत दिनों से छत्तीसगढी पर हो रही राजनिति किसी से छुपी नहीं है ।
    पिछले रमन सिंह के पोस्ट पर मैनें इन बातों पर प्रकाश डालने का प्रयास भी किया था । मैं भविष्य में प्रयास करूंगा आपके सुझावों पर अमल करने का ।

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  4. रवि भाई को बधाई।
    रवि भाई कैसे साहित्यकार हैं यह सब जानते हैं और वे स्वयं भी स्वीकार करते हैं। जहाँ तक मुझे जानकरी है यह सम्मान उन्हें साहित्यकार की हैसियत से नहीं मिल रहा है, अपितु एक छत्तीसगढ़ीभाषी इंजिनियर की हैसियत से प्रदान किया जा रहा है जिस ने छत्तीसगढ़ी में ऑपरेटिंग सिस्टम को विकसित करने का काम किया है। किसी भाषा के साहित्यकारों को सम्मानित किए जाने का मसअला बिलकुल अलग है। इन दोनों को आपस में जोड़े जाने से अनेक भ्रांतियाँ उत्पन्न हो सकती हैं। और होती दिखाई दे रही हैं। इसे रोक कर शालीनता का परिचय देना चाहिए।

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  5. यह खबर हर हिन्दी चिट्ठा-प्रेमी के लिये खुशी एवं गर्व की बात है.

    ईश्वर से प्रार्थना है कि वे रवि जी को शतायु बनायें एवं इसी उत्साह के साथ कार्य करने के लिये शक्ति प्रदान करें!

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  6. रवि जी को बधाई व शुभकामनाएं!!

    दिनेशराय जी का कहना सौ फीसदी सही है, जहां तक मुझे भी जानकारी है रायपुर में रवि रतलामी जी का साहित्य के लिए या फिर साहित्यकार होने के कारण सम्मान नही किया जा रहा बल्कि बतौर टेक्नोक्रैट छत्तीसगढ़ी ऑपरेटिंग सिस्टम विकसित करने व उनके द्वारा इंटरनेट पर किए गए हिंदीकरण के कारण किया जा रहा है!!!

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  7. भैया, रवि मुझे प्रिय हैं इससे कि मैं उन्हे रतलाम और रतलामी सेव से चिन्हित करता हूं।

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  8. रवि जी को बधाई व शुभकामनाएं!!

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  9. संजीत भाई ने रवि भाई के सम्‍मान के संबंध में स्‍पष्‍ट कर दिया है । वैसे संजीव जी के पूरे पोस्‍ट को पढने के बाद सभी स्थितियां स्‍वमेंव स्‍पष्‍ट हो जा रही है, उन्‍होंनें यहां साहित्‍य सम्‍मानों के संबंध में कुछ लिखा ही नहीं है ।

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  10. मेरी भी बधाई स्वीकार करें, वैस मेरा खयाल है कि रवि जी अब कोरी बधाईयों से ऊपर हैं… उनकी प्रतिबद्दध्ता की दाद देनी होगी… अच्छी प्रस्तुती है उन लोगों के लिये जो रवि रतलामी को ठीक से नहीं जानते… :)

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  11. किसने कहा आपसे कि वे सिर्फ छत्‍तीसगढ़ के गौरव हैं......रविजी सारे देश के गौरव हैं.

    मेरी ओर से उन्‍हें बधाईयां.

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  12. रवि रतलामी सिर्फ छत्तीसगढ़ के ही नहीं पूरे हिंदी ब्लॉगिंग समाज के गौरव हैं।

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  13. रवि जी को बधाई व शुभकामनाएं!!

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  14. रवि रतलामी जी जैसे प्रतिभाशाली भारतीय पर हमें भी गर्व है। छ्त्तीसगढ़ के प्रतिभावान सपूतों eक बारें में जान कर अब तो लगता है काश हम भी छ्त्तीसगढ़ में पैदा हुए होते तो थोड़ी सी अक्ल वहां की मिट्टी से ही मिल जाती…। रवि जी को मेरी तरफ़ से भी बहुत बहुत मुबारकवाद्।

    अनिता कुमार जी, ई मेल के द्वारा

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  15. रवि जी के कार्यो के विषय में संजीव तिवारी जी और दुर्ग-भिलाई के साहित्‍य जगत से जुडे लोगों से सुना ,मुझ जैसे परदेशिया के लिए उनके द्वारा किए गए कार्य बेहद महत्‍तवपूर्ण हैं, क्‍योंकि हम अपनी धरती से दूर रहकर भी अपनी भाषा में अपनी जमीन से जुडे रह सकते हैं,,,

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  16. आप सभी का बहुत-2 धन्यवाद. आप सभी के ये प्रेममय शुभकामना संदेश मुझे हमेशा ऊर्जित करते रहेंगे.

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आपकी टिप्पणियों का स्वागत है. (टिप्पणियों के प्रकाशित होने में कुछ समय लग सकता है.) -संजीव तिवारी, दुर्ग (छ.ग.)

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