विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों
छत्तीसगढ में रायपुर जिले के पाण्डुका गांव में जन्में योग और ध्यान को दुनिया के कई देशों तक पहुंचाने वाले आध्यात्मिक गुरू महर्षि महेश योगी आज नीदरलैण्ड में चिरनिद्रा में लीन हो गए । दुनियां में योग और आध्यात्म को नई बुलंदियों में पहुंचाने वाले महर्षि महेश योगी का असली नाम महेश प्रसाद वर्मा था । उनका जन्म 12 जनवरी 1917 को छत्तीसगढ के एक छोटे से गांव में हुआ था । महर्षि योगी नें आरंभिक पढाई छत्तीसगढ में एवं आगे की पढाई जबलपुर में की फिर उन्होंने दर्शनशास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि इलाहाबाद से प्राप्त किया । भारतीय वैदिक दर्शन नें उन्हें काफी प्रभावित किया और योग एवं वेद को उन्होंनें अपने जीवन में उतार लिया ।
साठ के दसक में मशहूर रॉक बैंड बीटल्स के सदस्यों के साथ ही वे कई बडी हस्तियों के आध्यात्मिक गुरू हुए और दुनिया भर में प्रसिद्ध हो गए । पश्चिम में जब हिप्पी संस्कृति का बोलबाला था, तब महर्षि महेश योगी नें भावातीत ध्यान के जरिये दुनिया भर में अपने लाखों अनुयायी बनाए ।
40 व 50 के दशक में उन्होंने हिमालय में अपने गुरू से ध्यान और योग की शिक्षा लिया, अपने इसी ज्ञान के द्वारा महर्षि महेश योगी नें बेहतर स्वास्थ्य और आध्यात्मिक ज्ञान को बांटना प्रारंभ किया और दुनिया भर के लोग उनसे जुडते चले गए ।
दुनिया में अपने स्वयं के टीवी चैनलों व 150 देशों में लगभग पांच सौ स्कूलों एवं चार महर्षि विश्वविद्यालयों से भारतीय वैदिक परम्परा को दूर दूर तक फैलाने वाले योगी के पावन जन्मस्थली में भी लगभग 200 छात्रावासी बच्चे वैदिक परम्पराओं के अनुसार शिक्षा ग्रहण करते हैं ।
महर्षि महेश योगी के भारतीय वैदिक ज्ञान, भावातीत ध्यान व योग-आध्यात्म को देश के अतिरिक्त विदेशों में भी स्थापित करने के योगदान को भारत सदैव याद रखेगा ।
छत्तीसगढ के इस सपूत को अंतिम नमन ।
साठ के दसक में मशहूर रॉक बैंड बीटल्स के सदस्यों के साथ ही वे कई बडी हस्तियों के आध्यात्मिक गुरू हुए और दुनिया भर में प्रसिद्ध हो गए । पश्चिम में जब हिप्पी संस्कृति का बोलबाला था, तब महर्षि महेश योगी नें भावातीत ध्यान के जरिये दुनिया भर में अपने लाखों अनुयायी बनाए ।
40 व 50 के दशक में उन्होंने हिमालय में अपने गुरू से ध्यान और योग की शिक्षा लिया, अपने इसी ज्ञान के द्वारा महर्षि महेश योगी नें बेहतर स्वास्थ्य और आध्यात्मिक ज्ञान को बांटना प्रारंभ किया और दुनिया भर के लोग उनसे जुडते चले गए ।
दुनिया में अपने स्वयं के टीवी चैनलों व 150 देशों में लगभग पांच सौ स्कूलों एवं चार महर्षि विश्वविद्यालयों से भारतीय वैदिक परम्परा को दूर दूर तक फैलाने वाले योगी के पावन जन्मस्थली में भी लगभग 200 छात्रावासी बच्चे वैदिक परम्पराओं के अनुसार शिक्षा ग्रहण करते हैं ।
महर्षि महेश योगी के भारतीय वैदिक ज्ञान, भावातीत ध्यान व योग-आध्यात्म को देश के अतिरिक्त विदेशों में भी स्थापित करने के योगदान को भारत सदैव याद रखेगा ।
छत्तीसगढ के इस सपूत को अंतिम नमन ।
११ जनवरी को सेवानिव्रत होने के कुछ दिनो के पश्चात हि महर्षि महेश योगी जी निर्वाण हुये. ईश्वर उनके आत्मा को शान्ती प्रदान करे.
जवाब देंहटाएंमहेश योगी जी को श्रद्धांजली।
जवाब देंहटाएंश्रद्धांजलि उन्हें!
जवाब देंहटाएंहमारी श्रधांजलि।
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