विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों
छत्तीसगढ के मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह को भारत अस्मिता श्रेष्ठ सम्मान से अलंकृत किया जाना उनके लोकतंत्र के लिए दिये जाने वाले योगदान का सम्मान है । यह सम्मान डॉ.रमन सिंह को महारा्ट्र तकनीकी संस्थान नें लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए उनके प्रयासों के प्रतिफल के रूप में दिया/किया है ।
देश में सम्मानों की एक परम्परा रही है और समूची दुनिया में व्यक्ति विशेष के किसी क्षेत्र में किये जा रहे योगदान के लिए सम्मान किया जाता रहा है । हालांकि इधर भारत में सम्मानों को लेकर एक विवाद सा पैदा हो गया है, जिसकी प्रतिध्ववनि आपने हिन्दी ब्लागजगत में भी देखा था लेकिन यदि सम्मानित करने वाली संस्था के कद और उसकी सोंच को नजर अंदाज कर दिया जाए तो किसी व्यक्ति विशेष के कार्यों के सम्मान का सीधा मतलब तो यही होता है कि समाज उसके कार्यों का अनुकरण करे और समाज में मानवीय मूल्यों की स्थापना हो सके ।
आज समाज में जिस तरह से मानवीय मूल्यों का ह्रास हो रहा है, इसे बचाए रखने के लिए लोकतंत्र एक कारगर हथियार है क्योंकि वोटों की राजनीति से ही अपनी बात को रखा जा सकता है, लेकिन यह भी सच है कि लोकतंत्र को बचाए रखना भी एक बडी चुनौती है । व्यक्तिवादी राजनीति के वर्तमान दौर में लोकत्रांत्रिक मूल्यों की हिफाजत में लगे छत्तीसगढ के मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह का यह सम्मान देश की राजनीती में नये आयाम स्थापित तो करेगा ही साथ ही यह लोगों को इस बात के लिए प्रेरित भी करेगा कि आने वाली नस्लें उनका अनुसरण करें ।
डॉ. रमन को मिला यह सम्मान अमानवीय होते सामाजिक परिवेश के बरक्स मानवीय मूल्यों की स्थापना का सम्मान है ।
कतरने काम की : बात पते की
कतरने काम की : बात पते की
संजीव तिवारी
तो टेम्प्लेट में प्रयोग जारी ही है , गुड है।
जवाब देंहटाएंकल रात में देखा था तो सारे शब्द बिखरे हुए आ रहे थे फॉयरफाक्स में, लेकिन अब ठीक है।
डा रमण के बारे में पढ़ कर अच्छा लगा, भगवान करे हर स्टेट के रहने वाले अपने अपने मुख्य मंत्रियों से यूं ही प्र्सन्न हों तो देश कहां से कहां पहुंच जाए
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