मॉं : एक कविता (श्रद्धांजली) सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

मॉं : एक कविता (श्रद्धांजली)


टिप्पणियाँ

  1. मां को देवी मानकर मन में रमा लीजिए, फिर किसी और देवी की ज़रूरत नहीं पड़ती। अपनी मां ही सर्वशक्तिदायिनी हो जाती है। आपकी मां की इस पुण्यतिथि पर मेरी यही प्रार्थना है कि ईश्वर उन्हें स्वर्ग में मातृसत्ता के सिंहासन पर आरूढ करे।

    जवाब देंहटाएं
  2. मां- मृत्यु के अलावा वो आखिरी ठौर, जहां आकर व्यक्ति शांत हो जाता है, जहां से जाने की जल्दी नहीं होती, जहां कुछ और पाने की बेचैनी नहीं होती। पार्थिव रिश्तों में सबसे अलौकिक है मां। जगज्जननी दुर्गा का ही मूर्त रूप है मां। पुण्यतिथि पर आपकी माता जी को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर. ममतामयी माँ को मेरी ऑर से श्रद्धा सुमन अर्पित है. नमन करता हूँ

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुंदर । शब्द छोटे पड जाते हैं । माँ के प्रति आपकी भावनाओं को समझ सकती हूँ, णाँ भी हूँ ऐर बेटी भी ।

    जवाब देंहटाएं
  5. माँ के लिए लिखा गया हर शब्द खूबसूरत है माँ सा ही
    बहुत सुंदर है यह .और शुक्रिया आपका मेरे लिखे को पसन्द करने के लिए [:)]

    जवाब देंहटाएं
  6. मेरी भी श्रद्धांजलि मित्र। जिस मनोयोग से आपने लिखा-उकेरा है उससे बहुत कुछ पता चलता है भावना जगत का।

    जवाब देंहटाएं
  7. श्रद्धांजलि उन्हें!

    बहुत सुंदर व भावपू्र्ण लिखा है आपने!!

    जवाब देंहटाएं
  8. मां सचमुच महान है।
    िबना उसके सूना जहान है।
    ....आज उस मां को श्रद्धा सुमन।

    जवाब देंहटाएं
  9. मां सचमुच महान है।
    िबना उसके सूना जहान है।
    ....आज उस मां को श्रद्धा सुमन।
    surjeet.sur@gmail.com

    जवाब देंहटाएं
  10. श्रद्धासुमन
    माता को समर्पित
    बसे दिल में
    हर शब्द माँ की चरण वन्दना करता हुआ सा...

    जवाब देंहटाएं
  11. bahut hi marmik kavita hai ...aantima panktiya dil tak gahare utarati hai...

    जवाब देंहटाएं
  12. Lokesh Sharma (Bonn, Germany)
    जोहर ले. आप मन के कविता हा बड़ा सुघर हावे.

    जवाब देंहटाएं
  13. Aadarneey Bhaiya,

    Marm shparshi rachana hai. Aapki rachana padh kar maa ki yaad aa gayi. Main to jite ji hi aapni maa se dur ho gaya hoon.

    Aapse bahoot kuch sikhane ko milta hai.

    regards,
    Manish Kr. Pandey

    जवाब देंहटाएं
  14. mamta se paripudan...
    vatshaly se paripudan..
    dhara par iswar ka pratirup maa
    punaya tithi par ..
    unhe shadar samarpit srdha suman

    aapki kavita bahut marmik hai
    man ko chhu gaye

    जवाब देंहटाएं
  15. आप की माता जी को मेरी भी श्रद्धांजली…आप की कविता ने मुझे मेरी मां की याद दिला दी। आशा है आप की माता जी और मेरी माता जी दोनों वहां सुख से होगीं

    जवाब देंहटाएं
  16. Ma! ek chhota sa dikhne wala shabd jismein saari duniya samayi hai, unke samman mein jitna kaha jaye kam hai.

    bahut sundarta se bhaavon ki abhivyakti ki hai.

    shubhkamnayen

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

आपकी टिप्पणियों का स्वागत है. (टिप्पणियों के प्रकाशित होने में कुछ समय लग सकता है.) -संजीव तिवारी, दुर्ग (छ.ग.)

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

भट्ट ब्राह्मण कैसे

यह आलेख प्रमोद ब्रम्‍हभट्ट जी नें इस ब्‍लॉग में प्रकाशित आलेख ' चारण भाटों की परम्परा और छत्तीसगढ़ के बसदेवा ' की टिप्‍पणी के रूप में लिखा है। इस आलेख में वे विभिन्‍न भ्रांतियों को सप्रमाण एवं तथ्‍यात्‍मक रूप से दूर किया है। सुधी पाठकों के लिए प्रस्‍तुत है टिप्‍पणी के रूप में प्रमोद जी का यह आलेख - लोगों ने फिल्म बाजीराव मस्तानी और जी टीवी का प्रसिद्ध धारावाहिक झांसी की रानी जरूर देखा होगा जो भट्ट ब्राह्मण राजवंश की कहानियों पर आधारित है। फिल्म में बाजीराव पेशवा गर्व से डायलाग मारता है कि मैं जन्म से ब्राह्मण और कर्म से क्षत्रिय हूं। उसी तरह झांसी की रानी में मणिकर्णिका ( रानी के बचपन का नाम) को काशी में गंगा घाट पर पंड़ितों से शास्त्रार्थ करते दिखाया गया है। देखने पर ऐसा नहीं लगता कि यह कैसा राजवंश है जो क्षत्रियों की तरह राज करता है तलवार चलता है और खुद को ब्राह्मण भी कहता है। अचानक यह बात भी मन में उठती होगी कि क्या राजा होना ही गौरव के लिए काफी नहीं था, जो यह राजवंश याचक ब्राह्मणों से सम्मान भी छीनना चाहता है। पर ऊपर की आशंकाएं निराधार हैं वास्तव में यह राजव

क्या सफेद फूलो वाले कंटकारी (भटकटैया) के नीचे गडा खजाना होता है?

8 . हमारे विश्वास, आस्थाए और परम्पराए: कितने वैज्ञानिक, कितने अन्ध-विश्वास? - पंकज अवधिया प्रस्तावना यहाँ पढे इस सप्ताह का विषय क्या सफेद फूलो वाले कंटकारी (भटकटैया) के नीचे गडा खजाना होता है? बैगनी फूलो वाले कंटकारी या भटकटैया को हम सभी अपने घरो के आस-पास या बेकार जमीन मे उगते देखते है पर सफेद फूलो वाले भटकटैया को हम सबने कभी ही देखा हो। मै अपने छात्र जीवन से इस दुर्लभ वनस्पति के विषय मे तरह-तरह की बात सुनता आ रहा हूँ। बाद मे वनस्पतियो पर शोध आरम्भ करने पर मैने पहले इसके अस्तित्व की पुष्टि के लिये पारम्परिक चिकित्सको से चर्चा की। यह पता चला कि ऐसी वनस्पति है पर बहुत मुश्किल से मिलती है। तंत्र क्रियाओ से सम्बन्धित साहित्यो मे भी इसके विषय मे पढा। सभी जगह इसे बहुत महत्व का बताया गया है। सबसे रोचक बात यह लगी कि बहुत से लोग इसके नीचे खजाना गडे होने की बात पर यकीन करते है। आमतौर पर भटकटैया को खरपतवार का दर्जा दिया जाता है पर प्राचीन ग्रंथो मे इसके सभी भागो मे औषधीय गुणो का विस्तार से वर्णन मिलता है। आधुनिक विज्ञ

दे दे बुलउवा राधे को : छत्तीसगढ में फाग 1

दे दे बुलउवा राधे को : छत्‍तीसगढ में फाग संजीव तिवारी छत्तीसगढ में लोकगीतों की समृद्ध परंपरा लोक मानस के कंठ कठ में तरंगित है । यहां के लोकगीतों में फाग का विशेष महत्व है । भोजली, गौरा व जस गीत जैसे त्यौहारों पर गाये जाने लोक गीतों का अपना अपना महत्व है । समयानुसार यहां की वार्षिक दिनचर्या की झलक इन लोकगीतों में मुखरित होती है जिससे यहां की सामाजिक जीवन को परखा व समझा जा सकता है । वाचिक परंपरा के रूप में सदियों से यहां के किसान-मजदूर फागुन में फाग गीतों को गाते आ रहे हैं जिसमें प्यार है, चुहलबाजी है, शिक्षा है और समसामयिक जीवन का प्रतिबिम्ब भी । उत्साह और उमंग का प्रतीक नगाडा फाग का मुख्य वाद्य है इसके साथ मांदर, टिमकी व मंजीरे का ताल फाग को मादक बनाता है । ऋतुराज बसंत के आते ही छत्‍तीसगढ के गली गली में नगाडे की थाप के साथ राधा कृष्ण के प्रेम प्रसंग भरे गीत जन-जन के मुह से बरबस फूटने लगते हैं । बसंत पंचमी को गांव के बईगा द्वारा होलवार में कुकरी के अंडें को पूज कर कुंआरी बंबूल की लकडी में झंडा बांधकर गडाने से शुरू फाग गीत प्रथम पूज्य गणेश के आवाहन से साथ स्फुटित होता है - गनपति को म