सुब्रत बसु : रंगकर्म के एक अध्‍याय का अंत सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

सुब्रत बसु : रंगकर्म के एक अध्‍याय का अंत

छत्‍तीसगढ अंचल के प्रख्‍यात रंगकर्मी एवं कई सिरियलों के निर्माता व निर्देशक, हिन्‍दी फिल्‍मों के शीर्ष निर्देशक अनुराग बसु के पिता सुब्रत बसु का निधन छत्‍तीसगढ सहित पूरे देश के लिए दुख का समाचार है ।



रायपुर फाफाडीह व रायपुर से भिलाई स्‍पात संयंत्र की सेवा स्‍वैच्छिक अवकाश लेकर 1987 से निरंतर मुम्‍बई में निवास करते हुए सुब्रत दादा नें देश में एक से बढकर एक नाटकों का मंचन किया है । उनके स्‍वयं के रंगमंचीय ग्रुप ‘अभियान’ के द्वारा कई महत्‍वपूर्ण नाटकों का मंचन किया गया है । छत्‍तीसगढ के भिलाई स्‍पात संयंत्र की कहानी पर आधारित स्‍टील बैले में सुब्रत दा का काम यादगार रहा है । भिलाई की जनता को इसके 40 से भी अधिक शो देखने का सौभाग्‍य प्राप्‍त हुआ है वहीं इस बैले का मंचन देश के अलग अलग शहरों में सफलता पूर्वक किया गया है जहां इसे बेहद सराहा गया है ।





सुब्रत बसु एवं अनुराग बसु लंबे समय तक भिलाई में रहे है उनके परिवार के अन्‍य सदस्‍य भिलाई में ही रहते हैं इस कारण पारिवारिक कार्यक्रमों में सुब्रद दादा व अनुराग बसु अक्‍सर भिलाई आते जाते रहे हैं । उनके स्‍थानीय निवासी बडे भाई शम्‍भूनाथ बसु का घर तब मित्रों, प्रसंशकों व मीडिया वालों के जमवाडे से दिन भर भरा रहता है, आज उस घर में वीरानी स्‍पष्‍ट भलक रही थी ।




उनके पारारिवारिक मित्रों नें बताया कि दादा के निवास गोरेगांव में 22 अगस्‍त की रात ब्‍लड प्रेसर की दवा लेने से भूल करने की वजह से सुबह उन्‍हें दिल का दौरा पडा एवं नानावटी के डाक्‍टरों नें सिर में क्‍लाट बताते हुए तत्‍काल आपरेशन किया था जिसके बाद से ही वे कोमा में चले गये थे, इसी हालत में वे 26 सितम्‍बर को आखरी सांस लिए ।



सुब्रत दादा नें छत्‍तीसगढ के रंगमंचीय कलाकारों जिस तरह से मदद किया है एवं उन्‍हें प्रेरणा दिया है उसे अंचल नहीं भुला सकता । अब भिलाई सहित संपूर्ण छत्‍तीसगढ सुब्रत दादा के संपूर्ण गुण एवं अस्तित्‍व को उनके होनहार पुत्र अनुराग बसु में ही निहार रहे हैं, क्‍योंकि छत्‍तीसगढ के रंगकर्म को नई दिशा व दशा देने में सुब्रत दा के स्‍थान पर मर्डर, मैट्रो, गैंगेस्‍टर, साया, तुमसा नहीं देखा, कुछ तो है व मीत जैसे सफलतम फिल्‍म देने वाले अनुराग बसु ही उनके खेवईया हैं ।

टिप्पणियाँ

  1. लोककला के ऐसे साधक को हमारी ओर से भी श्रद्धांजलि.

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  2. यह एक एक बड़ी क्षति है!

    श्रद्दांजलि हमारी !!

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  3. हमारी श्रद्धांजलि.

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  4. सुब्रत दा को हमारी श्रद्धांजलि.

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  5. ऐसे महान कलाकार तो अमर होते हैं, फिर भी सुब्रत वसु जी को हमारी श्रद्धांजलि!

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आपकी टिप्पणियों का स्वागत है. (टिप्पणियों के प्रकाशित होने में कुछ समय लग सकता है.) -संजीव तिवारी, दुर्ग (छ.ग.)

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