दिल्‍ली सुख से सोई है नरम रजाई में : दिनकर सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

दिल्‍ली सुख से सोई है नरम रजाई में : दिनकर



मेरे पास उपलव्‍ध 1967 की एक कविता संग्रह से मैं दिनकर जी की यह कविता उपलव्‍ध करा रहा हूं, इसके पन्‍ने फटे हुए थे इसलिए कविता जो अंश अस्‍पष्‍ट थे उसे मैं यहां प्रस्‍तुत नहीं कर पाया । यह कविता तत्‍कालीन परिस्थिति में लिखा गया था, दिल्‍ली वालों से क्षमा सहित प्रस्‍तुत है :-

भारत का यह रेशमी नगर – रामधारी सिंह ‘दिनकर’

XXX XXX XXX

दिल्‍ली फूलों में बसी, ओस कणों से भींगी,
दिल्‍ली सुहाग है, सुषमा है, रंगीनी है ।
प्रेमिका कंठ में पडी मालती की माला,
दिल्‍ली सपनो की सेज मधुर रस-भीनी है ।


XXX XXX XXX

रेशम के कोमल तार, क्रांतियों के धागे,
हैं बंधे उन्‍हीं से अंग यहां आजादी के ।
दिल्‍ली वाले गा रहे बैठ निश्‍चेत मगन,
रेशमी महल में गीत खुरदुरी खादी के ।

XXX XXX XXX


भारत धूलों से भरा, आंसुओं से गीला,
भारत अब भी व्‍याकुल विपत्ति के घेरे में ।
दिल्‍ली में तो है खूब ज्‍योति की चहल पहल
पर, भटक रहा है सारा देश अंधेरे में ।


रेशमी कलम से भाग्‍य – लेख लिखने वालों,
तुम भी अभाव से कभी ग्रस्‍त हो रोये हो ?
बीमार किसी बच्‍चे की दवा जुटाने में,
तुम भी क्‍या घर भर पेट बांध कर सोये हो ?

असहाय किसानों की किस्‍मत को खेतों में,
क्‍या अनायास जल में बह जाते देखा है ?
क्‍या खायेंगें यह सोंच निराशा से पागल,
बेचारों को चीख रह जाते देखा है ?

देखा है ग्रामों की अनेक रेभाओं को,
जिनकी आभा पर धूल अभी तक छायी है ?
रेशमी देह पर जिन अभागिनों की अब तक,
रेशम क्‍या साडी सही नहीं चढ पायी है ।


पर, तुम नगरों के लाल, अमीरी के पुतले,
क्‍यों व्‍यथा भगय-हीन की मन में लाओगे ?
जलता हो सारा देश, किन्‍तु होकर अधीर,
तुम दौड दौड कर क्‍यों आग बुझाओगे ।

चिंता हो भी क्‍यों तुम्‍हें गांव के जलने से ?
दिल्‍ली में तो रोटिंयां नहीं कम होती है ।
धुलता न अश्रु-बूंदों से आंखें का काजल,
गालों पर की धूलियां नहीं नम होती है ।

जलते हैं तो ये गांव देश के जला करें,
आराम नई दिल्‍ली अपना कब छोडेगी ?

XXX XXX XXX

चल रहे ग्राम-कुंजों में पछिया के झकोर,
दिल्‍ली, लेकिन, ले रही लहर पुरवाई में ।
है विकल देश सारा अभाव के तापों से,
दिल्‍ली सुख से सोई है नरम रजाई में ।

XXX XXX XXX

टिप्पणियाँ

  1. अदम गोंडवी का एक शेर याद आ गया कि ...
    हर लुटेरा जिस तरफ को भागता है।
    वो सड़क दिल्ली शहर को जा रही है।।
    दिनकर जी की कविता उपलब्ध कराने के लिए धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत बढ़िया !!

    आभार जो आपने इसे उपलब्ध करवाया

    जवाब देंहटाएं
  3. dinkar kee sundartam kavitaon me ek! yah aise shuru hotee hai-

    ho gaya ek neta main bhee to bandhu suno
    main bharat ke reshamee nagar men rahtaa hoon
    jantaa jo chattanon kaa bojh sahaa kartee
    mai chandaniyon kaa bojh kisi bidh sahtaa hoon


    dinkar-premiyon se agrah hai ki poori kavitaa khoj nikaalen!yah kavita rashtr-kavi ne sansad-sadsya banaaye jaane ke awasar par likhee thee.

    जवाब देंहटाएं
  4. क्या लाजवाब और धारदार काव्यशिल्प है. कवि कितना चैतन्य रहता है और ज़माने को बाख़बर करता है इसकी बानगी है दिनकरजी की ये कविता.साधुवाद अनन्त.

    जवाब देंहटाएं
  5. बचपन से जो मेरे प्रिय कवि रहे हैं उनमें से एक दिनकर जी का की कविता पढ़ाने का धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत बहुत आभार दिनकर जी की यह कविता प्रस्तुत करने के लिये.

    जवाब देंहटाएं
  7. शुक्रिया इसे यहाँ पेश करने के लिए !

    जवाब देंहटाएं
  8. पूरी कविता यहां देखें

    मैत्री अतुल

    जवाब देंहटाएं
  9. धन्यवाद ,भाई जी ,
    पोस्ट के बहाने दिनकर जी की इतनी अच्छी पंक्तियाँ पढ़ने को मिलीं । आपको साधुवाद ।
    आशुतोष मिश्र

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

आपकी टिप्पणियों का स्वागत है. (टिप्पणियों के प्रकाशित होने में कुछ समय लग सकता है.) -संजीव तिवारी, दुर्ग (छ.ग.)

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

भट्ट ब्राह्मण कैसे

यह आलेख प्रमोद ब्रम्‍हभट्ट जी नें इस ब्‍लॉग में प्रकाशित आलेख ' चारण भाटों की परम्परा और छत्तीसगढ़ के बसदेवा ' की टिप्‍पणी के रूप में लिखा है। इस आलेख में वे विभिन्‍न भ्रांतियों को सप्रमाण एवं तथ्‍यात्‍मक रूप से दूर किया है। सुधी पाठकों के लिए प्रस्‍तुत है टिप्‍पणी के रूप में प्रमोद जी का यह आलेख - लोगों ने फिल्म बाजीराव मस्तानी और जी टीवी का प्रसिद्ध धारावाहिक झांसी की रानी जरूर देखा होगा जो भट्ट ब्राह्मण राजवंश की कहानियों पर आधारित है। फिल्म में बाजीराव पेशवा गर्व से डायलाग मारता है कि मैं जन्म से ब्राह्मण और कर्म से क्षत्रिय हूं। उसी तरह झांसी की रानी में मणिकर्णिका ( रानी के बचपन का नाम) को काशी में गंगा घाट पर पंड़ितों से शास्त्रार्थ करते दिखाया गया है। देखने पर ऐसा नहीं लगता कि यह कैसा राजवंश है जो क्षत्रियों की तरह राज करता है तलवार चलता है और खुद को ब्राह्मण भी कहता है। अचानक यह बात भी मन में उठती होगी कि क्या राजा होना ही गौरव के लिए काफी नहीं था, जो यह राजवंश याचक ब्राह्मणों से सम्मान भी छीनना चाहता है। पर ऊपर की आशंकाएं निराधार हैं वास्तव में यह राजव

क्या सफेद फूलो वाले कंटकारी (भटकटैया) के नीचे गडा खजाना होता है?

8 . हमारे विश्वास, आस्थाए और परम्पराए: कितने वैज्ञानिक, कितने अन्ध-विश्वास? - पंकज अवधिया प्रस्तावना यहाँ पढे इस सप्ताह का विषय क्या सफेद फूलो वाले कंटकारी (भटकटैया) के नीचे गडा खजाना होता है? बैगनी फूलो वाले कंटकारी या भटकटैया को हम सभी अपने घरो के आस-पास या बेकार जमीन मे उगते देखते है पर सफेद फूलो वाले भटकटैया को हम सबने कभी ही देखा हो। मै अपने छात्र जीवन से इस दुर्लभ वनस्पति के विषय मे तरह-तरह की बात सुनता आ रहा हूँ। बाद मे वनस्पतियो पर शोध आरम्भ करने पर मैने पहले इसके अस्तित्व की पुष्टि के लिये पारम्परिक चिकित्सको से चर्चा की। यह पता चला कि ऐसी वनस्पति है पर बहुत मुश्किल से मिलती है। तंत्र क्रियाओ से सम्बन्धित साहित्यो मे भी इसके विषय मे पढा। सभी जगह इसे बहुत महत्व का बताया गया है। सबसे रोचक बात यह लगी कि बहुत से लोग इसके नीचे खजाना गडे होने की बात पर यकीन करते है। आमतौर पर भटकटैया को खरपतवार का दर्जा दिया जाता है पर प्राचीन ग्रंथो मे इसके सभी भागो मे औषधीय गुणो का विस्तार से वर्णन मिलता है। आधुनिक विज्ञ

दे दे बुलउवा राधे को : छत्तीसगढ में फाग 1

दे दे बुलउवा राधे को : छत्‍तीसगढ में फाग संजीव तिवारी छत्तीसगढ में लोकगीतों की समृद्ध परंपरा लोक मानस के कंठ कठ में तरंगित है । यहां के लोकगीतों में फाग का विशेष महत्व है । भोजली, गौरा व जस गीत जैसे त्यौहारों पर गाये जाने लोक गीतों का अपना अपना महत्व है । समयानुसार यहां की वार्षिक दिनचर्या की झलक इन लोकगीतों में मुखरित होती है जिससे यहां की सामाजिक जीवन को परखा व समझा जा सकता है । वाचिक परंपरा के रूप में सदियों से यहां के किसान-मजदूर फागुन में फाग गीतों को गाते आ रहे हैं जिसमें प्यार है, चुहलबाजी है, शिक्षा है और समसामयिक जीवन का प्रतिबिम्ब भी । उत्साह और उमंग का प्रतीक नगाडा फाग का मुख्य वाद्य है इसके साथ मांदर, टिमकी व मंजीरे का ताल फाग को मादक बनाता है । ऋतुराज बसंत के आते ही छत्‍तीसगढ के गली गली में नगाडे की थाप के साथ राधा कृष्ण के प्रेम प्रसंग भरे गीत जन-जन के मुह से बरबस फूटने लगते हैं । बसंत पंचमी को गांव के बईगा द्वारा होलवार में कुकरी के अंडें को पूज कर कुंआरी बंबूल की लकडी में झंडा बांधकर गडाने से शुरू फाग गीत प्रथम पूज्य गणेश के आवाहन से साथ स्फुटित होता है - गनपति को म