विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों
छत्तीसगढ अंचल के प्रख्यात रंगकर्मी एवं कई सिरियलों के निर्माता व निर्देशक, हिन्दी फिल्मों के शीर्ष निर्देशक अनुराग बसु के पिता सुब्रत बसु का निधन छत्तीसगढ सहित पूरे देश के लिए दुख का समाचार है । रायपुर फाफाडीह व रायपुर से भिलाई स्पात संयंत्र की सेवा स्वैच्छिक अवकाश लेकर 1987 से निरंतर मुम्बई में निवास करते हुए सुब्रत दादा नें देश में एक से बढकर एक नाटकों का मंचन किया है । उनके स्वयं के रंगमंचीय ग्रुप ‘अभियान’ के द्वारा कई महत्वपूर्ण नाटकों का मंचन किया गया है । छत्तीसगढ के भिलाई स्पात संयंत्र की कहानी पर आधारित स्टील बैले में सुब्रत दा का काम यादगार रहा है । भिलाई की जनता को इसके 40 से भी अधिक शो देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है वहीं इस बैले का मंचन देश के अलग अलग शहरों में सफलता पूर्वक किया गया है जहां इसे बेहद सराहा गया है । सुब्रत बसु एवं अनुराग बसु लंबे समय तक भिलाई में रहे है उनके परिवार के अन्य सदस्य भिलाई में ही रहते हैं इस कारण पारिवारिक कार्यक्रमों में सुब्रद दादा व अनुराग बसु अक्सर भिलाई आते जाते रहे हैं । उनके स्थानीय निवासी बडे भाई शम्भूनाथ बसु का घर तब म