विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों
फ्यूचर ग्रुप के पेंटालून रिटेल इंडिया लिमिटेड नें रायपुर में हाईपर मार्केट स्टोर के अपने सबसे बडे रिटेल चेन बिग बाजार का आज शुभारंभ किया । 51000 वर्ग फिट में फैले सिटी माल 36 में स्थित बिग बाजार रायपुर का पहला सबसे बडा हाईपर मार्केट है ।
वैसे रायपुर में मझोले स्तर की कम्पनियों के रिटेल बाजार भी विगत कई वर्षों से संचालित थे पर पेंटालून के आने से अब छत्तीसगढियों को भी ठेठरी बासी खाकर, अपना पागी पउटका, खुमरी आदि लेने के लिए महानगर के स्तर का बाजार प्राप्त हो सकेगा ।
वैसे रायपुर में मझोले स्तर की कम्पनियों के रिटेल बाजार भी विगत कई वर्षों से संचालित थे पर पेंटालून के आने से अब छत्तीसगढियों को भी ठेठरी बासी खाकर, अपना पागी पउटका, खुमरी आदि लेने के लिए महानगर के स्तर का बाजार प्राप्त हो सकेगा ।
ओह्ह आप क्या समझते है क्या ये छत्तिसगढ के लिये अच्छा होगा? नही ये ठीक है यहाँ पर हर सामान एक ही जगह मिल सकेगा…मगर ये सोचिये इनके आने से कितने छोटे-मोटे व्यापारी बेरोजगार हो जायेंगे…और एक जरूरी बात जो हम लोग जानते है आपको इनमे वो चीज कभी नही मिलेगी जो आम मार्केट में मिल सकेगी…जैसे की इनकी स्किम चलती है एक के साथ एक फ़्री…और दूसरी बात इन्हे चीज़ मार्केट से कम दामों मे भी चाहिये और जितना बडा काम उतने खर्चे…अब खर्चे होंगे तो तेल तो इन्ही तिलो में से निकलेगा ना भाई…ना तो ये पेंटालून नुकसान उठायेंगे ना ही रीटेलर्…नुकसान होगा गरीब जनता का या हमारे जैसे होल-सेल विक्रेताओं का…और हम भी क्यों नुकसान उठायेंगे भई आज कम्पीटिशन का जमाना है घोडा घास से यारी करेगा तो खायेगा क्या…
जवाब देंहटाएंअब आप ही सोचिये क्या ठीक है छोटी दुकानो से सही माल खरीदना या बासी,बेकार मिलावटी माल बडे-बडे बिग बाजारों से लेना…
मेरे ख्याल से सब मिल कर इसका विरोध करें तो बहुत से लोग बेरोजगर होने से बच जायेंगे…
संजीव जी अभी तो इसका शुभ-आरम्भ हुआ है समझिये आस-पास की दुकानो का दुखःआरम्भ शुभ हो गया है…
बधाई
जवाब देंहटाएंशानू की बात पर कान दीजिए और बड़े बाजारों के मायाजाल में मत फंसिये. आपकी जानकारी और शानू की शानदार टिप्पड़ी के लिए धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंह्म्म, कल अखबार मे इसकी शुरुआत के बाद से विचार आए जा रहे है मन में देखते हैं आगे होता क्या है!
जवाब देंहटाएंचलो, यह अच्छा हुआ. घर बैठे ही प्रमोशन हो गया. महानगरवासी हो गये. वरना तो दिल्ली बम्बई जाये बिना कैसे बन पाते. :) बधाई.
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