विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों
कल भारी बारिस के कारण रायपुर में कोई फ्लाईट नही आ पाई जमीन से आसमान तक पानी ही पानी, हमारे संस्था प्रमुख को आज शाम को दुबई जाना था । हडबडाने लगे क्या करें, नागपुर फोन किये पता चला वहां भी देर सबेर की नौबत है समय चूके जा रहा था कल भी यही हाल रहा तो ... चक्रधर की चकल्लस छोडो। हमने अपनी अभिव्यक्ति प्रस्तुत की बोईंग तो अइबेच नई करी अब लालू भईया के बडे बोईंग में जाये बर पडी मुम्बई से कल उडना है आपको कल का इंतजार करते यहीं बैठे रहेगें तो नही न जा पायेंगें दुबई ।
सो हम दौडे सांसद महोदय से रेलगाड़ी के बडका साहब को फोन करवा के टेसन की ओर टिकस का बंदोबस्त करने । टिकट का इंतजाम करने के बाद हमारे पास कुछ समय था हम इंतजार करने लगे बॉस का । महाशक्ति की भांति चारो तरफ नजर दौडाये कहीं कोई सुन्दरी मिल जाय और आंख तर कर ली जाय या कोई जोगलिखी हो कोई पहचान का मिल जाये । इस बुढापे भरी जवानी में अब आंख और अंतर्मन का ही तो सहारा रह गया है । देखा सामने एक लगभग 40-45 वर्ष की जवान कन्या अपने साजो सामान के साथ खडी थी साथ में उसका सामान था अल्प विराम हूर के साथ लंगूर की शक्ल में उसका पति गले में पट्टा बंधे कूकूर की भांति खडा था आंखों में मोटी ग्लास का चश्मा लगाये इधर उधर कुछ सूंघता हुआ शायद कुली ढूंढ रहा था । हमने अपनी नजर दूसरी ओर कर ली लगा डर कि हमरी सूरत देख के हमें ही ऐ कुली कह कर ना बुला ले ।
उसे आश्वस्थ होकर एक जगह खडे देखा तो सोंचे ये जोगलिखी हमारे लिये ही है पहले चोर निगाहों से सुन्दरी को फिर देखा सुन्दरी नें 40-45 वर्ष की ढलती उम्र को पीले टी शर्ट एवं नीले फुल टाईट जीन्स से जकड रखा था । गठे ठसे शरीर की कहानी स्पष्ट थी कि उसकी कोई सृजन-गाथा नहीं है । चेहरे पर विशेष रूप से बंजर भूमि सुधार के सारे परयोग अपनाये गये थे और धान गेहूं बोना छोडकर जैसे आजकल फूलों की खेती की जा रही है वैसे ही अंग्रेजी खादों से गुलाबों की खेती की गयी थी ।
मन बिना चोर नजर से उस ड्रीम सुन्दरी को देखना चाहा नजरें सीधे उस पर । एक क्षण में उसने अपने राजीव नयन में भांप लिया कि हम उसकी सुन्दरता के मुरीद हैं । उसने अनमने से अंजान भाव प्रदर्शित करते हुए पर्स से आईना निकाला, अपनी सूरत देखने लगी, मानो हमें अनुमति दे रही हो कि देखो । उसकी मानसिक हलचल को मैं स्पष्ट पढ रहा था । सौंदर्य का प्रदर्शन होना ही चाहिए हमारा मन उडन तश्तरी …. बन उसके आस पास मंडराने लगा । हमारे दादा जी कहा करते थे जिसमें से कुछ ज्ञात कुछ अज्ञात हैं पर एक याद है - आप रूप भोजन, पर रूप श्रृंगार । जो रूप उसने धरा है वो दुनिया को दिखाने के लिए ही था, सौभाग्य से वहां हम एकोऽहम् ही थे और कोई नहीं था, दो चार बूढे निठल्ला चिन्तन कर रहे थे, सो फुरसतिया देखने लगे, प्रेम अनुभूतियाँ जाग उठी । कस्बा, बजार, मोहल्ला में यदि वो दिख जाती तो जवानों का कांव कांव हो जाता पर यहां कोई भी बजार पर अवैध अतिक्रमण नहीं कर सकता था ।
हमने अपनी आंखें व्यवस्थित की देखने लगे जी भर के, मन पखेरू फ़िर उड़ चला छायावादी कवि की भांति क्योंकि हमें हिन्द-युग्म में सौंदर्य कविता जो भेजनी है क्या करूँ मुझे लिखना नहीं आता… इसीलिए सौंदर्य बोध कर रहा था रचनाकार को तूलिका पकडा कर ।
अचानक उसके पति को लगा कि हम उसकी पत्नी को ताक रहे हैं । बेचैन सी निगाहों से हमें अगिनखोर सा देखा । नजरें बिनती कर रही थी, भाई साहब प्लीज ऐसा मत करो उसके अंर्तध्वनि को सुनकर हम भी अपने लिंकित मन व निगाह को सहजता से दूसरी तरफ कर लिये ऐसा प्रदर्शित करते हुए कि हम कोई पंगेबाज नही हैं कुली खोज रहे हैं और पास ही रखे दूसरे की लगेज के पास जा कर खडे हो गये ।
देखा एक कुआरा सजीला नौजवान पास में ताजा समाचार पत्र लेकर आ गया आवारा बंजारा की भांति कहने लगा हम भी हैं लाइन में हम सौंदर्य के पुजारी हैं । हमने बातों बातों में उसे समझाते हुए कहा बेटा मैं एक अकेला इस शहर मे.. साहित्यकार हूं हिन्दी व्लाग वाला चिट्ठाकार हूं, मसिजीवी हूं पहले मैं आया हूं मुझे सौंदर्य की अनुभूति है । पास ही एक राम भक्त यानी हनुमान रेलवे पुलिस खडा था हम लोगों का वाद-संवाद सुन रहा था । जोर से डंडा पटका और बोला -
तुम साले अधकचरे लोग समय नष्ट करने का एक भ्रस्ट साधन हो अभी हमारे छत्तीसगढ में हिन्दी ब्लाग लिखने वाले भाई जयप्रकाश मानस ही सृजन शिल्पी हैं तीसरा कोई नहीं है उन्ही को मालूम है साहित्य और सौंदर्य, चलो भागो यहां से बेफालतू में भीड बढा रहे हो तुम लोगों का मन निर्मल आनंद नहीं है । हमने पिद्दी सिपाही से बतंगड़ करना और ज्ञानदत्त पाण्डेय जी का धौंस देना उचित नही समझा, दिल में आह भरते नौ दो ग्यारह हो गये मन में ढंग से ना देख पाने की वेदना व्याप्त थी ।
सो हम दौडे सांसद महोदय से रेलगाड़ी के बडका साहब को फोन करवा के टेसन की ओर टिकस का बंदोबस्त करने । टिकट का इंतजाम करने के बाद हमारे पास कुछ समय था हम इंतजार करने लगे बॉस का । महाशक्ति की भांति चारो तरफ नजर दौडाये कहीं कोई सुन्दरी मिल जाय और आंख तर कर ली जाय या कोई जोगलिखी हो कोई पहचान का मिल जाये । इस बुढापे भरी जवानी में अब आंख और अंतर्मन का ही तो सहारा रह गया है । देखा सामने एक लगभग 40-45 वर्ष की जवान कन्या अपने साजो सामान के साथ खडी थी साथ में उसका सामान था अल्प विराम हूर के साथ लंगूर की शक्ल में उसका पति गले में पट्टा बंधे कूकूर की भांति खडा था आंखों में मोटी ग्लास का चश्मा लगाये इधर उधर कुछ सूंघता हुआ शायद कुली ढूंढ रहा था । हमने अपनी नजर दूसरी ओर कर ली लगा डर कि हमरी सूरत देख के हमें ही ऐ कुली कह कर ना बुला ले ।
उसे आश्वस्थ होकर एक जगह खडे देखा तो सोंचे ये जोगलिखी हमारे लिये ही है पहले चोर निगाहों से सुन्दरी को फिर देखा सुन्दरी नें 40-45 वर्ष की ढलती उम्र को पीले टी शर्ट एवं नीले फुल टाईट जीन्स से जकड रखा था । गठे ठसे शरीर की कहानी स्पष्ट थी कि उसकी कोई सृजन-गाथा नहीं है । चेहरे पर विशेष रूप से बंजर भूमि सुधार के सारे परयोग अपनाये गये थे और धान गेहूं बोना छोडकर जैसे आजकल फूलों की खेती की जा रही है वैसे ही अंग्रेजी खादों से गुलाबों की खेती की गयी थी ।
मन बिना चोर नजर से उस ड्रीम सुन्दरी को देखना चाहा नजरें सीधे उस पर । एक क्षण में उसने अपने राजीव नयन में भांप लिया कि हम उसकी सुन्दरता के मुरीद हैं । उसने अनमने से अंजान भाव प्रदर्शित करते हुए पर्स से आईना निकाला, अपनी सूरत देखने लगी, मानो हमें अनुमति दे रही हो कि देखो । उसकी मानसिक हलचल को मैं स्पष्ट पढ रहा था । सौंदर्य का प्रदर्शन होना ही चाहिए हमारा मन उडन तश्तरी …. बन उसके आस पास मंडराने लगा । हमारे दादा जी कहा करते थे जिसमें से कुछ ज्ञात कुछ अज्ञात हैं पर एक याद है - आप रूप भोजन, पर रूप श्रृंगार । जो रूप उसने धरा है वो दुनिया को दिखाने के लिए ही था, सौभाग्य से वहां हम एकोऽहम् ही थे और कोई नहीं था, दो चार बूढे निठल्ला चिन्तन कर रहे थे, सो फुरसतिया देखने लगे, प्रेम अनुभूतियाँ जाग उठी । कस्बा, बजार, मोहल्ला में यदि वो दिख जाती तो जवानों का कांव कांव हो जाता पर यहां कोई भी बजार पर अवैध अतिक्रमण नहीं कर सकता था ।
हमने अपनी आंखें व्यवस्थित की देखने लगे जी भर के, मन पखेरू फ़िर उड़ चला छायावादी कवि की भांति क्योंकि हमें हिन्द-युग्म में सौंदर्य कविता जो भेजनी है क्या करूँ मुझे लिखना नहीं आता… इसीलिए सौंदर्य बोध कर रहा था रचनाकार को तूलिका पकडा कर ।
अचानक उसके पति को लगा कि हम उसकी पत्नी को ताक रहे हैं । बेचैन सी निगाहों से हमें अगिनखोर सा देखा । नजरें बिनती कर रही थी, भाई साहब प्लीज ऐसा मत करो उसके अंर्तध्वनि को सुनकर हम भी अपने लिंकित मन व निगाह को सहजता से दूसरी तरफ कर लिये ऐसा प्रदर्शित करते हुए कि हम कोई पंगेबाज नही हैं कुली खोज रहे हैं और पास ही रखे दूसरे की लगेज के पास जा कर खडे हो गये ।
देखा एक कुआरा सजीला नौजवान पास में ताजा समाचार पत्र लेकर आ गया आवारा बंजारा की भांति कहने लगा हम भी हैं लाइन में हम सौंदर्य के पुजारी हैं । हमने बातों बातों में उसे समझाते हुए कहा बेटा मैं एक अकेला इस शहर मे.. साहित्यकार हूं हिन्दी व्लाग वाला चिट्ठाकार हूं, मसिजीवी हूं पहले मैं आया हूं मुझे सौंदर्य की अनुभूति है । पास ही एक राम भक्त यानी हनुमान रेलवे पुलिस खडा था हम लोगों का वाद-संवाद सुन रहा था । जोर से डंडा पटका और बोला -
तुम साले अधकचरे लोग समय नष्ट करने का एक भ्रस्ट साधन हो अभी हमारे छत्तीसगढ में हिन्दी ब्लाग लिखने वाले भाई जयप्रकाश मानस ही सृजन शिल्पी हैं तीसरा कोई नहीं है उन्ही को मालूम है साहित्य और सौंदर्य, चलो भागो यहां से बेफालतू में भीड बढा रहे हो तुम लोगों का मन निर्मल आनंद नहीं है । हमने पिद्दी सिपाही से बतंगड़ करना और ज्ञानदत्त पाण्डेय जी का धौंस देना उचित नही समझा, दिल में आह भरते नौ दो ग्यारह हो गये मन में ढंग से ना देख पाने की वेदना व्याप्त थी ।
बढ़िया है। जिस महिला को देखते हुये ये सब लिखने के लिये सोचा गया, काश वह भी ब्लाग लिखती और सच बयान करती। :)
जवाब देंहटाएंकाश हिन्दी में नयन-कर्णाभिरामी नाम वाले और चिठ्ठे होते तो आपकी यह पोस्ट और लम्बी होती और उस 45 वर्षीया बालिका का पूरा पता चल पाता!
जवाब देंहटाएंसंजीव जी,
जवाब देंहटाएंइसी बहाने हमें सभी चिट्ठों की रूपरेखा मिल गई। मज़ा भी आया पढ़कर। इतनी सुंदर पैरोडी के लिए साधुवाद।
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत मेहनत की है, आपमें एक चर्चाकार की गुंजाइश दिखती है हमें।
जवाब देंहटाएंवाह क्या खूब लिंकित किया है आपने सब चिट्ठों को ! लगता है आपने मसिजीवी के आज के लेख से प्रेरणा ले डाली है ;)
जवाब देंहटाएंमसिजीवी जी आज ही आपने बकबक से दूर रहने की सलाह दी है और हमने फ़िर बकबक कर डाली, छिमा सहित
जवाब देंहटाएंआदरणीय आचार्य समीर लाल जी जो यह तुकबंदी समर्पित है क्योकि आज भारत में चारटेड एकाउंटेंट दिवस है । हमने इस सीढी को चढने का बहुतै परयास किया नहीं चढ पाये, अब आज के कार्यक्रमों मे सिरकत करने चारटेड एकाउंटेंट भाइयो के साथ जा रहे है, कल मिलेंगे । भाइ समीर लाल जी एवं और जो चारटेड एकाउंटेंट भाई है उनको बधाई सहित - संजीव तिवारी
जवाब देंहटाएंह्म्म, आपके बाकी लिखै के बारे में तो हम बाद मा कछु कहेंगे पर पहले ई बताया जाए कि आप अभी भी ऐसन 40-45साल की कन्याओं को ताड़ते हो( यार कुछ काम तो हमारे लिये छोड़ो ना) ह्म्म, तौ इस बात की जानकारी बुआ/भौजी को पहुंचाना ही पड़ेगा( तैयार हो जाओ, अब खैर नही आपकी)
जवाब देंहटाएंअब आते है हम आपके बाकी लिखे पर, तो भैय्या दिल खुश कर दिए हो, मस्त लिंकित किए हो सबको!!
चिट्ठाचर्चा वाले बंधुगण खुशिया रहे है कि चलो एक और चर्चाकार मिल सकता है!!
अगरचे वो जवान महिला २५/२६ की होती तो पता नही आप क्या करते .४५ पर ही रचना इतनी अच्छी बनी है अब उधर भी ट्राई कर ही लॊ :)
जवाब देंहटाएंवाह क्या चिट्ठा-चर्चा की है आपने...आप तो इस काम मे भी निपुण है...वो महिला कौन है हमे भी बताई दे...:)
जवाब देंहटाएंबहुत गजब के लिंक बैठाले हो भाई. और चार्टड एकाउन्टेन्ट दिवस पर बधाई और पोस्ट समर्पण के लिये बहुत शुक्रिया.
जवाब देंहटाएं-जहाँ बैठ के यह पैरोडी लिखी गई है और जिसे देखते हुये-न तो उस पुण्य स्थली की तस्वीर लगाये हो और न ही उस पुण्य आत्मा की...जरा देखो, फोन में खेंच कर तो नहीं धरे हो. :)
---बकिया तो बेहतरीन रहा यह प्रयास-जारी रहो, शुभकामनायें.
दौ बार तो आ गये है अब हजार बार आपही के चिट्ठे पर ही आयेंगे तो दुसरे लोगन को क्या टिप्पीयांगे…
जवाब देंहटाएं:)… हजार बार देखो
सही जा रहे हो भैय्या, जब हमऊ ब्लोग शुरू किये थे तब ऐसी ही पोस्ट लिख निठल्ला चिंतन की उत्पति के बारे में बताये रहे और तुम सुंदरी के बारे में बताये रहे हो। बहुत अच्छे ;)
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