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जून, 2007 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

धुरविरोधी कौन है ? बनाम वो दो चिट्ठे कौन हैं ?

एक तरफ हिन्‍दी चिट्ठाजगत हैरान परेशान है कि ये धुरविरोधी कौन है सब एक दूसरे को पूछ रहे हैं कि ये धुरविरोधी कौन है ? पर किसी को नही मालूम कि सोनार महोदय और धुरविरोधी महोदय कौन है ? ना ही धुरविरोधी महोदय को किसी प्रकार के चिट्ठा सम्‍मान या नाम की लालसा है इसीलिये तो सामने नही आ रहे हैं, तो दूसरी तरफ छत्‍तीसगढ की राजधानी में पिछले दो तीन सप्‍ताह से गिने चुने चिट्ठों के बावजूद अंतरजाल में हिन्‍दी की प्रभुता पर राजनीति और उस पर चर्चा आम है । पिछले सप्‍ताह ही रायपुर से, जो हमें हिन्‍दी चिटठाकार “समझते” हैं, ऐसे हमारे दो तीन मीडिया कर्मी भाई लोगों का फोन आया । बतलाये कि रायपुर के मीडिया जगत और सरकारी तंत्र में यह बात फैलाई गयी है कि छत्‍तीसगढ में हिन्‍दी के दो चिट्ठे “ही” सक्रिय है एवं उन्‍ही दो चिट्ठों को आठवें विश्‍व हिन्‍दी सम्‍मेलन के वेब साईट में स्‍थान दिया गया है । पहले तो सुनकर आश्‍चर्य हुआ फिर खुशफहमी में बाहें खिलने लगी कि चलो हमारे व संजीत भाई के चिट्ठे के बारे में ही कहा जा रहा है । धन्‍य हो अफवाह फैलाने वाले महोदय का जो बिना पैसा दिये, बिना उसके रचनाओं को वेब में प्रकाशित किये भी

छत्‍तीसगढ की करूणामयी मां मिनी माता

लगभग 20 वर्ष छत्‍तीसगढ के लब्‍धप्रतिष्ठित समाचार पत्र देशबंधु के फीचर, साहित्‍य पेज व बच्‍चों के पेज के मुख्‍य पद पर काम करते हुए परदेशीराम वर्मा नें छत्‍तीसगढ के साहित्‍य को निखारा है एवं उन्‍होंने छत्‍तीसगढ के साहित्‍यकारों को स्‍थापित करने एवं प्‍लेटफार्म प्रदान करने में जो अमूल्‍य योगदान दिया है उसे छत्‍तीसगढ नही भुला सकता क्‍योंकि दशकों तक देशबंधु समाचार पत्र छत्‍तीसगढ का मुख्‍य समाचार पत्र रहा है । प्रस्‍तुत है जिला साक्षरता समिति दुर्ग एवं नेशनल बुक ट्रस्‍ट, इंडिया के तत्‍वाधन में आयोजित संयुक्‍त कार्यशिविर में तैयार की गयी नवसाक्षर साहित्‍यमाला क्रम की पुस्‍तक मिनी माता के मुख्‍य अंश – मिनी माता – परदेशीराम वर्मा छत्‍तीसगढ में अकाल पडा था, सौ बरस पहले । लोग घर से बेघर हो गए । गांव के गांव खाली हो गए । पशु मर गये । नदी सूख गई । तालाब में पानी नहीं रहा । कुएं का जल भी सूख गया । सब गांवों की तरह सगोना गांव पर भी संकट आया । अकाल का संकट । सगोना गांव रायपुर जिले का बडा गांव था । भरा-पूरा गांव । इस गांव के लोग भी अन्‍न-पानी को तरसते । हाहाकार मच गया । मजदूर गांव छोड कर भाग गए । फिर छ

टाटा स्‍काई बनाम बीएसएनएल ब्राड बैंड

अब बहुतै मुश्किल होत जात है ब्‍लाग में ठहरे रहना रोजै तिरिया के गारी खावै ले बचे खातिर कउनो उपाय करें समझे म नही आत है । अरे भाई लोगन हरे हप्‍ता कउनो नगरी चौपाल म ब्‍लाग मीट कर लिया करो । कम से कम हप्‍ता पंद्रही तो तो‍हांर मीट मटन के फोटू को देखा देखा के अपनी ब्‍लागरी को सुख्‍खाये तरिया कस मछरी जीयाये के कउनो बहाना मिल जईहैं । तोहार मीट के फोटू हमार मेहरारू को गजब नीक लागता है काबर कि ओमा छीट वाला, कढाई बाला पता नही का का परकार के साडी पहिरे, महिला ब्‍लागर को देख के हमार छोटकू के अम्‍मा कहत हैं जोडी ए एतवार को तनि दुई हजार रूपईया राशन सब्‍जी के लिए ज्‍यादा चाहिए था क्‍योंकि आपके गांव से इस माह सगा लोग ज्‍यादा आ गये थे । वो जानती है मेरे गांव से आने वालों के सभी खर्चे के लिए मेरा बागिन उलदा जाता है पर मुझे जानते हुए भी नादान बनना पडता है । बागिन का उलदाना सगा के कारण नही हैं मीट के फोटू में छपे साडी के कारण हैं । कभी कभार हंसी के पलों में जो विवाह के बाद शायद ही कभी आता हो और हर शादी शुदा उस क्षण के लिए अपना जीवन शिवोहम कह कर जीता है, पत्‍नी बतलाती है कि वो एकता कपूर के सीरियल भी 95 प्र

छत्तीसगढियों को भी मिले महत्व

नजरिया : परदेशीराम वर्मा छत्तीसगढ में आए दिन कुछ रोचक समाचार छपते रहते हैं अभी पिछले दिनों रेल विभाग के एक सेवानिवृत महाप्रबंधक से संबंधित समाचार छपा । कृपालु महाप्रबंधक ने जाते जाते 20 लोंगों को रेलवे में नियुक्त कर दिया इसमें किसी छत्तीसगढी का नाम नहीं था । नौकरी वैसे भी नहीं के बराबर हैं । जो हैं उनमें छत्तीसगढी व्यकित के लिए जरा भी गुंजाइश नहीं है । ऐसे में ज्ञानी जब जब छत्तीसगढ को राष्ट़ीय एकता, उदारता का पाठ पढाते हैं तो बेशाख्ता भगवती सेन याद आते है.......... दिन ला तुम रात कहो आमा ला अमली, डोरी ला सांप कहो, रापा ला टंगली । छत्तीसगढ बेचारा और बपुरा है । जो भी चाहता है उसे मेल मुहब्बत और सबके साथ मिल जुलकर रहने का पाठ पढा जाता है । और चपत भी लगा जाता है । आजकल गवेषणाएं छप रही है कि कौन छत्तीसगढ में कब आया । मैं हमेशा निवेदन करता रहा हूं कि यह बिलकुल बेमानी है कि कौन कब आया । असल बात यह है कि जिन छत्‍तीसगढ विरोधियों की जडे बाहर हैं ऐसे विष वृक्षों की जडों में छत्तीसगढी पानी डालना बंद करिए वरना विषबेल फैलेगी और छत्तीसगढी सूख जायेगा । हरे भरे पृक्ष में अमरबेल का एक छोटा सा टुकडा अगर

अंतर्राष्‍ट्रीय ख्‍यातिप्राप्‍त पंथी नर्तक देवदास बंजारे

“ छत्‍तीसगढ की लोक कला अत्‍यंत समृद्ध है । वह अपनी मौलिकता और विविधता के लिए प्रसिद्ध है । पंथी नृत्‍य उनमें से एक है । पंथी नृत्‍य के शीर्षस्‍थ कलाकार का नाम है देवदास । उसके थिरकते पांवों नें पृथ्‍वी को नाप लिया है । वह कलाकार है जिसने छत्‍तीसगढ की माटी को चंदन बना दिया है । देवदास नें तभी संतोष की सांस ली, जब उसने उस चंदन की सुगंध से सारे वायुमण्‍डल को सुगंधित कर दिया । “ “ कला अभिव्‍यक्ति का सशक्‍त माघ्‍यम है । इस माघ्‍यम का उपयोग करने के लिए बडी तपस्‍या की आवश्‍यकता है । देवदास नें बडी तपस्‍या की है, साधना की है । आज यदि वे पंथी के शीर्ष स्‍थान प्रतिष्ठित और सम्‍मानित हैं, तो अपनी कठोर तपस्‍या और साधना के कारण । “ “ ऐसे ही सपूतो को जन्‍म दे कर छत्‍तीसगढ महतारी अपनी कोख को धन्‍य मानती है । भाषा, साहित्‍य, इतिहास और कला ही किसी क्षेत्र को उसकी अपनी पहचान देते हैं । ” साहित्‍कार हरि ठाकुर जब देवदास बंजारे के संबंध में ऐसा कहते हैं तब बरबस हमारा घ्‍यान लोक कला के उस चितेरे पर आकर ठहर जाता है जिसने अपने नृत्‍य से पूरी दुनिया को नाप दिया है । कौन है यह देवदास जो छत्‍तीसगढ के लोक नृत्‍

नउवा : संस्मरण

रमउ हमारे पिताजी से चार पांच साल बडे थे हमारे दादा जी नें इसे पास के गांव से लाकर हमारे गांव में बसाया था दस एकड जमीन और जुन्‍ना बाडा को देकर । रमउ हमारे परिवार का हजामत बनाया करता था और उसकी पत्‍नी छट्ठी छेवारी उठाती थी । रमउ स्‍वभाव से बहुत बातूनी था यही मेरे सभी चाचा, बुआ सहित पिताजी के लिए लडकी देखने गया था और इसी नें शादी लगाने की समस्‍त दायित्‍वों को डाट काम कंपनियों के सी ई ओ की भंति भली भंति निबटाया था । रमउ का बेटा जो हमारे साथ ही पढा है, कोरबा कालेज में समाजशास्‍त्र का प्रोफेसर है पिछले दिनों पेपर में पढा था कि वह पी एच डी भी कर लिया है । रमउ की सभी आदतें उसे विरासत में मिली हुई है । हमारे बचपन का दोस्‍त है दोस्‍त क्‍या हमारे एहसानों के प्रति कृतज्ञता प्रदर्शित करता हुआ एक आदर्श नमक हलाल । मैट्रिक के बाद से हम रायपुर भिलाई आ गये वह पता नहीं कहां कहां फूफा मोसा के यहां पढता रहा फिर प्रोफेसर भी बन गया। हम विगत दिनों कोरबा प्रवास में थे उनसे मिलने की इच्‍छा हुई । मोबाईल से फोन किये तो बोला “बालको चौक में संतोष केंस कर्तनालय है वहीं संझा कन आ जाना वहां से घर चलेंगे ।“ चौंक पहुच

आशंका : डा. परदेशी राम वर्मा की कहानी

नेवरिया ठेठवार के आने के बाद पंचायत प्रारंभ होती है । गांव में ब्राहमण, तेली, कुर्मी सब जाति के लोग हैं । मगर सबसे ज्‍यादा छानही ठेठवारों की है । भुरी भंइस के दूध रे भईया, बडे कुआं के पानी, नफे नफा कमाबो भईया, नइये निच्‍चट हानी । अब काछन निकलते समय नेवरिया के लडके उन्‍माद में आकर इस तरह के आधुनिक दोहे भी सुनाते हैं । हर साल दिवाली में सबसे पहले नेवरिया के घर से काछन निकलता है । नेवरिया ठेठवार समाज का राजा है । 200 बकरी और 25 एकड खेत के अतिरिक्‍त 27 भैंसे भी नेवरिया के थान में बंधी दिन भर पगुराती है । हां, रात में जरूर भैंसों की छांद छटक जाती है । साह चराने से नेवरिया को टोकने की जिसने भी कोशिश की है, उसको गांव छोडकर भागते भी नहीं बना है । साह चराना तो नेवरिया हक हो गया है । भैंसे जिधर मुंह उठाकर चल देती हैं, उधर के खेतों को काटने की समस्‍या से मुक्‍त कर देती हैं । भैंसों के मालिक नेवरिया की आसपास के गांवों में धाक है । ऐंठ मुरारी पागा बांधे, हांथ में तेंदूसार की लाठी लिए, बजनी पनही की चर्र चर्र आवाज पर झूमते नेवरिया को देखकर बच्‍चे सहम जाते हैं । आज भी नेवरिया का अगोरा है । सब आ गये है

आदिवासी क्रातिवीर कंगला मांझी

कंगला मांझी छत्‍तीसगढ के आदिवासी नेतृत्‍व के उदीयमान नक्षत्र थे । उनका नाम छत्‍तीसगढ के सम्‍माननीय स्‍वतंत्रता संग्राम सेनानियों के रूप में लिया जाता है । कंगला मांझी एकमात्र ऐसे नेता थे जो तत्‍कालीन सी पी एण्‍ड बरार (मध्‍य प्रदेश, छत्‍तीसगढ व महाराष्‍ट्र) से अंग्रेजों के विरूद्ध लडाई में समाज के असंगठित आदिवासियों को अपने अदभुत संगठन क्षमता से संगठित कर उनके के मन में देश प्रेम का जजबा दिया । बस्‍तर व अन्‍य स्‍थानीय राजगढों, रियासतों के गोंड राजाओं को अंग्रेजों के विरूद्ध खडा किया । कंगला मांझी का असली नाम हीरासिंह देव मांझी था । छत्तीसगढ और आदिवासी समाज की विपन्न और अत्यंत कंगाली भरा जीवन देखकर हीरासिंह देव मांझी नें खुद को कंगला घोषित कर दिया । इसलिए वे छत्तीसगढ की आशाओं के केन्द्र में आ गये न केवल आदिवासी समाज उनसे आशा करता था बल्कि पूरा छत्तीसगढ उनकी चमत्कारिक छबि से सम्मोहित था । कंगला मांझी विलक्षण नेता थे । कंगला मांझी अपने जवानी के शुरूआती दिनों में सन १९१३ से भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन से जुडे एवं एक वर्ष में ही जंगलों से अंग्रेजों द्वारा हो रहे दोहन के विरूद्ध आदिवासियों को खड

बिना लोगो मोनो का पेपर नेपकिन

अरे साहब जबरदस्‍ती मिले चारज से हलाकान सुबह सुबह उठ के हम भागे अपने होटल की ओर पर पत्‍नी के नाजुक हाथों से बना नास्‍ता कर के पंचू के पान का रस ना ले लें हमें चैन नही आता । पर आज तो पंचू के पांन ठेले में एक बहस चल रही है “किसने किसको क्‍या कहा ? “ हम भी पान के पिचकारी मारते हुए सब के बातों को रस ले ले कर सुननें लगे । कोई गजाधर भईया के स्‍टाईल में कह रहा था “देखे थे ना शरफरोस फिलिम में ! कईसन बडा लंबा पकड है भाई लोगन का हां ।“ कोई कह रहा था “भाई लोगों से पंगा लिया है पानी बूडे नई बचायेंगे ।“ कोई कहता “भाई इंडिया आने वाले हैं देखना सब की गिन गिन कर धुलाई करेंगें क्‍योंकि रिन शक्ति अब बन गया है सर्प एक्‍सल बार ।“ हमने सोंचा अब ज्‍यादा देर यहां रूकनें से कोई मतलब नही है क्‍योंकि हमने भी अमूल मांचो का चडढी पहिर रखा है कउनो कूकूर वाले बाई आ गईन तो चडडी उतरते देर ना लगिहैं । और रगड रगड के धुलाई चालू हो जाई । बंबईया भाई लोगन के स्‍टाईल में स्‍टड के खोपडिया तान के अपने खटखटिया बाईक में किक दे गेयर जमाई दिये और बडे शान से पिपियाते स्‍टील सिटी के चौडी सडकों में बाईक लहराने लगे क्‍योंकि जब से बंबईय

प्रथम मानसून की बूदों में अदभुत रोगनिवारक शक्तियां : पंकज अव‍धिया

पंकज अवधिया जी भारत के जाने माने कृषि वैज्ञानिक हैं, इन्‍होंनें छत्‍तीसगढ के पारंपरिक रोग उपचार पद्धति एवं औषधीय पौंधों के क्षेत्र में उल्‍लेखनीय कार्य किया है । अवधिया जी छत्‍तीसगढ के धरोहर हैं, इनके कई शोध प्रबंध देश व विदेशों में मानक के रूप में स्‍थापित हैं । इन्‍होंने प्रथम मानसून की बूंदों में रोग निवारक क्षमता के संबंध में भी शोध किया है जिसमें इन्‍होंने पाया है कि वर्षा की पहली बूंदें कैंसर जैसे रोग को भी खत्‍म करने की क्षमता रखती हैं । अपने अंग्रेजी चिटठे में पंकज अवधिया जी नें इसके छत्‍तीसगढ में हो रहे पारंपरिक प्रयोगों पर लिखा है पढें : Healing power of the first monsoon rain http://southasia. oneworld. net/article/ view/114063/ 1/ Traditional Medicinal Knowledge about First Rain Water collected from different species and its uses in Indian state Chhattisgarh http://ecoport. org/ep?SearchTyp e=interactiveTab leView&itableId= 2481

डा परदेशीराम वर्मा की कहानी “ विसर्जन ”

हिन्दी और छत्तीसगढी में समान रूप से लिखकर पहचान बनाने वाले चुनिंदा साहित्यकारों में से एक कथाकार डा परदेशीराम वर्मा नें कहानी, उपन्यास, संस्मरण, जीवनी, निबंध, शोध प्रबंध आदि सभी विधओं में पर्याप्त लेखन किया है । भारतीय साहित्य जगत उन्हे एक कथाकार के रूप में पहचानता है । उनकी कृति औरत खेत नही कथा संग्रह को अखिल भारतीय साहित्य परिषद द्वारा मदारिया सम्मान प्राप्त हुआ । तीन हिन्दी एक छत्तीसगढी कहानी पुरस्कृत हुई है । जीवनी आरूग फूल को मघ्य प्रदेश साहित्य परिषद का सप्रे सम्मान मिला । उपन्यास प्रस्थान को महन्त अस्मिता पुरस्कार प्राप्त हुआ । छत्तीसगढी उपन्यास आवा रविशंकर विश्वविद्वालय के एम ए हिन्दी के पाठयक्रम में सम्मिलित हुआ । पढिये उनके चर्चित कथासंग्रह औरत खेत नही की एक कहानी जिसे कादंबिनी द्वारा पुरस्कृत किया गया है । “ विसर्जन ” बकरी चराने वाले लडको के लिए यह इलाका एकदम निरापद था । इस पूरे क्षेत्र में बकरी पालन का व्यवसाय इसीलिए तो फूल फल रहा था । चारों ओर जंगल, पास में छोटी छोटी पहाडियां । पहाडियों के बीच छोटे छोटे मैदान । मैदान और पहाडियों से सटकर बहती छोटी सी नदी और नदी के उपरी कछार

छत्‍तीसगढ को हिन्‍दीभाषी राज्‍य घोषित करने का दुराग्रह क्‍यों ?

राज्‍य सरकार संविधान के अनुच्‍छेद 345 के अंतर्गत छत्‍तीसगढी भाषा को राजभाषा के रूप में शासकीय मान्‍यता प्रदान कर सकती है । फिर भी इसे हिन्‍दीभाषी राज्‍य घोषित करने का दुराग्रह क्‍यो ? पढिये दैनिक भास्‍कर में आज प्रकाशित स्‍वतंत्र पत्रकार श्री न्रदकिशोर शुक्‍ल की व्‍य‍था कथा जो हम सब छत्‍तीसगढियों को जानना आवश्‍यक है । कल रविवार को राजनांदगांव के सुरगी में संध्‍या 6 बजे राजभाषा छत्‍तीसगढी के लिए साहित्‍यकार व दिग्‍गज जुट रहे हैं ! आज सुबह हमारी प्रसिद्ध छत्‍तीसगढी साहित्‍यकार डा परदेशीराम वर्मा जी से हुई चर्चा में हमने रायपुर के हमारे व्‍लागर भाई संजीत त्रिपाठी जी के प्रश्‍न को भी उठाया था तो डा परदेशीराम वर्मा जी नें हमें आश्‍वासन दिया कि कल के इस आगाज में संजीत त्रिपाठी जी के बात को भी जनता के सामने रखा जायेगा । आगामी 19 जुलाई को डा खूबचंद बघेल के जयंती के अवसर पर हमारी भाषा के लिए एक महारैली रायपुर में आयोजित की जानी है । अब आगे जो भी हो अंजाम . . . निज भाषा सम्‍मान में हमारी लडाई जारी रहेगी ।

दीपाक्षर सम्‍मान समारोह ९ जून को बिलासपुर में

दीपाक्षर साहित्‍य समिति दुर्ग भिलाई के तत्‍वाधान में प्रतिवर्ष आयोजित होने वाला दीपाक्षर सम्‍मान समारोह इस वर्ष बिलासपुर में ९ जून को संपन्‍न होगा। छत्‍तीसगढ के सैकडो साहित्‍यकार इसमें शिरकत करेंगे। कार्यक्रम दो सत्रों में होगा। प्रथम सत्र उदघाटन एवं सम्‍मान का होगा जिसमें छत्‍तीसगढ के सतत सृजन धर्मी दो साहित्‍यकारों को दीपाक्षर सम्‍मान २००७ से सम्‍मानित किया जावेगा। सम्‍मान के लिए चयनित साहित्‍यकार शिव शंकर पटनायक चर्चित उपन्‍यासकार, पिथौरा, जिला चांपा जांजगीर तथा डॉ संतरात साहू चर्चित साहित्‍यकार, भाठापारा, जिला रायपुर है। द्वितीय सत्र में साहित्यिक परिचर्चा होगी जिसमें छत्तीसगढी साहित्‍य लेखक और पाठक का अन्‍तर्सम्‍बन्‍ध विषय पर साहित्‍यकार अपने विचार रखेगे। इसी सत्र में पुष्‍कर सिंह राजा ग्राम झलमला (बालोद) की दो किताब, प्रयास प्रकाशन बिलासपुर द्वारा प्रकाशि‍त कृतियों क्रमशः पहला मेरे देश के दीमक हिन्‍दी काव्‍य संकलन एवं दूसरा हमर सुनइया कौन हे (छत्‍तीसगढी) काव्‍य संकलन का विमोचन किया जावेगा। प्रसिद्ध विद्वान एवं भाषाविद् डा विनय कुमार पाठक संरक्षक दीपाक्षर साहित्‍य समिति, दुर्ग

1857 का स्वतंत्रता संग्राम या 1857 का गदर

दो दिन पहले प्रगतिशील वसुधा के सम्पादक प्रगतिशील लेखक संघ के राष्‍ट्रीय महासचिव प्रो. कमला प्रसाद के “१८५७ की क्रांति और आज के प्रश्‍न” विषय पर व्‍याख्‍यान को सुनने गया उन्होने १८५७ की क्रांति के १५० वर्ष पूरे होने पर अपने रोचक व सारगर्भित व्‍याख्‍यान मे जो कुछ कहा उसमे से कुछ बाते देर तक दिमाग मे गूंजती रही । "१८५७ की क्रांति की जितनी चर्चा हो रही है, इतनी सजग चर्चा १९५७ को १०० वर्ष पूरे होने पर भी नहीं हुई ।" "१८५७ की क्रांति से संबंधित पृथक पृथक मत आज भी बने हुए हैं कोई मानते हैं यह एक धर्म युद्ध था कुछ कहते हैं यह सामंती सभ्‍यता और अंग्रेजी सभ्‍यता के बीच का युद्ध था ।" " . . . . . . कार्लमार्क ने इसे जनविद्रोह का नाम दिया । " " . . . . . . . . . . . गदर !" हमे संविधान पढाने वाले हमारे एक प्राध्यापक आदरणीय कनक तिवारी जी जो हिदायत्तुल्ला राष्ट्रीय विधि महाविद्यालय मे विजिटिंग प्रोफ़ेशर है कहा करते थे कि कालमार्क्स के ईसी कथन को अंग्रेजो ने गदर निरुपित कर दिया था । इतिहास को शब्द रूप मे लिखने वाले अंग्रेज ही थे जिंहोने भारतीय एकता को चिढाने

छत्तीसगढी के लिए एकजुट आंदोलन का संकल्प

राजभाषा मंच के तत्वाधान में अगासदिया नें छत्तीसगढी और छत्तीसगढीया वैचारिक संगोष्ठी का आयोजन छत्तीसगढ के लौह नगरी भिलाई मे किया । इस गोष्ठी मे छत्तीसगढ मे निवास कर रहे सभी छत्तीसगढियो को भाषा की अस्मिता के लिये एकजुट होकर आंदोलन करने का संकल्प लेने को प्रेरित किया गया । कूर्मि भवन सेक्टर ७ में आयोजित इस संगोष्ठी के अध्यक्ष विधायक भूपेश बघेल नें अपने उद्बोधन मे कहा कि छत्तीसगढी भाषा को स्थापित करने के लिये केवल कोई एक क्षेत्र विशेष के लोग ही नही बल्कि सभी लोग जो इस धरती से जुडे है हमारी भाषा के संधर्ष में साथ साथ हैं । भाषा सब की जरूरत है और यह स्वाभिमान से जुडी लडाई है । इस अवसर पर पधारे संत कवि पवन दीवान ने कहा कि यहां चुनाव के समय छत्तीसगढी में वोट मांगा जाता है उसके बाद उस भाषा को भुला दिया जाता है । आज विकाश के इस दौर मे छत्तीसगढी ब्यापार और व्यवहार की भाषा बनते जा रही है। छत्तीसगढी मे बोल गोठिया के प्रशासनिक व व्यावसायिक कार्य हो रहे है पर छत्तीसगढीयों को उसकी भाषा नही दी जा रही है, बिना भाषा के कोई प्रदेश पूरा नही माना जा सकता है , छत्तीसगढी को सम्मान से पुरखों के सपने पूरे होंग

परीक्षण . . . निरीक्षण 123

मदनांतक शूलपाणि शिव आप मद रूपी मदन को भस्म करने वाले हो आपके हाथो मे सजा देने के लिये दिव्य शूल है मुझे आपके रूप का एहसास है . . . करचरण कृतं वाक्कायजं कर्मजं वा . श्रवणनयनजं वा मानसं वापराधं . विहितमविहितं वा सर्वमेतत्क्षमस्व . जय जय करुणाब्धे श्रीमहादेव शम्भो .. हे शिव ¡ मुझे प्रत्येक व्यक्ति के भावनाओ का आदर करने और विनम्रता धारण करने की शक्ति दे ¡

कोई नया अरेन्जमेंट मार्केट में आयेगा तो बताइयेगा . .

रात में आफिस से आकर कम्प्यूटर में खटर पटर करते देख एक हिन्दी ब्लागर की पत्नी फिर चिल्लाई, “अभी भी नशा नही उतरा है आपका ! रोज सुबह वादा करते हो रात को भूल जाते हो . . . . !” बाकी शव्द कूलर के घरघराहट में दब गये । ब्लागर का लिखना जारी था, हांथ को विराम दे सोंचने लगा, नशा तो मैं करता नहीं और . . . कुछ भी तो नही भूलता रात में, सब याद रहता है महिलाओं की लगभग सभी पत्रिकाओं का पाठक हूं सभी पत्रिकाये में पतिवत व्यवहार की जो शिक्षा मिलती हैं उसे रट रखा हूं फिर ये क्या ? खटर पटर बंद कर के गंभीर चिंतन की मुद्रा में राजा दशरथ की भंति ब्लागर, पत्नी के पास बैठ गया पूछा “क्यों भागवान क्या हुआ ?“ “ क्या हुआ आपने कहा था ना कि आज से ब्लागिंग बंद न पढना न लिखना ! “ ब्लागर के जान में जान वापस आया, “अच्छा तो ये बात है ।“ अनुप तो कुछ और समझ बैठे थे और ना जाने दो क्षण में ही क्या क्या विचार मन में घुमडने लगे थे, एकता कपूर की पति पत्नी संबंधों का उन्मुक्त सिद्धांत याद आने लगा था । “उफ” ब्लागर की पत्नी नें रौद्रमुखी स्वरूप में कहा “पिछले दिनों से नक्सलियों के मेलों से परेशान फिर रहे थे उससे मुक्त हुए तो ब्लागर

हमारी हिन्दी का भी कल्याण हो ! रूपर्ट स्नेल

गांधी शांति प्रतिष्ठान के श्री अनुपम मिश्र द्वारा प्रकाशित अहिंसा-संस्कृति की द्वैमासिक प्रकाशन “गांधी मार्ग” में प्रकाशित रूपर्ट स्नेल, (हिन्दी प्राध्यापक, स्कूल आफ ओरियंटल एण्ड अफ्रीकन स्टडीज, लंदन विश्वविद्धालय) द्वारा लिखित लेख के कुछ रोचक अंश हिन्दी को स्थापित करने के लिए प्रतिबद्ध भाईयों के लिए सादर प्रस्तुत है - . . . . .शायद एक ऐसी पीढी जल्द ही बनेगी जिसको न अंग्रेजी ठीक तरह से आती हो, न हिन्दी ही । या यों कहा जाय कि वह पीढी बन चुकी है शव्दों के मर्म से गाफिल इस पीढी का भी कल्याण हो ! . . . . . लक्ष्मी के घर से थोडे ही फासले पर एक नया शिव मंदिर बनाया गया है । इसमें शिव जी की जो मूर्ति स्थापित है, वह संगमरमर की बनी हुई है। लक्ष्मी नें ही मुझे बताया था कि यह मूर्ति संगमरमर की है । कमाल है, मार्बल शव्द का इस्तेमाल उसने नहीं किया! मैने सोंच रखा था कि संगमरमर शव्द कब का मर-खप गया । उत्तर भारत के जितने संगमरमर के विक्रेता हैं, सबके सब अपने को `मार्बल' के विक्रेता कहते हैं । लक्ष्मी का मैं अत्यंत आभारी हूं कि उसने अनायास ही संगमरमर की सुंदरता को बचाये रखा है । यह बात दूसरी है कि ब