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छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

वृष को तरनि तेज सहसा किरन करि . . . . नवतपा शुरु

जेष्ठ माह में जब सूर्य सबसे ठंडा ग्रह चंद्र के नक्षत्र रोहिणी ( ईस पर सूर्य का भी अधिकार है ) वृष राशि मे प्रवेश करता है तभी नवतपा शुरु होता है । आज शाम सूर्य रोहिणी में प्रवेश करेगा उसी समय से नवतपा शुरू हो जायेगा जो ९ दिन चलेगा। २५ मई से ही बुध वृष राशि से मिथुन राशि मे प्रवेश करेगा। ज्यादतर देखा गया कि जब बुध सूर्य से आगे चला जाता है तभी पानी गिरता है।२५ मई शाम को चंद्र भी सिंह राषि में प्रवेश करेगा यानि स्वगृही बुध चंद्र से एकादस स्थान में चला जायेगा जो गर्मी से राहत दिलायेगा । उस समय नीच चंद्र के उपर सूर्य की दृष्टि भी रहेगी । २५ मई को ही मंगल मीन राषि, गुरु वृष्चिक राशि, राहु कुम्भ राषि व शनि कर्क, शुक्र मिथुन, राषि मे रहेगा । ईसी स्थितियों के कारण नवतपा में बीच बीच मे पानी भी गिरते रहेगा व लू का असर भी कम होगा ।

ये तो रही खगोलीय स्थिति ईस नवतपा के सम्बन्ध मे हमारे साहित्य के एक प्रसिद्ध कवि सेनापति ने जो लिखा है वो आज मन बार बार गुनगुना रहा है आप लोगो को अर्ज करता हू (कही गलती होगी तो सुधार लिजियेगा 1982 मे याद किया था भूल हो सकती है)

वृष को तरनि तेज सहसा किरन करि
ज्वालन के जाल बिकराल बरसत है
चचत धरनि जग जरत झरनि
सिरि छाह को पकर पन्थि पन्छि बिरमत है

सेनापति नेकु दुपहरी के ढरत
होत धमका बिकल जो न पात खरकत है
मेरे जान पवनो सिरि ठौर को पकरि कौनो
घरि एक कौनो, पवनो बिलमत है

टिप्पणियाँ

  1. ह्म्म, अच्छी जानकारी लेकिन संजीव भैय्या, एक बात बताओ, यहां बहुत से पंडितों का मानना है कि नवतपा 19 से ही प्रारंभ हो चुका है जबकि कई कहते हैं कि 25 से प्रारंभ, ऐसा क्यों…… जिस हिसाब से आपने जानकारी दी तो फ़िर क्या ये ग्रह इतनी जल्दी पुनरावृत्ति करते हैं?

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  2. भई वाह तिवारी जी आप का तो ज्योतिष में भी दख ल है.. ये कीड़ा हम्को भी काटे था.. आजकल इस से ज़रा मुक्त हूँ.. पर आप्की जानकारी फैली हुई है.. मेरी फलित तक सीमित थी.. बढ़िया है.. इसी बहाने मैं भी कुछ सीखूँगा..

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  3. आप अच्छी जान कारी दे रहे हैं। इसे जारी रखे।

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  4. जिस संबंध में आपने मेरे 25 मई के पोस्ठ मे आपने प्रश्न किया है वह विशद विवेचन योग्य प्रश्न है जिस पर पूरा एक लेख लिखा जा सकता है । भारतीय ज्योतिष में पिछले कुछ समय से राशियों एवं नक्षत्रों की काल गणना के संबंध में एक अदृष्य अंकुरण फूटने को कुलबुला रहा है क्योकि राशि बारह हैं एवं नक्षत्र २७ इस प्रकार से नक्षत्रों के आधार पर काल विभाजन ज्यादा सूक्ष्म होगा (वैदिक कालिक ग्रन्थो मे नक्षत्रों के आधार को ज्यादा महत्व दिया गया है)। वैदिक काल के उपरान्त भारतीय ज्योतिष ने भारत मे राशियो के आगमन पर नक्षत्रों का तालमेल बिठाने के लिये तथा नक्षत्रों की आकृति को वैग्यानिक आधार देने के लिये अन्य तारा मण्डलो से कुछ तारे ले लिये इस प्रकार गणितीय नक्षत्र विभाजन एव नक्षत्रों की वास्तविक कोणात्मक स्थिति मे कुछ विसन्गतिया रह गयी (आ गयी) ।

    नक्षत्रों के काल गणना को आधार मानने वाले लोग वैज्ञानिक आधार पर खगोलीय स्थितियों एवं प्राचीन ज्योतिष मत में परस्पर सामजस्य बिठाने का प्रयास कर रहे हैं जिनके अनुसार परिस्थितिगत सिद्धांत विकसित हो रहे हैं जिसे लोग कपोल कल्पित सिद्धांत भी कह देते हैं जैसे “कालसर्प सिद्धांत” हमारे किसी भी पौराणिक ज्योतिष शास्त्र में “कालसर्प योग” के रूप में विद्धमान नही है फिर भी इसका कितना हौआ और मान्यता है आप स्वयं जानते होंगे । ऐसे ही “नव तपा” के संबंध में हमारा ज्योतिष जो कहता है उसे देखें :

    ज्येष्ठ मासे सिते पक्षे आर्द्रादि दशतारका ।
    सजला निर्जला ज्ञेया निर्जला सजलास्तथा ।।

    ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष में आद्रा नक्षत्र से लेकर दस नक्षत्रों तक यदि बारिस हो तो वर्षा ऋतु में इन दसो नक्षत्रों में वर्षा नही होती, यदि इन्ही नक्षत्रों में तीव्र गर्मी पडे तो वर्षा अच्छी होती है । भारतीय ज्योतिष में उपरोक्तानुसार “नवतपा” को परिभाषित कर लिया गया है यानी कि चंद्रमा जब ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष में आर्द्रा से स्वाती नक्षत्र तक के अपनी स्थितियों में हो एवं तीव्र गर्मी पडे, जो प्राय: होता है तो वह नवतपा है (हमारे वैदिक ज्योतिष मे “नवतपा” जैसे काल का कोई सैद्धान्तिक विवरण नही है)। इस अनुसार से नवतपा १९ मई से प्रारंभ हो चुका है।

    अब परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर देखें मैने अपने चिट्ठे में ग्रहीय स्थितियों के साथ जो कविता दिया था उसमें वृष राशि में स्थित सूर्य की गर्मी का उल्लेख है जो कवि नें सामान्य ज्ञान के अनुसार (अनुभव के आधार पर) लिखा है भारत में ऐसे बहुत लोगों का मानना है कि सूर्य वृष राशि में ही पृथ्वी पर आग बरसाता है और खगोल शास्त्र के अनुसार वृषभ तारामण्डल में जो नक्षत्र हैं वे हैं कृतिका, रोहिणी और मृगशिरा (वृषभो बहुलाशेषं रोहिण्योऽर्धम् च मृगशिरसः .. ) जिसमें कृतिका सूर्य, रोहिणी चंद्र, मृगशिरा मंगल अधिकार वाले नक्षत्र हैं इन तीनों नक्षत्रों में स्थित सूर्य गरमी ज्यादा देता है ।

    अब प्रश्न यह कि इन तीनों नक्षत्रों में सर्वाधिक गरम नक्षत्र अवधि कौन होगा इसके पीछे खगोलीय आधार है इस अवधि मे सौर क्रांतिवृत्त में शीत प्रकृति रोहिणी नक्षत्र सबसे नजदीक का नक्षत्र होता है जिसके कारण सूर्य गति पथ में इस नक्षत्र पर आने से सौर आंधियों में वृद्धि होनी स्वाभाविक है इसी कारण परिस्थितिजन्य सिद्धांत कहता है कि जब सूर्य वृष राशि में रोहिणी नक्षत्र में आता है उसके बाद के नव चंद्र नक्षत्रों का दिन “नवतपा” है ।

    अब देखें सूर्य इस बीच किन नक्षत्रों में रहा १९ मई जब चंद्रमा आर्द्रा में प्रवेश किया सूर्य ११ मई से कृतिका में था जो २५ मई तक संध्या ६.३४ तक रहा फिर २५ मई को ही सूर्य संध्या ६.३५ को रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश किया जो ८ जून संध्या ४.३१ तक रहेगा। राशिगत स्थितियों में सूर्य १५ मई को प्रात: ९.१८ को वृष राशि में प्रवेश किया जो १५ जून को दोपहर ३.५२ तक रहेगा । सूर्य विगत कई वर्षों से २३ - २५ मई को रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश कर रहा है जो लगभग १३ से १५ दिन तक एक ही नक्षत्र में रहता है और इसी समय “नवतपा” की स्थिति रहती है ।

    वैसे इन सभी स्थितियों को समझने के लिए ज्योतिष का सामान्य ज्ञान एवं नक्षत्र ज्योतिष के संबंध में वर्तमान में हो रहे प्रयोगों को ध्यान में रखना आवश्यक है ।

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