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छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

बिजली कर्मियो का बटवारा म प्र एव छत्तीसगढ मे एक दिवा स्वप्न

छत्तीसगढ राज्य निर्माण के बाद से मध्य प्रदेश विधुत मण्डल व छत्तीसगढ राज्य विधुत मण्डल के बीच कर्मियो का बटवारा प्रशासनिक स्तर से होते हुए न्यायिक स्तर तक पहुच गया है किन्तु दोनो राज्यो के कर्मचारी अपने अपने राज्य मे अपने अपने राज्य के विधुत मण्डल मे सेवा करने की आश सजोये पिछले सात साल से अधर मे लटके जी रहे है । इनकी विडम्बना यह है कि इनके परिवार व घर मे इनकी आवश्यकता महती है फिर भी ये अपने घर से काफी दूर मे निवास करने के लिये मजबूर है, किसी का बूढा बाप बीमार है तो किसी का घर खेत बन्जर हो रहा है ।

सूत्र बताते है कि यह समस्या छत्तीसगढ के कर्मचारी जो अविभाजित मध्य प्रदेश मे सेवारत थे उनकी ज्यादा है क्योकि मध्य प्रदेश विधुत मण्डल से ज्यादा वेतन व सुविधाये छत्तीसगढ राज्य विधुत मण्डल द्वारा दी जा रही है जिसके कारण मध्य प्रदेश के कर्मचारी जो छत्तीसगढ राज्य विधुत मण्डल मे वर्तमान मे सेवारत है वे मध्य प्रदेश जाना नही चाहते जबकि छत्तीसगढ के कर्मचारी जो मध्य प्रदेश विधुत मण्डल मे सेवारत है वे अपने गाव व घर के करीब नौकरी करना चाहते है उनके लिये वेतन का उतना महत्व नही है ।

बिजली कर्मियो के बटवारे के लिये गठित आर पी कपूर कमेटी के अप्रभावी सूची मे जिनका नाम आया वे पिछले वर्ष सेवा काल व वेतन वृद्धि मे कटौती को भी स्वीकार करते हुए काफी खुश थे पर छत्तीसगढ के अभियन्ता छत्तीसगढ उच्च न्यायालय चले गये और मामला फिर ठ्न्डे बस्ते मे चला गया । अब छत्तीसगढ उच्च न्यायालय ने अभियन्ताओ के प्रकरण का निराकरण कर दिया है जिसमे कहा गया है कि मध्य प्रदेश विधुत मण्डल व छत्तीसगढ राज्य विधुत मण्डल के बीच कर्मियो का बटवारा केन्द्र सरकार द्वारा निर्धारित दिशा निर्देशो के तहत की जाय । एक बार फिर सिफर की ओर ...

अब प्रश्न यह उठता है कि क्या आर पी कपूर कमेटी के द्वारा निर्धारित दिशा निर्देश, केन्द्र सरकार द्वारा निर्धारित दिशा निर्देशो के अनुरूप थे यदी थे तो मण्डल अपना पक्ष छत्तीसगढ उच्च न्यायालय मे क्यो नही रख पाइ । अब आर पी कपूर कमेटी के द्वारा बनाइ गयी सूची के आश मे सालो से जीते छत्तीसगढ के कर्मचारी जो मध्य प्रदेश विधुत मण्डल मे सेवारत है उनका क्या होगा जब तक उनका नाम पुर्नगठित सूची मे नाम आयेगा तब तक वे सेवामुक्ति के आयु मे आ जायेगे

छत्तीसगढ उच्च न्यायालय के निराकरण के बाद अब दोनो राज्यो के उर्जा मन्त्री, सचिव व मण्डल के अध्यक्षो की तत्परता से ही मोर छत्तीसगढ के बिजली विभाग के जबलपुरिहा अउ नइ जाने कहा कहा बसे, नौकरी म फसे, जग भर के घर ला अजोर करे बर पेरात भाइ मन के छत्तीसगढ के सुन्ना डीह मे दीया जल पाही दाइ ददा के लाठी म दम आ पाही अउ बेटी बेटा के बिहाव जात बिरादरी सन्ग हो पाही, बाकी उम्मर छत्तीसगढ महतारी के कोरा म बीत पाही ।

टिप्पणियाँ

  1. वैसे मुझे लगता है कि यह स्थिती सिर्फ विद्युत मंडल की नहीं है वरन अन्य विभागों के कर्मचारी भी इसी विडंबना से जूझ रहे हैं जैसे कि लोक निर्माण विभाग इत्यादि.

    --मेरी जानकारी सीमित हो सकती है मगर मुझे लगता है कि विद्युत मंडल ने बंटवारे के प्रांरभिक दौर में न सिर्फ छ.ग.रा. और म.प्र. के बीच चुनने का ऑप्शन दिया था और काफी लोग म.प्र. से छ.ग.रा. चले भी गये थे. फिर मुचुय्ल स्थानान्तरण का भी प्रस्ताव दिया गया था. स्थितियां इतनी बिगड़ी हुई हैं, इसका मुझे आभास नहीं था. खैर, अब तो म.प्र. विद्युत मंडल का विखंडन हो ही चुका है तो सारी परिस्थितियां भी बदल गई होंगी.

    न्यायालय में लंबित काफी मामलों की जानकारी मुझे है मगर उसमें अधिकतर दूसरे विभागों के कर्मचारी हैं.

    आपने वर्तमान स्थितियों की अच्छी जानकारी दी. क्या आप विद्युत मंडल में कार्यरत हैं? आगे भी सूचित करते रहें.

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  2. संजीव जी बहुत सी बातों की हमे जानकारी नही होती,बस आपका चिट्ठा पढकर एसा लगता है कि छ्त्तीसगढ़ के कर्मचारिओं की नामसूची भोलाराम के जीव के भांति फ़ाईलो में दफ़न हो जाएगी,..ये भी सच है कि जब तक उनका नाम पुर्नगठित सूची मे आयेगा तब तक वे सेवामुक्ति के आयु मे आ जायेगे। समस्या गम्भीर है। और जो अपने परिवार से मीलों दूर है,..ऐसे लगता है देश के वह भी सेनानी है,..सेनानी तो है ही कार्य तो देशहित का ही है ना। जियादा कुछ नही लिख पाऊंगी इस क्षेत्र में अभी नई हूँ आपसे बहुत कुछ सिखना है,..
    सुनीता(शानू)

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  3. आपने सही कहा है, और अब तो दोनों राज्यों के वेतन में भारी अंतर - मैंने सुना है करीब 30 प्रतिशत - के कारण समस्या और भी गहरी हो गई है. अब जो दावेदार नहीं थे वे भी ज्यादा वेतन वाले राज्य यानी छत्तीसगढ़ में जाना चाह रहे हैं.

    वैसे, सारी समस्या घोर अफ़सर शाही और लाल फ़ीता शाही के कारण ही हुई है. नहीं तो ऐसी कोई समस्या नहीं थी - आरंभ में ही तीन तीन दफा विकल्प के फ़ॉर्म भरवाए गए. जब विकल्प दे दिया गया तो फिर समस्या थी ही नहीं.

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  4. your blog is very good sanjeev as well as your writing

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  5. बेनामी06 मई, 2007 18:46

    आश्चर्य किंतु सत्य है. छत्तीसगढ़ छोड़े चार बरस हो गए. दुख हुआ जानकर ही राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी की वजह से बंटवारा पूरी तरह नही हुआ जिससे कर्मचारी और जनहितों पर चोट पहुंचती है. इस बारे में आपने सूचित किया. इसके लिए आभार. बहुत सकारात्मक प्रयास है ब्लागिंग में. स्थानीय जनसमस्याओं को उठाना प्रशंसनीय प्रयास. आभार

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  6. शुक्रिया...आपका ब्लॉग देखा, बहुत उम्दा है ....
    संजीदा विचार व्यक्त किए है आपने

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आपकी टिप्पणियों का स्वागत है. (टिप्पणियों के प्रकाशित होने में कुछ समय लग सकता है.) -संजीव तिवारी, दुर्ग (छ.ग.)

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